आनंद मोहन की समयपूर्व रिहाई: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को छूट से संबंधित मूल रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बिहार सरकार को उन दस्तावेजों के मूल रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया, जिसके कारण 1994 में गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की मॉब लिंचिंग के मामले में दोषी बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन को राहत मिली थी।
कोर्ट ने कहा,
"स्टेट काउंसिल को मूल रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया गया है, जिसके कारण आनंद मोहन) को छूट दी गई है।"
जिलाधिकारी जी कृष्णैया की विधवा उमा कृष्णैया की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए आनंद मोहन को समय से पहले रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पर्दीवाला की खंडपीठ ने राज्य सरकार, बिहार राज्य सजा माफी बोर्ड और आनंद मोहन अपना जवाबी हलफनामा दायर करें।
बेंच ने स्पष्ट किया कि जवाब दाखिल करने के लिए उन्हें और कोई अवसर प्रदान नहीं किया जाएगा। मामले को 1 अगस्त, 2023 को लिस्ट किया।
1994 में मोहन के नेतृत्व वाली भीड़ के हमले में कृष्णैया की मौत हो गई थी। इस अपराध के लिए मोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, बिहार सरकार द्वारा दी गई सजा में छूट के मद्देनजर 14 साल की कैद की सजा काटने के बाद वह 24 अप्रैल को जेल से बाहर चला गया।
शीर्ष अदालत ने 8 मई, 2023 को बिहार सरकार को नोटिस जारी किया। शुक्रवार को जब खंडपीठ को अवगत कराया गया कि मामले में हस्तक्षेप का आवेदन है, तो उसने वकील को अदालत की सहायता करने की अनुमति दे दी। लेकिन हस्तक्षेप करने वालों से मामले का राजनीतिकरण नहीं करने का अनुरोध किया।
“हम अनुरोध करेंगे, राजनीतिकरण न करें। हम कानूनी मुद्दों की जांच कर रहे हैं। आप न्यायालय की सहायता कर सकते हैं।“
बिहार राज्य की छूट नीति के अनुसार, जो व्यक्ति ड्यूटी पर लोक सेवकों की हत्या के लिए दोषी हैं, वे कम से कम 20 साल की सजा पूरी करने तक समय से पहले रिहाई के पात्र नहीं थे। हालांकि, अप्रैल में छूट नीति में संशोधन कर राज्य सरकार ने आनंद मोहन की रिहाई का मार्ग प्रशस्त करते हुए इस रोक को हटा दिया था। उमा कृष्णैया ने बिहार गृह विभाग (जेल) द्वारा 10 अप्रैल को बिहार जेल नियमावली, 2012 के नियम 481(1)(ए) में संशोधन करते हुए जारी परिपत्र को चुनौती दी है, जिसके अनुसार "ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या" के लिए दोषी भी भी छूट के पात्र हैं। उन्होंने आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को भी चुनौती दी है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि जेल में कैदी के आचरण, पिछले आपराधिक पूर्ववृत्त जैसे प्रासंगिक कारकों को नजरअंदाज कर दिया गया है। यह आगे तर्क दिया गया है कि मोहन की रिहाई को सुविधाजनक बनाने के लिए राज्य की छूट नीति में संशोधन सार्वजनिक नीति के विपरीत है और लोक सेवकों का मनोबल गिराने जैसा होगा। ये भी कहा गया कि अपराध के समय प्रचलित नीति को लागू किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा, एओआर तान्या श्री और एडवोकेट रितु राज ने किया।
[केस टाइटल: तेलुगु उमादेवी कृष्णैया बनाम बिहार राज्य और अन्य। WP(CRL) सं. 204/2023]