चंद्रबाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश स्किल डेवेलपमेंट घोटाला मामले में एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने स्किल डेवेलपमेंट घोटाला मामले में अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उन्होंने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की, जिसमें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा शुक्रवार को दिए गए फैसले को चुनौती दी।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एफआईआर को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। याचिका खारिज होने के बाद, विजयवाड़ा की एक अदालत ने आंध्र प्रदेश अपराध जांच विभाग (सीआईडी) को पूछताछ के लिए नायडू की दो दिन की पुलिस हिरासत दी।
विपक्षी तेलुगु देशम पार्टी के नेता को 10 सितंबर को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में हैं। आंध्र प्रदेश राज्य स्किल डेवेलपमेंट कॉर्पोरेशन के संबंध में करोड़ों रुपये के घोटाले को लेकर 2021 में एपी सीआईडी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में उन्हें 37वें आरोपी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस के. श्रीनिवास रेड्डी की एकल पीठ ने शुक्रवार को नायडू की ओर से सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे और एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा द्वारा उठाए गए तर्क को खारिज कर दिया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 ए के अनुसार एफआईआर के लिए पूर्व मंजूरी आवश्यक है।
जस्टिस के. श्रीनिवास रेड्डी ने कहा कि नायडू पर मुकदमा चलाने के लिए किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सार्वजनिक धन का उपयोग "सत्ता के रंग के तहत लेकिन वास्तव में अपने लाभ के लिए" को उनके आधिकारिक कार्यों के निर्वहन में किया गया कार्य नहीं माना जा सकता।
नायडू ने दावा किया था कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी अभियोजन पक्ष को भ्रष्टाचार निवारण की धारा 17ए के तहत मिली थी। यह भी प्रस्तुत किया गया कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है क्योंकि विचाराधीन प्रोजेक्ट चालू था और यह नहीं कहा जा सकता था कि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया गया। याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, दस्तावेजों के आधार पर पैसे के भुगतान की मंजूरी देने के लिए याचिकाकर्ता द्वारा लिया गया निर्णय या की गई सिफारिश और राशि का दुरुपयोग करने को उनके आधिकारिक कर्तव्यों या कार्यों के निर्वहन में उनके द्वारा किया गया कार्य नहीं माना जा सकता, इसलिए कथित अपराधों की जांच के लिए सक्षम प्राधिकारी से कोई पूर्व अनुमोदन आवश्यक नहीं था।