भीमा-कोरेगांव केस | सुप्रीम कोर्ट मेडिकल आधार पर अंतरिम जमानत के लिए शोमा सेन की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत

Update: 2023-08-23 08:15 GMT

सुप्रीम कोर्ट बुधवार को अंग्रेजी प्रोफेसर और भीमा कोरेगांव की आरोपी शोमा सेन द्वारा उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के आधार पर दायर अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया।

जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ बॉम्बे हाईकोर्ट के 17 जनवरी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उक्त आदेश में हाईकोर्ट ने सेन को जमानत के लिए अपने मामले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत से संपर्क करने का निर्देश दिया था।

सोमा सेन पुणे के भीमा कोरेगांव में 2018 में हुई जाति-आधारित हिंसा और प्रतिबंधित संगठन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लोगों के साथ कथित संबंध के सिलसिले में गिरफ्तार होने के बाद वह जून 2018 से गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत अपराध के लिए जेल में बंद हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मई में सह-अभियुक्त ज्योति जगताप की जमानत याचिका के साथ सेन की विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के आदेश पर मामले को 4 अक्टूबर तक स्थगित करने का निर्देश देने से पहले खंडपीठ ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड नूपुर कुमार के माध्यम से सेन द्वारा मेडिकल आधार पर दायर अंतरिम जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया।

जस्टिस बोस ने संक्षिप्त सुनवाई के दौरान, सेन की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर से पूछा,

"क्या यह मामला उन दोनों के समान है, जिन्हें हाल ही में इस अदालत ने जमानत पर रिहा कर दिया?"

पिछले महीने सह-आरोपी गोंसाल्वेस और फरेरा को लगभग पांच साल की हिरासत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी थी।

जस्टिस बोस ने जस्टिस सुधांशु धूलिया के साथ कारावास की अवधि पर विचार करने के अलावा, यह भी माना कि अकेले आरोपों की गंभीरता जमानत से इनकार करने और उनकी निरंतर हिरासत को उचित ठहराने का आधार नहीं हो सकती है।

सेन की बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य के साथ-साथ कैद में बिताई गई अवधि पर प्रकाश डालते हुए ग्रोवर ने जवाब दिया,

“यह और भी गंभीर है। उन्हें हिरासत में रखने का कोई कारण नहीं है। वह पांच साल से अधिक समय से अंदर हैं। मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ है। यहां तक कि आरोप भी तय नहीं किए गए हैं।”

मामले की पृष्ठभूमि

अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर और नागपुर यूनिवर्सिटी में पूर्व विभागाध्यक्ष शोमा सेन के साथ-साथ 15 अन्य लोगों पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने पुणे के भीमा कोरेगांव में जातीय हिंसा के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया। हालांकि उनमें से एक ईसाई पादरी और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी का जुलाई 2021 में निधन हो गया।

पुणे पुलिस और बाद में एनआईए ने तर्क दिया कि एल्गार परिषद में भड़काऊ भाषण-कोरेगांव भीमा की लड़ाई की दो सौवीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित कार्यक्रम- ने भीमा कोरेगांव गांव के पास मराठा और दलित समूहों के बीच हिंसक झड़पों को जन्म दिया। इसके चलते 16 कार्यकर्ताओं को कथित तौर पर हिंसा की साजिश रचने और योजना बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। मामले में मुख्य रूप से उनके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से प्राप्त पत्रों और ईमेल के आधार पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए।

सेन को पुणे पुलिस ने 6 जून, 2018 को गिरफ्तार किया। अगले वर्ष पुणे की एक सत्र अदालत ने जांच से पहले सुरेंद्र गाडलिंग, सुधीर धवले, वरवरा राव, शोमा सेन, महेश राउत और रोना विल्सन की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं। जनवरी 2020 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया। उसी वर्ष जून में विशेष एनआईए अदालत ने सेन की अंतरिम मेडिकल जमानत याचिका खारिज कर दी, जो उस समय 61 वर्ष की थी। साथ ही कवि और सोशल एक्टिविस्ट वरवर राव की इसी तरह की याचिका भी खारिज कर दी थी।

2021 में सेन और आठ अन्य आरोपियों द्वारा डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए सामान्य आवेदन दायर किया गया, जिसे पुणे की विशेष अदालत ने खारिज कर दिया। इसे बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन दिसंबर 2021 में एक्टिविस्ट और वकील सुधा भारद्वाज को डिफ़ॉल्ट जमानत देने के बावजूद, जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जमादार की खंडपीठ ने आठ अन्य सुधीर दावाले, पी वरवरा राव, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया। उनमें से तेलुगु कवि और एक्टिविस्ट वरवरा राव को पिछले साल मेडिकल आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर रिहा कर दिया।

इस साल की शुरुआत में जनवरी में बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रोफेसर सेन द्वारा दायर एक और जमानत याचिका का निपटारा कर दिया। यह देखते हुए कि एनआईए ने उनके खिलाफ पूरक आरोप पत्र दायर किया, जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस पीडी नाइक की खंडपीठ ने सेन को विशेष अदालत से संपर्क करने के लिए कहा।

यह देखा गया कि पुणे सत्र अदालत द्वारा पूरक आरोप पत्र के मद्देनजर उसकी जमानत से इनकार करने के बाद से परिस्थितियां बदल गई। कहा गया कि विशेष अदालत को उसकी याचिका पर पुनर्विचार करने का अवसर दिया जाना चाहिए।

केस टाइटल- शोमा कांति सेन बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 4999/2023

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