सुप्रीम कोर्ट की एक और पीठ ने 'एशियन रिसर्फेंसिंग' फैसले पर चिंता व्यक्त की, कहा- स्थगन आदेश को स्वत: हटाना पूर्वाग्रह का कारण बन रहा
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट एक पीठ ने एक दिसंबर को एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी लिमिटेड डायरेक्टर बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो के मामले में अपने 2018 के फैसले पर संदेह व्यक्त किया था। उस फैसले में हाईकोर्ट और अन्य अदालतों की ओर से दीवानी और आपराधिक मामलों में दिया गया स्थगन आदेश छह महीने के बाद स्वतः समाप्त हो जाएगा, जब तक कि ऐसे आदेशों विशेष रूप से बढ़ाए नहीं जाते हैं। संयोग से उसी दिप सुप्रीम कोर्ट की एक और पीठ, जिसमें जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मिथल शामिल थे, ने भी उस फैसले पर आपत्ति जताई थी।
एशियन रिसर्फेसिंग के अनुसार, सिविल और आपराधिक मुकदमों को आगे बढ़ाने के विरोध में दिए गए स्थगन आदेश छह महीने के बाद स्वतः समाप्त हो जाएंगा, जब तक कि न्यायिक आदेश के जरिए उन्हें स्पष्ट रूप से बढ़ाया न जाए।
फैसले में कहा गया था कि ट्रायल कोर्ट, छह महीने की अवधि समाप्त होने पर, जब तक कि रोक को बढ़ाने संबंधी कोई स्पष्ट आदेश प्रस्तुत नहीं किया जाता, किसी अन्य सूचना की प्रतीक्षा किए बिना कार्यवाही फिर से शुरू कर सकता है।
जस्टिस ओक ने विशेष अनुमति याचिका (सुखा देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, SLP (Crl) 14426/2023) पर सुनवाई करते हुए कहा कि स्वत: रोक हटने से बहुत पूर्वाग्रह पैदा हो रहा है।
उन्होंने कहा, "एशियन रिसर्फेसिंग....बहुत पूर्वाग्रह पैदा कर रहा है...अचानक मजिस्ट्रेट एक आदेश पारित करता है कि एशियन रिसर्फेंसिंग के कारण रोक हटा दी गई है...।" जस्टिस ओक ने कहा कि मौजूदा मामले में, हालांकि रोक स्वतः ही हट गई थी, मजिस्ट्रेट को गैर-जमानती वारंट जारी करने के बजाय समन जारी करना चाहिए था।"
जस्टिस ओक ने एशियन रिसर्फेसिंग मामले को बड़ी पीठ को सौंपने की संभावना का भी संकेत दिया। उन्होंने कहा, “एशियन रिसर्फेसिंग का पैरा 37 स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 142 के संदर्भ में है। इसलिए शायद हमें एक बड़ी पीठ को संदर्भित करने पर विचार करना होगा।"
उन्होंने विकल्प तलाशने की जरूरत पर जोर दिया, "तुरंत आगे बढ़ने के बजाय पार्टी को विस्तार के लिए आवेदन करने के लिए कम से कम कुछ अवसर दिया जाना चाहिए। कुछ तो करना होगा।" इसलिए पीठ ने एशियन रिसर्फेसिंग में निर्देशों की व्याख्या पर पक्षों को सुनने का प्रस्ताव रखा और मामले को 8 जनवरी, 2024 तक के लिए पोस्ट कर दिया।
सीजेआई की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से दिए गए अपील प्रमाणपत्र के आधार पर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद की ओर से दायर एक अपील थी, जिसने एशियन रिसर्फेसिंग फैसले के संबंध में कई संदेह पैदा किए थे।
तीन नवंबर को दिए गए फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की 3-जजो की पीठ ने रोक को स्वतः हटाने के आदेश के बारे में सुप्रीम कोर्ट के विचार-विमर्श के लिए दस प्रश्न तैयार किए हैं। सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि रोक के स्वत: हटने से कुछ मामलों में न्याय की क्षति हो सकती है।
पीठ ने मामले को पांच जजों की पीठ को संदर्भित कर दिया था। इससे पहले जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीके मिश्रा की पीठ ने मौखिक रूप से कहा था कि एशियन रिसर्फेसिंग फैसला मुश्किलें पैदा कर रहा है।
केस टाइटल: सुखा देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, SLP(Crl) 14426/2023