भीमा कोरेगांव मामला: वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भीमा कोरेगांव-आरोपी और कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा की जमानत याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। दोनों अगस्त 2018 से गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत कथित अपराधों के लिए जेल में बंद हैं।
उन्हें 2018 में पुणे के भीमा कोरेगांव में हुई जाति-आधारित हिंसा के सिलसिले में और प्रतिबंधित वामपंथी संगठन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से कथित संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
गोंसाल्वेस और फरेरा ने दिसंबर 2021 के एक आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसके तहत बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया था। जबकि एक अन्य सह-आरोपी सुधा भारद्वाज को भी यही लाभ दिया गया था।
इस आदेश पर दो याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर बाद की पुनर्विचार याचिका में सवाल उठाया गया था, हाईकोर्ट ने पिछले साल मई में उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया था।
खंडपीट का अवलोकन
गौरतलब है कि इस हाईप्रोफाइल मामले में सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है और विचाराधीन कैदी अगस्त के अंत से ही जेल में बंद हैं। कोर्ट यह बताया गया कि लगभग पांच साल बीत जाने के बावजूद अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं।
अदालत को यह भी बताया गया कि एजेंसी 336 गवाहों से पूछताछ करना चाहती है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के इस आश्वासन के जवाब में कि मुकदमे को जल्द ही शुरू किया जाएगा, जस्टिस धूलिया ने कहा, "यहां तक कि एक साल लगेगा।"
उन्होंने यह भी पूछा, "आपको इतने सारे गवाहों की आवश्यकता क्यों है, जब कम गवाह भी आपके मामले की पुष्टि कर सकते हैं? बहुत से लोगएक ही बात दोहराएं, इसका क्या मतलब है?”
खंडपीठ ने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
केस टाइटल
1. वेरनॉन बनाम महाराष्ट्र राज्य | 2022 की विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 5423
2. अरुण बनाम महाराष्ट्र राज्य | 2 की डायरी संख्या 24825