सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने संसद से पोक्सो एक्ट के तहत सहमति की उम्र पर विचार करने का आग्रह किया
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने सहमति से बने रोमंटिक रिश्तों के मामलों को पोक्सो एक्ट के दायरे में शामिल करने पर चिंता व्यक्त की। सीजेआई ने कहा कि विधायिका को 2012 अधिनियम के तहत तय की गई सहमति की उम्र पर विचार करना चाहिए। फिलहाल यह 18 साल है।
सीजेआई ने यूनिसेफ के सहयोग से जुवेनाइल जस्टिस पर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की ओर से आयोजित कार्यक्रम, जिसका शीर्षक-पोक्सो अधिनियम पर राष्ट्रीय हितधारक परामर्श था, के उद्घाटन समारोह में मुख्य भाषण दिया।
भाषण में सीजेआई ने कहा कि आयोजन कि जिन विषयों पर चर्चा की जाएगी, उनमें से एक 'रोमांटिक मामलों' में पोक्सो न्यायालयों के निर्णयों से संबंधित है या ऐसे मामले जहां आपस में सहमत किशोर यौन गतिविधियों में संलग्न हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसे मामले जजों के समक्ष कठिन प्रश्न खड़े करते हैं।
उन्होंने कहा,
"आप जानते हैं कि पोक्सो एक्ट के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के बीच सभी प्रकार के यौन कृत्य अपराध हैं, भले ही नाबालिगों के बीच सहमति हो। ऐसा इसलिए है कि कानून की धारणा यह है कि 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के बीच कानूनी अर्थ में कोई सहमति नहीं होती है।
जज के रूप में मैंने देखा कि ऐसे मामले जजों के समक्ष कठिन प्रश्न खड़े करते हैं। इस मुद्दे पर चिंता बढ़ रही है। किशोर स्वास्थ्य देखभाल के विशेषज्ञों के विश्वसनीय शोधों के मद्देनजर विधायिका को इस मसले पर विचार किया जाना चाहिए।"
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उल्लेखनीय है कि पोक्सो एक्ट 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिए सभी यौन गतिविधियों को आपराधिक बनाता है, भले ही यौन गतिविधि में लगे दो नाबालिगों के बीच सहमति मौजूद हो, क्योंकि कानून मानता है कि नाबालिगों (18 वर्ष से कम आयु) द्वारा दी गई सहमति, सहमति नहीं है।
सीजेआई चंद्रचूड़ की टिप्पणी मद्रास हाईकोर्ट के हालिया अवलोकन की रोशनी में महत्वपूर्ण है, जिसमें कहा गया था कि न्यायालय किशोरों के रिश्तों से संबंधित मामलों को उचित रूप से निस्तारित करने के लिए कानून में संशोधन की प्रतीक्षा कर रहा है।
यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि मद्रास हाईकोर्ट के फैसला के कुछ दिनों बाद, तमिलनाडु पुलिस महानिदेशक ने एक परिपत्र जारी कर पुलिस अधिकारियों को पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों में युवकों को गिरफ्तार करने में जल्दबाजी नहीं दिखाने का निर्देश दिया था क्योंकि पोक्सो मामले में कई ऐसे मामले शामिल होते हैं, जिनमें पारस्परिक सहमति से बने रोमांटिक रिश्ते शामिल होते हैं।
हाल ही में, दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कहा था कि पोक्सो एक्ट का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है और सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को आपराधिक बनाना नहीं था।
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर ने भी कहा था कि एक रोमांटिक रिश्ते में शामिल 17 वर्षीय लड़के और लड़कियां जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं और इसके परिणामों से अवगत हैं और इसलिए, उन पर मुकदमा क्यों चलाया जाना चाहिए?