अनुच्छेद 227 के तहत याचिकाओं पर विचार करते वक्त हाईकोर्ट खुद को 'कोर्ट ऑफ अपील' में तब्दील नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

Article 227 of the Constitution of India, a High Court cannot convert itself into a court of appeal

Update: 2020-06-27 09:46 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत किसी याचिका पर सुनवाई करते वक्त हाईकोर्ट खुद को अपीलीय कोर्ट में तब्दील नहीं कर सकता।

इस मामले में, किराया नियंत्रक एवं बेदखली अधिकारी, ने विवादित सम्पत्ति के मालिक की अर्जी मंजूर करते हुए उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किरायेदारी, किराया तथा बेदखली नियमन) अधिनियम, 1972 के तहत विवादित परिसर खाली करने का अंतिम आदेश पारित किया था।

किरायेदार द्वारा दायर संशोधन याचिका मंजूर करते हुए जिला जज ने उपरोक्त आदेश को निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत विवादित परिसम्पत्ति के मालिक द्वारा दायर याचिका मंजूर कर ली थी और जिला जज के आदेश को इस आधार पर दरकिनार दिया था कि जिला जज ने विवादित सम्पत्ति खाली करने के आदेश और अंतिम आदेश के खिलाफ संयुक्त संशोधन याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार करके कानूनन गलत किया था।

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति बी आर गवई की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने 'आचल मिश्रा बनाम रमाशंकर सिंह' मामले में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ के फैसले में तय कानूनी स्थिति की अनदेखी की, जिसमें यह विशेष रूप से कहा गया था कि भले ही कोई पार्टी रिट याचिका के जरिये बेदखली आदेश को चुनौती नहीं भी देती है तो भी संबंधित कानून की धारा 16 के तहत जारी अंतिम आदेश के साथ बेदखली आदेश को धारा 18 के तहत संशोधन याचिका में चुनौती देने का उस पार्टी का विकल्प खुला रहता है।

बेंच ने कहा कि इस मामले के मद्देनजर, जिला जज का किराया नियंत्रक एवं बेदखली अधिकारी की ओर से जारी आदेश में हस्तक्षेप करना पूरी तरह से न्यायसंगत था।

हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए बेंच ने यह भी कहा कि उसने (हाईकोर्ट ने) संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए जिला जज की ओर से जारी तार्किक आदेश में हस्तक्षेप करके गलती की है।

बेंच ने कहा :

"यह कानून का प्रतिपादित सिद्धांत है कि संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते वक्त हाईकोर्ट खुद को अपीलीय न्यायालय में तब्दील नहीं कर सकता। यह भी समान रूप से प्रतिपादित सिद्धांत है कि पर्यवेक्षेण संबंधी अधिकार अधीनस्थ न्यायाधिकरणों को अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर रखने और यह निगरानी करने के लिए बढ़ाये गये हैं कि वे कानून का पालन करते रहें।

यह भी कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत प्रदत्त अधिकार व्यापक हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल संयमित तरीके से तथा केवल अधीनस्थ अदालतों एवं न्यायाधिकरणों को उनके अधिकार क्षेत्र के दायरे में रखने के लिए किया जाना चाहिए, न कि महज भूल सुधार के लिए।"

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपने जिस अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल किया, वह साफ तौर पर अवांछित और गैर-न्यायोचित था।

केस न.: सिविल अपील नं. 2697/2020

केस का नाम : मोहम्मद इनाम बनाम संजय कुमार सिंघल

कोरम : न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति बी आर गवई

वकील : वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार शर्मा और अधिवक्ता अरविंद कुमार गुप्ता


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