केंद्र को कॉलेजियम के प्रस्तावों को अलग-अलग करने का अधिकार नहीं, सुप्रीम कोर्ट के प्रस्तावों पर चुप्पी पर कार्यपालिका के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए: जस्टिस एमबी लोकुर
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से भेजे गए प्रस्तावों को अलग-अलग करने और नाम चुनने हकदार नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ कॉलेजियम प्रस्तावों को लंबित रखकर केंद्र ने अनुचित किया है।
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज न्यायिक नियुक्तियों के विषय पर लाइव लॉ के प्रबंध संपादक मनु सेबेस्टियन को दिए साक्षात्कार में ये बातें कहीं। कुछ प्रस्तावों को लंबित रखने के केंद्र के हालिया रवैये पर जस्टिस लोकुर ने कहा, "ऐसी अटकलों हैं कि सरकार इतना समय क्यों ले रही है, वे क्यों कुछ लोगों को चुन रहे हैं और दूसरों को नहीं। क्या किसी तरह का पक्षपात, भाई-भतीजावाद किया जा रहा है? यह सब इतना बड़ा रहस्य क्यों है? आपने दिल्ली का मामला सुना होगा, जहां नाम भेजे गए थे, जिनमें से दो लोगों को चुना गया और अन्य छह को नहीं चुना गया। उसके बाद, चार और लोग नियुक्त किए गए और दो नियुक्त नहीं किए गए और फिर उसके बाद, दो और लोगों नियुक्त किए गए। क्यों?
चीफ जस्टिस लोढ़ा ने कहा था कि किस एक समय पर वे नामों को अलग-अलग न करें। वास्तव में जो भेजा जा रहा है, वह एक सिफारिश है, जिसमें पांच या 10 नाम शामिल हैं। जिस ऑर्डर में भेजा जाता है, उसका एक कारण है। ऑर्डर का आधार वरिष्ठता हो सकता है या शायद बार काउंसिल के सदस्य के रूप में पंजीकरण की तारीख हो सकती है। जब आप नामों को अलग-अलग करते हैं तो आप उसे (ऑर्डर को) डिस्टर्ब करते हैं।
कॉलेजियम के प्रस्तावों पर केंद्र की चुप्पी
जस्टिस लोकुर ने कॉलेजियम के प्रस्तावों पर केंद्र की चुप्पी की आलोचना की। उन्होंने कहा कि कुछ नाम जिन्हें कॉलेजियम ने एक से अधिक बार भेजा है, उन्हें केंद्र ने नजरअंदाज कर दिया है। हालांकि न्यायिक मिसाल के अनुसार, कॉलेजियम नामों को दोहराता है तो वह कार्यपालिका के लिए बाध्यकारी है। नाम वापस करने के बाद भी कारण जानने का कोई उपाय नहीं है।
यह पूछे जाने पर कि इस प्रकार के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए, जस्टिस लोकुर ने कहा, "मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट सख्त होना चाहिए और पारदर्शिता होनी चाहिए।"
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न-
कॉलेजियम की चर्चा किस हद तक पारदर्शी होनी चाहिए?
जस्टिस लोकुर: मैं यह सुझाव नहीं दे रहा हूं कि कॉलेजियम के विचार-विमर्श की जानकारी जनता को दी जानी चाहिए। मैं इसका बिल्कुल भी सुझाव नहीं दे रहा हूं। लेकिन लोगों को पता होना चाहिए कि किन नामों पर विचार किया जा रहा है। यह संतुलन होना चाहिए और मैं पारदर्शिता के पक्ष में संतुलन को थोड़ा झुकाऊंगा। यह कोई नुकसान नहीं करता है।
चयन के कारण बताए जाने चाहिए
जस्टिस लोकुर : जिन लोगों की सिफारिश नहीं की जा रही है, क्या कारण बताए जा रहा है? मुझे नहीं लगता कि कारण बताए जाने चाहिए। यह निजता का मामला है, इसमें व्यक्ति की प्रतिष्ठा शामिल है, किसी व्यक्ति की सिफारिश नहीं करने के कई कारण हो सकते हैं।
मगर जब आपके पास दो लोग हैं, जो बेहतरीन हैं तो आपने एक को चुना और दूसरे को नहीं चुना- चयन करने का कारण बताना चाहिए?
