जरूरी नहीं कि समलैंगिक जोड़े द्वारा गोद लिए गए बच्चे समलैंगिक हों: सीजेआई चंद्रचूड़

Update: 2023-03-13 13:05 GMT

चीफ जस्टिस ऑफ इं‌डिया डीवाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक ‌विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दरमियान कहा कि यह जरूरी नहीं कि एक समलैंगिक जोड़े का गोद लिया बच्चा समलैंगिक ही हो।

सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के एक बयान के जवाब में यह टिप्पणी की।

मेहता ने कहा कि यह संसद का काम है कि वह समलैंगिक जोड़े को कानूनी अधिकार देने पर विचार करे क्योंकि उसे यह जांचना होगा कि उस "बच्चे का मनोविज्ञान कैसा होगा, जिसने अपने माता-पिता के रूप में दो पुरुषों या दो महिलाओं को देखा हो, जिसे माता या पिता ने ना पाला हो।"

यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से याचिकाओं के खिलाफ पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान करना विभिन्न कारणों से विधायी डोमेन के अंतर्गत आता है। अपनी प्रस्तुति को और विस्तृत करने के लिए उन्होंने गोद लेने का उदाहरण दिया।

उन्होंने कहा-

"किसी रिश्ते को मान्यता देने का जब सवाल हो तो यह विधायिका का कार्य है। ऐसा एक से अधिक कारणों से है। उदाहरण के लिए, जब एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह को मान्यता दी जाती है तो प्रश्न गोद लेने का होगा। जब गोद लेने का सवाल आएगा तो संसद को जांच करनी होगी। संसद को लोगों की इच्छा पर विचार करना होगा। संसद को जांच करनी होगी कि बच्चे के मनोविज्ञान की स्थिति क्या होगी जिसने या तो दो पुरुषों या दो महिलाओं को माता-पिता के रूप में देखा है, उसे एक पिता और मां ने नहीं पाला है। ये मुद्दे हैं। संसद को बहस करनी होगी और इस पर विचार करना होगा कि क्या सामाजिक लोकाचार और कई अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए क्या ऐसे विवाह को मान्यता दी जाए?"

इस बिंदु पर सीजेआई ने कहा,

"सॉलिसिटर जनरल महोदय, समलैंगिक जोड़े के गोद लिए हुए बच्चे का समलैंगिक होना जरूरी नहीं है। बच्चा हो भी सकता है और नहीं भी..."

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट अरुंधति काटजू ने एसजी की दलील पर आपत्ति जताने के लिए हस्तक्षेप किया।

उन्होंने कहा कि यह देखते हुए कि अदालत के समक्ष कई याचिकाकर्ता ऐसे हैं, जिल्होंने बच्चों को गोद लिया है, एसजी की ओर से ऐसा बयान देना अपमानजनक है।

संक्षिप्त सुनवाई के बाद पीठ ने याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेज दिया। सुनवाई 18 अप्रैल को होगी।

याचिकाओं में हिंदू विवाह अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देने की सीमा तक चुनौती दी गई है।

जनवरी में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने इस मुद्दे पर हाईकोर्ट में लंबित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था।

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