किसी मामले में पहले से गिरफ्तार अभियुक्त का अन्य मामले में अग्रिम जमानत आवेदन सुनवाई योग्य या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने कानून का सवाल खुला छोड़ा

Update: 2023-01-15 08:28 GMT

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में तेजेश सुमन बनाम राजस्थान राज्य [SLP (Crl) No 11122/2022] में अग्रि‌म जमानत के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण प्रश्न को कानून के लिए खुला छोड़ दिया।

यह स्थापित कानून है कि जब अभियुक्त को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है, तब उस मामले में अग्रिम जमानत का आवेदन नहीं किया जाएगा। हालांकि यह प्रश्न कि जब एक व्यक्ति को उस मामले को छोड़कर, जिसमें उसे पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है, किसी अन्य मामले में गिरफ्तार किया जाता है तो क्या ऐसे मामले में अग्र‌िम जमानत याचिका सुनवाई योग्य है।

सुप्रीम कोर्ट ने तेजेश सुमन मामले में इस प्रश्न का जवाब दिया। तेजेश सुमन मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को प्राप्त अंतरिम संरक्षण को रद्द कर दिया था, क्योंकि उसे एक अन्य मामले में हिरासत में लिया गया था। अभियुक्तों की ओर से पेश एडवोकेट नमित सक्सेना ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि उक्त मुद्दे पर विभिन्न उच्च न्यायालयों के अलग-अलग विचार हैं।

सुनील कालानी बनाम राजस्थान राज्य [CRLMB - 9155/2019] में राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि ".... एक व्यक्ति जो पहले से ही हिरासत में है, उसके पास यह भरोसा करने का कारण नहीं हो सकता कि उसे गिरफ्तार किया जाएगा क्योंकि वह पहले से ही गिरफ्तार है। इसके मद्देनजर, धारा 438 सीआरपीसी के तहत जमानत याचिका दायर करने के लिए पूर्व शर्त कि, "यह मानने का कारण है कि उसे गिरफ्तार किया जा सकता है" लागू नहीं होगी, क्योंकि याचिकाकर्ता या वह व्यक्ति पहले से ही किसी अन्य मामले में गिरफ्तार है और पुलिस हिरासत या जेल में हिरासत में है।

कोर्ट ने आगे कहा कि अग्रिम जमानत की याचिका दायर नहीं होगी, और उस पर सुनवाई नहीं होगी, यदि कोई व्यक्ति पहले से ही गिरफ्तार है और किसी अन्य आपराधिक मामले में पुलिस या न्यायिक हिरासत में है....।

इसके विपरीत, अलनेश अकील सोमजी बनाम महाराष्ट्र राज्य [एंटीसिपेटरी बेल एप्‍लिकेशन नंबर 2857/2021] में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनील कालानी में राजस्थान हाईकोर्ट के दृष्टिकोण की पुष्टि ना करते हुए कहा था कि अव्‍वल यह कि, जब कोई व्यक्ति पहले से ही किसी अन्य अपराध में न्यायिक या पुलिस हिरासत में है तो भी सीआरपीसी या कोई भी कानून सेशन कोर्ट या हाईकोर्ट को अग्रिम जमानत पर सुनवाई करने या तय करने पर रोक नहीं लगाता और दूसरा बिंदु यह कि रोक को किसी अन्य मामले में कि गई गिरफ्तारी तक बढ़ाया नहीं जा सकता, यह प्रावधान के उद्देश्य खिलाफ होगा।

एडवोकेट नमित सक्सेना ने प्रस्तुत किया कि हाल ही में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मुद्दे का निस्तारण किया था। राजेश कुमार शर्मा बनाम सीबीआई [Criminal Misc Anticipatory Bail Application u/s 438 CrPC No. – 4633/2022] में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नौ दिसंबर, 2022 को एक आदेश पारित किया था, जिसके मुताबि‌क अलनेश अकील सोमजी में बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय को नोट नहीं किया गया था और सिंगल जज ने सुनील कालानी में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के अनुपालन का फैसला किया था और कहा कि चूंकि आवेदक एक अन्य मामले में हिरासत में था, इसलिए अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

हालांकि, वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता तेजेश सुमन को हिरासत में ले लिया गया था और बाद में नियमित जमानत पर रिहा कर दिया गया था, इसलिए याचिका निरर्थक हो गई थी।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि विवादित आदेश को याचिकाकर्ता के अन्य लंबित मामलों के लिए मिसाल के तौर पर नहीं माना जाएगा। उचित मामले में निर्णय लेने के लिए कानून के प्रश्न को खुला रखा गया ।

केस टाइटल: तेजेश सुमन बनाम राजस्थान राज्य

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