यह केवल तभी ज्ञात किया जा सकता है जब कोई मानदंड निर्धारित किया गया हो और कोई मापदंड नहीं है जो निर्धारित किया गया है। एकमात्र मानदंड उम्र का है और हाईकोर्ट के मामले में, मानदंड भी आय का है। लेकिन हाईकोर्ट के जजों के लिए कोई अन्य मानदंड नहीं है और न ही सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए कोई मानदंड है। इसलिए यह कहना ठीक है कि हम सर्वश्रेष्ठ का चयन कर रहे हैं। बेशक, आप सर्वश्रेष्ठ का चयन कर रहे हैं। लेकिन उनका क्या जो श्रेष्ठ से बेहतर हैं? जो श्रेष्ठ से श्रेष्ठ हैं उनका चयन न करने का क्या कारण है? हमारे पास अतीत में उदाहरण हैं- जस्टिस कुरैशी एक उदाहरण हैं। उनका चयन कैसे नहीं हुआ? यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां हमें यह जानने की जरूरत है, जहां लोगों को जानने की जरूरत है, विशेष रूप से कानूनी बिरादरी के लोगों को, कि जो बेहतर से बेहतर हैं उन्हें क्यों नहीं चुना जा रहा है?
कोर्ट को चयन के लिए एक मानदंड बनाना चाहिए
जस्टिस लोकुर: मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट को बैठकर विचार-विमर्श करने और मानदंड तय करने का समय आ गया है। इंग्लैंड में मानदंड प्रकाशित किए गए हैं। इसलिए अब इन विवादों के सामने आने के साथ, मुझे लगता है कि हमें पुनर्विचार करने और एक मानदंड प्रकाशित करने की आवश्यकता है ताकि अफवाहे बिल्कुल न उठें। यह संस्था के लिए अच्छा नहीं है।"
चयन के लिए मानदंड क्या हो सकते हैं?
जस्टिस लोकुर: एक जज के रूप में व्यक्ति के प्रदर्शन में दो चीजें शामिल होती हैं- एक न्यायिक प्रदर्शन और दूसरा प्रशासनिक प्रदर्शन। आपके पास हर हाईकोर्ट में और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी समितियां हैं। अब एक जज वरिष्ठता के आधार पर, नालसा का अध्यक्ष बन सकता है, या सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति का अध्यक्ष बन सकता है या राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, या किसी अन्य परियोजना में शामिल हो सकता है, जैसे मैं ई-अदालतों की परियोजना, किशोर न्याय प्रबंधन, मध्यस्थता में शामिल रहा हूं।
यदि कोई व्यक्ति जिसके पास प्रशासनिक कौशल नहीं है, उसे नालसा या किसी अन्य समिति का अध्यक्ष बनाया जाता है, तो वह उस समिति की मदद नहीं करेगा। यह उस संगठन या संस्था की मदद नहीं करेगा। इसलिए मुझे लगता है कि प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ न्यायिक कार्य को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
परफॉर्मेंस की ऑडिटिंग पर
जस्टिस लोकुर: जब आप जिला अदालत या हाईकोर्ट से किसी जज का चयन कर रहे हैं तो परफॉर्मेंस ऑडिटिंग के बारे में बात की गई है। आपके पास किस प्रकार की परफॉर्मेंस ऑडिटिंग है? हाईकोर्ट के जज या हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जो सुप्रीम कोर्ट में आते हैं, उनकी परफॉर्मेंस ऑडिटिंग कैसे करें? आपके पास ऐसी स्थिति हो सकती है जहां चीफ जस्टिस उदाहरण के लिए, प्रशासनिक रूप से कमजोर हों। आप उन्हें सुप्रीम कोर्ट में ला सकते हैं, इसमें कोई कठिनाई नहीं है, लेकिन सुनिश्चित करें कि आप उन्हें प्रशासनिक कार्य नहीं देंगे। क्योंकि आप जानते हैं कि वह एक अच्छे प्रशासक नहीं है। मेरे विचार से यह सब ध्यान में रखा जाना चाहिए।
पूरा इंटरव्यू यहां देखें