केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक भूषण को NCLAT का अध्यक्ष नियुक्त किया

Update: 2021-10-29 08:32 GMT

केंद्र सरकार ने भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अशोक भूषण को चार साल की अवधि के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) का अध्यक्ष नियुक्त किया है।

जस्टिस अशोक भूषण इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।

मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने सुप्रीम कर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अशोक भूषण की राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की तारीख से चार साल की अवधि के लिए प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। यह नियुक्ति पद का कार्यभार ग्रहण करने या जब तक वह 70 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता जारी रहेगी। इस संबंध में कारपोरेट कार्य मंत्रालय को आवश्यक सूचना भेज दी गई है।

गौरतलब है कि सितंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि केंद्र सरकार ट्रिब्यूनल में नियुक्तियों को कैसे डील कर रही है।

सीजेआई एन. वी. रमाना ने न्यायाधिकरणों में रिक्तियों के मुद्दे की सुनवाई करते हुए NCLAT के अध्यक्ष के रूप में न्यायमूर्ति ए.आई.एस. चीमा की समयपूर्व सेवानिवृत्ति का मुद्दा में कहा था-

"विभाग ने 11 सितंबर को जल्दबाजी में व्यवस्था की है और उनकी जगह एक अन्य न्यायमूर्ति एम वेणुगोपाल ने ले ली है। मुझे नहीं पता कि यह कैसे हो रहा है और क्या हो रहा है? मुझे नहीं मालूम कि आपको इसकी सूचना है या नहीं।"

जस्टिस अशोक भूषण के बारे में

13 मई, 2016 को न्यायमूर्ति अशोक भूषण को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था। इससे पहले, वह अगस्त 2014 से केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे।

उन्होंने अपने कानूनी पेशे की शुरुआत 1979 में बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश में दाखिला लेकर की थी।

इसके बाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेंच में पदोन्नत होने तक सिविल और मूल पक्ष पर प्रैक्टिस शुरू की।

उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय, राज्य खनिज विकास निगम लिमिटेड और कई नगर बोर्डों, बैंकों और शिक्षा संस्थानों के स्थायी वकील के रूप में काम किया है।

उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष के रूप में भी चुना गया था।

अप्रैल 2001 में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण अयोध्या विवाद, मराठा आरक्षण, प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों, महामारी के दौरान ऋण स्थगन, COVID पीड़ितों के लिए अनुग्रह, आपराधिक और सेवा क्षेत्र आदि से संबंधित मामलों में कई महत्वपूर्ण निर्णयों का हिस्सा थे। उन्होंने सिविल में कानून के महत्वपूर्ण बिंदुओं को निपटाने वाले कई उल्लेखनीय निर्णय दिए हैं।

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