अनुच्छेद 136 के तहत हस्तक्षेप का कारण केवल यह नहीं कि हाईकोर्ट के फैसले पर अलग दृष्टिकोण संभव: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत हस्तक्षेप का कारण केवल यह नहीं कि हाईकोर्ट के फैसले पर एक अलग दृष्टिकोण संभव है।
जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ निजी वनों के अधिकार ( केरल राज्य बनाम पॉपुलर इस्टेट) संबंधित एक मामले में केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर एक अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की ।
हाईकोर्ट द्वारा दर्ज किए गए तथ्यात्मक निष्कर्षों में हस्तक्षेप को अस्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "...जहां रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों से प्राप्त निष्कर्ष पर दो संभावित दृष्टिकोण मौजूद हों, यह अदालत संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अपने विवेकाधीन अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए निष्कर्षों में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
इस संबंध में जस्टिस रवींद्र भट द्वारा लिखित निर्णय में प्रीतम सिंह बनाम राज्य 1950 एससीआर 453, तिरुपति बालाजी डेवलपर्स प्रा. लिमिटेड बनाम बिहार राज्य (2004) 5 एससीसी 1, जमशेद होर्मुसजी वाडिया बनाम बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़, पोर्ट ऑफ मुंबई (2004) 3 एससीसी 214, यूनियर ऑफ इंडिया बनाम गंगाधर नरसिंगदास अग्रवाल और अन्य (1997) 10 एससीसी 305, जय मंगल उरांव बनाम मीरा नायक (श्रीमती) और अन्य (2000) 5 एससीसी 141 की संदर्भों को उल्लेख किया गया।
कोर्ट ने कहा,
"... यूनियन ऑफ इंडिया बनाम गंगाधर नरसिंहदास अग्रवाल और अन्य में, इस अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अपनी शक्ति के प्रयोग में हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि भले ही दो विचार संभव हों, हाईकोर्ट द्वारा लिया गया विचार प्रशंसनीय है, यह इस अदालत के हस्तक्षेप की मांग नहीं करता है। इसी तरह का विचार जय मंगल उरांव बनाम मीरा नायक (श्रीमती) और अन्य में व्यक्त किया गया था, जिसमें इस अदालत ने कहा था कि जब हाईकोर्ट द्वारा दिए गए तर्क और निष्कर्ष में कुछ भी अवैध और गलत नहीं हो और यह योग्य प्रतीत होता है और वैधानिक प्रावधानों की व्याख्या के अनुसार प्रतीत होता है तो यह न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
फैसले में ताहेराखातून (डी) Lrs द्वारा बनाम सलामबिन मोहम्मद (1992) 2 एससीसी 635 को कोट किया गया, "... भले ही हम अब विशेष अनुमति के बाद अपील पर विचार कर रहे हैं, हम योग्यता को समझने के लिए बाध्य नहीं हैं और भले ही हम ऐसा करते हैं और कानून घोषित करते हैं या त्रुटि बताते हैं- फिर भी हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं, यदि मामले के तथ्यों के अनुसार न्याय में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है या अगर हमें लगता है कि राहत को एक अलग तरीके से दिया जा सकता है।"
केस शीर्षक: केरल राज्य और अन्य बनाम मेसर्स पॉपुलर एस्टेट्स (अब भंग) और अन्य | 2011 की सिविल अपील संख्या 903
सिटेशन: एलएल 2021 एससी 619
कोरम: जस्टिस इंदिरा बनर्जी और एसआर भाटी