एक्सक्यूशन प्रोसिडिंग्स के तहत एनसीडीआरसी द्वारा जारी आदेश के खिलाफ अपील उपभोक्ता संरक्षण कानून की धारा 23 के तहत सुनवाई योग्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-09-02 08:37 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आदेश पर अमल कराने संबंधी न्यायिक कार्यवाही (एक्सक्यूशन प्रोसिडिंग्स) के तहत राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटारा आयोग (एनसीडीआरसी) द्वारा जारी आदेश के खिलाफ उसके समक्ष दायर अपील सुनवाई योग्य नहीं है।

एनसीडीआरसी ने मेसर्स एम्बिएंश इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड को आदेश दिया था कि वह शिकायतकर्ता को नवम्बर 2002 से रखरखाव शुल्क का 70 प्रतिशत हिस्सा नौ प्रतिशत सालाना ब्याज दर के साथ जोड़कर 90 दिन के भीतर भुगतान करे या 12 प्रतिशत सालाना की बढ़ी हुई दर पर भुगतान करे। एनसीडीआरसी का यह आदेश डिक्री पर अमल संबंधी याचिका की सुनवाई करते हुए जारी किया गया था।

उपभोक्ता संरक्षण कानून की धारा 23 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि धारा 23 के तहत अपील उस आदेश के खिलाफ सुनवाई योग्य होती है, जिसे एनसीडीआरसी ने उस शिकायत पर जारी किया हो, जहां दावा की गयी वस्तु या सेवा एवं मुआवजे की राशि वर्णित सीमा से ऊपर हो।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की खंडपीठ ने 'कर्नाटक हाउसिंग बोर्ड बनाम के. ए. नागमणि (2019) 6 एससीसी 424' मामले में दिये गये फैसले का उल्लेख किया, जिसमें एक्सक्यूशन प्रोसिडिंग्स और ऑरिजिनल प्रोसिडिंग्स (मूल मुकदमे) में विभेद किया गया था और जिसमें यह व्यवस्था दी गयी थी कि डिक्री पर अमल संबंधी न्यायिक कार्यवाही अर्थात एक्सक्यूशन प्रोसिडिंग्स अलग और स्वतंत्र है। बेंच ने अपील सुनवाई योग्य न मानते हुए उसे खारिज कर दी और कहा :

"हमारे विचार से, उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 की धारा 23 के तहत डिक्री पर अमल संबंधी न्यायिक कार्यवाही के क्रम में जारी आदेश के खिलाफ अपील इस कोर्ट के समक्ष नहीं टिकेगी। इसलिए अपील अस्वीकारणीय करार देते हुए खारिज की जाती है।"

के. ए. नागमणि मामले में यह व्यवस्था दी गयी थी कि उपभोक्ता विवाद में अंतिम आदेश (डिक्री) पर अमल के लिए जारी आदेश को 'उपभोक्ता विवाद' में जारी आदेश के तौर पर नहीं समझा जाएगा।

नये उपभोक्ता संरक्षण कानून, 2019 के अनुसार, राष्ट्रीय आयोग द्वारा धारा 58 की उपधारा (एक) के क्लॉज (ए) के सब-क्लॉज (i) या (ii) के तहत प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करके दिये गये आदेश के खिलाफ पीड़ित व्यक्ति आदेश जारी करने की तिथि से 30 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सकता है। सब-क्लॉज (i) उन शिकायतों से संबंधित है जहां वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए भुगतान की सीमा 10 करोड़ रुपये से अधिक होती है, जबकि सब-क्लॉज (ii) अनुचित अनुबंधों के खिलाफ शिकायत से संबंधित है, जहां वस्तुओं एवं सेवाओं के भुगतान की सीमा 10 करोड़ रुपये से अधिक है।

केस का ब्योरा :

केस का नाम : मेसर्स एम्बिएंश इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम एम्बिएंश आईलैंड अपार्टमेंट ऑनर्स

केस नंबर . सिविल अपील नंबर 1213-1215/201

कोरम : न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ

वकील : सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड कामिनी जायसवाल 

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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