कंपनी के दोषी निदेशकों को धारा 148 के तहत जमा राशि से छूट वाले पुराने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट को संदेह, मामला बड़ी पीठ को भेजा

Update: 2025-12-18 10:19 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने दो पूर्व निर्णयों पर संदेह जताया, जिनमें यह कहा गया था कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत दोषसिद्ध कंपनी के निदेशक या अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता को सजा निलंबन के लिए अपीलीय अदालत के समक्ष धारा 148 के तहत राशि जमा करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता।

जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की खंडपीठ ने पूर्व मिसालों से असहमति जताते हुए कहा कि कंपनी के दोषसिद्ध निदेशक/अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता को धारा 148 एनआई एक्ट के तहत जमा राशि से सामान्य रूप से (ब्लैंकेट) छूट नहीं दी जा सकती। ऐसी छूट प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर तय की जानी चाहिए।

हालांकि, चूंकि पूर्व निर्णय समान पीठ (कोऑर्डिनेट बेंच) द्वारा दिए गए थे, इसलिए न्यायिक अनुशासन का पालन करते हुए वर्तमान पीठ ने उन्हें पलटने से परहेज किया और मामले को बड़ी पीठ के समक्ष विचार के लिए भेजने का निर्णय लिया।

खंडपीठ ने Bijay Agarwal Vs. M/s Medilines (2024) और Shri Gurudatta Sugars Marketing Pvt. Ltd. Vs. Prithviraj Sayajirao Deshmukh & Ors. (2024) में व्यक्त विचारों से सहमति जताने में असमर्थता व्यक्त की।

Bijay Agarwal मामले में यह कहा गया था कि कंपनी की ओर से चेक जारी करने वाला अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता “ड्रॉअर” नहीं माना जा सकता, और इसलिए उसे धारा 148 के तहत जमा राशि का निर्देश नहीं दिया जा सकता। इसी तरह Shri Gurudatta Sugars मामले में कोर्ट ने कहा था कि कंपनी का हस्ताक्षरकर्ता धारा 143A के तहत अंतरिम मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी नहीं है।

वर्तमान मामले का मुद्दा

वर्तमान पीठ भारत मित्तल (कंपनी Ispat Private Ltd. के पूर्व निदेशक) द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा धारा 148 एनआई एक्ट के तहत जमा राशि से छूट देने से इनकार किए जाने को चुनौती दी थी।

पीठ ने प्रश्न को इस प्रकार स्पष्ट किया:

“क्या धारा 138 सहपठित धारा 141 एनआई एक्ट के तहत दोषसिद्ध निदेशक या अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता के विरुद्ध धारा 148 के अंतर्गत अपीलीय जमा राशि का निर्देश दिया जा सकता है, या यह केवल हर स्थिति में कंपनी तक ही सीमित है?”

पीठ ने कहा कि जो व्यक्ति कंपनी के कार्यों और प्रबंधन के लिए उत्तरदायी होता है, वह कंपनी द्वारा जारी चेक के अनादरण (डिशऑनर) की स्थिति में धारा 138 के तहत प्रत्यक्ष रूप से नहीं बल्कि वैकल्पिक (विकैरियस) रूप से उत्तरदायी होता है। ऐसा व्यक्ति, जो कंपनी के प्रबंधन पर नियंत्रण रखता है, व्यवहार में चेक का “ड्रॉअर” ही माना जाएगा।

पीठ ने यह भी कहा कि अपीलीय अदालत को धारा 148 के तहत जमा राशि से छूट देने का सीमित विवेकाधिकार केवल असाधारण परिस्थितियों में ही प्रयोग किया जा सकता है।

Bijay Agarwal के दृष्टिकोण से असहमति जताते हुए पीठ ने कहा कि यदि धारा 143A और 148 की ऐसी व्याख्या स्वीकार कर ली जाए, तो कई मामलों में—जहां कानूनी अड़चनों के कारण कंपनी के खिलाफ अभियोजन संभव नहीं है—कंपनी के कार्यों के लिए जिम्मेदार व्यक्ति केवल तकनीकी आधार पर जमा राशि से बच निकलेगा। इससे इन धाराओं का उद्देश्य ही निष्फल हो जाएगा और शिकायतकर्ता को दी जाने वाली राहत मात्र औपचारिक बनकर रह जाएगी, जो विधायिका की मंशा नहीं हो सकती।

पीठ ने आगे कहा:

“हमारा विचार है कि कंपनी के निदेशक को धारा 148 के तहत जमा राशि से स्वतः या सामान्य रूप से छूट नहीं दी जा सकती। ऐसी छूट दी जाए या नहीं, यह प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगा।”

हालांकि, चूंकि पूर्व निर्णय समान स्तर की पीठों द्वारा दिए गए थे, इसलिए वर्तमान पीठ ने मामले को चीफ़ जस्टिस के समक्ष भेजते हुए अनुरोध किया कि इस मुद्दे पर एक बड़ी पीठ का गठन कर प्रामाणिक निर्णय दिया जाए।

Tags:    

Similar News