केस डायरी और अन्य सुबूतों से आरोप प्रथमदृष्टया उचित लगे तो यूएपीए की धारा एस 43 डी (5) के तहत रोक लागू रहेगी:छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Update: 2020-01-04 06:44 GMT

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि केस डायरी या रिकॉर्ड पर रखी गई किसी भी अन्य सामग्री को पढ़ने पर यदि अभियुक्त के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है तो आरोपी पर अनलॉफुल ‌एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्‍ट की धारा 43D(5)1967 लागू होगी और आरोपी को जमानत नहीं दी जाएगी।

उक्त प्रावधान यह कहता है कि यूएपीए के चैप्टर IV और VI के तहत दंडनीय अपराध के आरोपी व्यक्ति को कोर्ट डायरी या सीआरपीसी की धारा 173 के तहत तैयार रिपोर्ट के अध्ययन के बाद यद‌ि कोर्ट का मानना ​​है कि व्यक्ति के खिलाफ आरोप सही हैं तो में उसे जमानत या खुद के बांड पर रिहा नहीं किया जाएगा।

पृष्ठभूमि 

मौजूदा मामले में अपीलकर्ता पर देश विरोधी बैनर और पर्चे लगाने का आरोप लगाया गया है। उस पर कथित रूप से माओवादी संगठनों, जिन्हें छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रतिबंधति किया है, द्वारा चलाए जा रहे नक्सल आंदोलन के प्रचार के लिए ब्लॉग लेखन में शामिल होने का का आरोप था।

आरोपी के खिलाफ आईपीसी, यूएपीए और छत्तीसगढ़ स्पेशल पब्लि‌क स‌िक्योरिटी एक्ट, 2005 के तहत आरोप तय किए गए थे। उसकी जमानत याचिका को एनआईए कोर्ट खारिज कर चुकी थी, जिसके बाद मौजूदा अपील दायर की गई।

अपनी दलील में उसने कहा कि न तो डायरी के बयान और न ही बरामद किए गए किसी सुबूत उस पर आरोप साबित करते हैं। इसके अलावा, चूंकि संगठन को छत्तीसगढ़ में प्रतिबंधित किया गया है, इसलिए कर्नाटक में की गई ब्लॉग पोस्ट या सोशल मीडिया पोस्ट को अपराध का आधार नहीं बनाया जा सकता है।

जांच के नतीजे

अपीलकर्ता की दलीलों को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने उनके निवास से हाथ से लिखी डायरी जब्त की थी, जिसके आधार पर उन पर आरोप लगाया गया। पुलिस ने उनके ब्लॉग का डेटा एनालिसिस भी तैयार किया, जिसमें आपत्तिजनक और राष्ट्रविरोधी सामग्री थी।

इस प्रकार, धारा 43D(5) के उक्त प्रावधान की रोशनी में कोर्ट ने कहा,

"मामले में जांच अधिकारी द्वारा एकत्र की गई सामग्री है, यह मानने का उचित आधार देती है कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगे आरोप प्रथम दृष्टया सही है। इसलिए ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।"

अदालत ने स्पष्ट किया कि "जमानत याचिका पर विचार करते हुए अभियोजन पक्ष द्वारा एकत्रित की गई सामग्री को खारिज़ किए जाने की आवश्यकता नहीं है और न ही इनकी स्वीकार्यता अन्यथा आदि पर इस स्तर पर विचार किया जाना चाहिए। यदि केस डायरी और अन्य सामग्रियों से पता चला है कि आरोपी के खिलाफ लगे अरोप प्रथम दृष्टया सही हैं तो अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट 1967 की धारा 43 डी की उपधारा (5) के तहत रोक लागू होगी।"

राष्ट्रीय जांच एजेंसी बनाम ज़हूर अहमद शाह वटाली, (2019) 5 SCC 1 मामले पर भरोसा कायम किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "जांच एजेंसी द्वारा एकत्र की गई सामग्री की समग्रता और केस डायरी सहित प्रस्तुत रिपोर्ट को स्वीकार किया जाना आवश्यक है न कि साक्ष्य या परिस्थिति की एक-एक पहलु का विश्लेषण किया जाना. "

मामले का विवरण:

केस टाइटल: अभय नायक बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

केस नं .: CRA नंबर 1213/2019

कोरम: जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस गौतम चौरड़िया

वकील: सीनियर एडवोकेट डा युगमोहित चौधरी के साथ एडवोकेट पायोशी और किशोर नारायण (अपीलार्थी के लिए): अपर एडवोकेट जनरल फौज़िया मिर्ज़ा के साथ एडवोकेट केके सिंह (राज्य के लिए)

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