'लॉस ऑफ कंसोर्टियम'के अलावा अलग से 'लॉस ऑफ लव एंड अफेक्शन'का मुआवजा न्यायोचित नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-07-02 14:21 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दाम्पत्य जीवन के तहत साथ जीवन व्यतीत करने के अधिकार (लॉस ऑफ कंसोर्टियम) के समाप्त होने को लेकर मुआवजा दिये जाने के बावजूद अलग से 'प्यार एवं स्नेह' के अधिकार की हानि को लेकर मुआवजा देने के आदेश का कोई औचित्य नहीं है।

न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने कहा कि प्यार और स्नेह की हानि दाम्पत्य जीवन के सम्पूर्ण अधिकारों की हानि में सम्मिलित है। प्यार और स्नेह का अधिकार दाम्पत्य जीवन के अधिकारों का ही एक हिस्सा है।

खंडपीठ एक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बीमा कंपनी और दावेदार दोनों की अपील पर विचार कर रही थी। दावेदार के पति की 1998 में मोटर वाहन दुर्घटना में मौत हो गयी थी।

पीठ ने अपने फैसले में दुर्घटना मृत्यु के मामलों में मुआवजे के आकलन के लिए प्रासंगिक सिद्धांतों को एक बार फिर स्पष्ट किया। फैसले में मुख्यतया गुणक और वास्तविक गणना का निर्धारण करके गुण्य के निर्धारण के संदर्भ में 'सरला वर्मा एवं अन्य बनाम दिल्ली परिवहन निगम एवं अन्य' के मामले में जारी दिशानिर्देशों को संदर्भित किया गया है। कोर्ट ने उल्लेख किया कि मौत के मामले में मुआवजे के निर्धारण के लिए जिन बातों पर विचार करना होता है, वे हैं :-

(एक) मृत्यु के समय मृतक की आयु,

(दो) मृतक के परिवार में आश्रितों की संख्या और

(तीन) मृत्यु के वक्त मृतक की आय, 

इस परिप्रेक्ष्य में खंडपीठ ने कहा कि दाम्पत्य जीवन के सम्पूर्ण अधिकारों की हानि और प्रेम एवं स्नेह के अधिकार की हानि के संदर्भ में एकरूपता प्रदान करना आवश्यक है।

कोर्ट ने कहा :

"कई न्यायाधिकरण और हाईकोर्ट 'लॉस ऑफ कंसोर्टियम' और 'लॉस ऑफ लव एंड अफेक्शन'दोनों की हानि के लिए अपना निर्णय सुना रहे हैं। 'प्रणय सेठी' मामले में संविधान पीठ ने केवल तीन ही प्रमुख मदों को मान्यता दी है, जिसके तहत मुआवजा दिये जा सकते हैं और वे हैं- सम्पत्ति का नुकसान, दाम्पत्य जीवन के अधिकार की हानि और दाह-संस्कार पर होने वाला खर्च।

'मैग्मा जनरल'मामले में इस कोर्ट ने 'कंसोर्टियम'की व्यापक व्याख्या की थी और इसमें पत्नी, माता-पिता और संतान का साथ शामिल किया था। प्रेम एवं स्नेह के नुकसान को दाम्पत्य के सम्पूर्ण अधिकारों के नुकसान में शामिल किया गया है। न्यायाधिकरणों और हाईकोर्ट को यह निर्देश दिया जाता है कि वे 'लॉस ऑफ कंसोर्टियम'के लिए मुआवजा का आदेश दें, जो एक वैध पारम्परिक मद है। प्रेम एवं स्नेह के नुकसान के लिए अलग से मुआवजे के निर्धारण का कोई औचित्य नहीं है।"

पीठ ने मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए अपील का निबटारा कर दिया तथा दावाकर्ता को 19 लाख 82 हजार 563 रुपये मुआवजा के तौर पर देने का आदेश दिया।

केस नं. : सिविल अपील नं. 2705/2020

केस का नाम : यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम सतिन्दर कौर @ सतविंदर कौर

कोरम : न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस 


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