क्या हाईकोर्ट सेशन कोर्ट की अनदेखी करके अग्रिम ज़मानत याचिकाओं पर सुनवाई कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने मामला तीन जजों की बेंच को सौंपा
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह मुद्दा तीन जजों की बेंच को सौंप दिया कि क्या हाईकोर्ट सेशन कोर्ट में गए बिना दायर अग्रिम ज़मानत याचिकाओं पर सीधे विचार कर सकते हैं।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की दो जजों की बेंच ने आदेश दिया कि इस मामले को तीन जजों की बेंच के समक्ष रखा जाए।
सितंबर में वर्तमान पीठ ने मोहम्मद रसल सी बनाम केरल राज्य मामले में इस मुद्दे पर विचार किया था, जब केरल हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम ज़मानत मामलों पर सीधे विचार करने की प्रथा पर असहमति जताई गई। कोर्ट ने यह विचार व्यक्त किया कि यद्यपि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 482) हाईकोर्ट और सेशन कोर्ट को समवर्ती क्षेत्राधिकार प्रदान करती है, अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन सामान्यतः पहले सेशन कोर्ट में प्रस्तुत किए जाने चाहिए और असाधारण मामलों के लिए सीधे हाईकोर्ट का सहारा लिया जाना चाहिए।
बेंच ने सहायता के लिए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा को एमिक्स क्यूरी भी नियुक्त किया। पिछले महीने एमिक्स क्यूरी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को केवल चार असाधारण परिस्थितियों में ही अग्रिम ज़मानत आवेदनों पर सीधे सुनवाई करनी चाहिए।
लूथरा ने बुधवार को सुझाव दिया कि मामले को तीन जजों की बेंच के समक्ष रखा जाए। उन्होंने यह भी बताया कि केरल हाईकोर्ट एडवोकेट संघ ने इस मामले में स्वयं को पक्षकार बनाने के लिए एक याचिका दायर की है। सीनियर एडवोकेट एस नागमुथु ने केएचसीएए का प्रतिनिधित्व किया।
बेंच ने मामले को तीन जजों की बेचं के समक्ष रखने का निर्देश देते हुए सुनवाई स्थगित कर दी।
बेंच ने आदेश में कहा,
"इस मामले की सुनवाई तीन जजों की बेंच द्वारा किए जाने की आवश्यकता है। जब भी तीन जजों की बेंच गठित होगी, मामले को सूचीबद्ध किया जा सकता है।"
Case Title: MOHAMMED RASAL.C & ANR. VERSUS STATE OF KERALA & ANR., SLP (Crl.) No. 6588/2025