धार्मिक धर्मांतरण और 'बहुसंख्यकों के अल्पसंख्यक बनने' पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की सामान्य टिप्पणियां अनावश्यक: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा की गई सामान्य टिप्पणियों पर असहमति व्यक्त की कि यदि धार्मिक समूहों में धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो भारत की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक बन जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"हाईकोर्ट द्वारा की गई सामान्य टिप्पणियों का वर्तमान मामले के तथ्यों पर कोई प्रभाव नहीं था। इसलिए मामले के निपटान के लिए उनकी आवश्यकता नहीं थी।"
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत मामले में आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा,
"इसलिए इन टिप्पणियों का हवाला किसी अन्य मामले या हाईकोर्ट या किसी अन्य न्यायालय में नहीं दिया जाएगा।"
27 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर विचार करते हुए आरोपी को अंतरिम जमानत दी थी कि वह 21 मई, 2023 से हिरासत में है। न्यायालय ने अंतरिम जमानत की पुष्टि की।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1 जुलाई को पारित अपने आदेश में व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिस पर अपने गांव के लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए दिल्ली में सामाजिक समारोह में ले जाने का आरोप था।
हाईकोर्ट के जज जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा,
"यदि इस प्रक्रिया को जारी रहने दिया गया तो इस देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक हो जाएगी। ऐसे धार्मिक समागमों को तुरंत रोका जाना चाहिए, जहां धर्मांतरण हो रहा है और भारत के नागरिकों का धर्म परिवर्तन हो रहा है।"
केस टाइटल: कैलाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एसएलपी (सीआरएल) 11258/2024