जमानत देते समय पीड़ित को मुआवजा देने की शर्त नहीं लगाई जा सकतीः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जमानत देते समय पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान करने की शर्त नहीं लगाई जा सकती है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने स्पष्ट किया कि,
''हम यह कहने में जल्दबाजी कर सकते हैं कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि जमानत देने के लिए कोई मौद्रिक शर्त नहीं लगाई जा सकती है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि संपत्ति के खिलाफ या अन्यथा अपराध के मामले भी होते हैं, लेकिन इस तरह के आदेश की स्वीकृति (ग्रांट) किसी व्यक्ति को जमानत देने की शर्त के रूप में है तो यह मुआवजा जमा करने के लिए नहीं हो सकता है।''
इस मामले में, आरोपियों को हाईकोर्ट ने इस शर्त के साथ जमानत दी थी कि उन्हें पीड़ितों को दिए जाने वाले मुआवजे के रूप में प्रत्येक को 2-2 लाख रुपये जमा करने होंगे।
शीर्ष अदालत के समक्ष, आरोपी ने तर्क दिया कि सीआरपीसी की धारा 357 के तहत, मुआवजा केवल मुकदमे के समापन के बाद ही दिया जा सकता है और पूर्ण सुनवाई के बिना सजा नहीं हो सकती है और इस प्रकार, ऐसा कोई मुआवजा नहीं हो सकता है। इन तर्कों को मंजूरी देते हुए, पीठ ने कहा किः
''16. हमारे विचार में उद्देश्य स्पष्ट है कि शरीर के विरुद्ध अपराधों के मामलों में, पीड़ित को मुआवजा विमोचन के लिए एक पद्धति होनी चाहिए। इसी तरह, अनावश्यक उत्पीड़न को रोकने के लिए, जहां अर्थहीन आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी, वहां मुआवजा प्रदान किया गया है। परंतु जमानत देने के स्तर पर इस तरह के मुआवजे का निर्धारण मुश्किल हो सकता है...
17. हम यह कहने में जल्दबाजी कर सकते हैं कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि जमानत देने के लिए कोई मौद्रिक शर्त नहीं लगाई जा सकती है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि संपत्ति के खिलाफ या अन्यथा अपराध के मामले भी होते हैं, लेकिन इस तरह के आदेश की स्वीकृति (ग्रांट) किसी व्यक्ति को जमानत देने की शर्त के रूप में है तो यह मुआवजा जमा करने के लिए नहीं हो सकता है।''
इस प्रकार निर्णय लेने के बाद, पीठ ने उस शर्त को रद्द कर दिया,जिसमें पीड़ितों को मुआवजा देने के रूप में प्रत्येक को 2-2 लाख रुपये जमा कराने के लिए कहा गया था।
खंडपीठ ने आंशिक रूप से अपील की अनुमति देते हुए कहा कि,
''पूर्वोक्त के मद्देनजर, हम अपीलकर्ताओं पर जमानत देने के लिए समान नियम और शर्तें लागू करना उचित समझते हैं और जमानत की शर्त (एफ) जिसमें अपीलकर्ताओं को पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए प्रत्येक को ट्रायल कोर्ट के समक्ष 2-2 लाख रुपये जमा करने की आवश्यकता थी और संवितरण के लिए परिणामी आदेशों को रद्द करते हैं। इस शर्त के बदले यह शर्त लगाई जा रही है कि अपीलकर्ता छह (6) महीने की अवधि के लिए अमरेली की भौगोलिक सीमा में संबंधित पुलिस स्टेशन के समक्ष उपस्थिति दर्ज करने और अदालती कार्यवाही में भाग लेने के अलावा किसी अन्य कारण से प्रवेश नहीं करेंगे।''
केस का शीर्षकः धर्मेश उर्फ धर्मेंद्र उर्फ धामो जगदीशभाई उर्फ जगभाई भागूभाई रताडिया बनाम गुजरात राज्य , सीआरए 432/2021
कोरमः जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता
उद्धरणः एलएल 2021 एससी 292
निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें