छावला गैंगरेप हत्या केस- सुप्रीम कोर्ट ने क्यों खारिज की पुनर्विचार याचिकाएं, क्या था पूरा मामला

Update: 2023-03-29 06:55 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने छावला गैंगरेप हत्या केस में दाखिल पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी है। दिल्ली के छावला इलाके में एक 19 साल की लड़की के साथ गैंगरेप और फिर उसकी हत्या कर दी गई थी। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पुलिस की जांच में संदेह का लाभ देते हुए दोषियों को बरी कर दिया गया था। पीड़ित परिवार और दिल्ली पुलिस ने फांसी की सजा पाए तीनों दोषियों को रिहा करने के फैसले पर पुर्नविचार करने की मांग की थी।

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी और कहा- इस फैसले में उन्हें कोई खामी नजर नहीं आती है। इसलिए पुनिर्विचार की कोई आवश्यकता नहीं है।

क्या था पूरा मामला?

ताऱीख 14 फरवरी 2012। जगह- राजधानी दिल्ली का छावला इलाका। इलाके की रहने वाली 19 साल की युवती काम खत्म करने के बाद शाम को अपने घर लौट रही थी। इसी दौरान रास्ते में तीन युवकों ने कार से उसे अगवा कर लिया। काफी देर तक बेटी घर नहीं पहुंची। परिवार को चिंता हुई। परिवार वाले पहले खुद ही तलाश किए, लेकिन बेटी नहीं मिली। इसके बाद परिजनों ने पुलिस के पास शिकायत की। पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर जांच शुरू की। तीन आरोपी रवि कुमार, राहुल और विनोद को गिरफ्तार किया गया। जांच में पता चला कि आरोपियों ने युवती को अगवा करने के बाद उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। उसके शरीर को सिगरेट से जलाया गया। युवती की दोनों आखों में तेजाब डालकर उसकी हत्या कर दी।

मामला कोर्ट पहुंचा। निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट ने तीनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई। इसके बाद दोषियों की तरफ से सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई। फिर ताऱीख आती है 7 नंबवर 2022। सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के फैसले के पलटते हुए तीनों दोषियों को बरी कर देता था। कोर्ट ने बरी करते हुए कहा था कि सबूतों में कमियां हैं। पुलिस की जांच और ट्रायल पर संदेह है। संदेह का लाभ देते हुए आरोपियों को बरी किया जाता है।

इसके बाद पीड़ित के परिजन और दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि फैसले और उपलब्ध रिकॉर्ड को देखने पर हमें अपने पहले के फैसले में कोई कानूनी खामी नजर नहीं आती। लिहाजा पुनर्विचार की मांग वाली याचिकाएं खारिज की जाती हैं।


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