नाइजीरियाई नागरिक के फरार होने पर बोला सुप्रीम कोर्ट: सरकार विदेशी आरोपियों को भागने से रोकने के लिए नीति बना सकती
साइबर धोखाधड़ी के मामले में ज़मानत तोड़कर नाइजीरिया भाग गए विदेशी नागरिक की उपस्थिति सुनिश्चित न कर पाने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ज़मानत रद्द करने के मामले का निपटारा कर दिया। साथ ही केंद्र सरकार को यह नीति बनाने का विकल्प खुला छोड़ दिया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विदेशी नागरिक अपराध करने के बाद प्रक्रिया से भाग न पाएं।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने कार्यवाही बंद कर दी, क्योंकि यह स्पष्ट किया गया कि भारत और नाइजीरिया के बीच कोई द्विपक्षीय संधि नहीं है। इसलिए आरोपी के प्रत्यर्पण की संभावना नहीं है।
संक्षेप में मामला
2019 में FIR दर्ज की गई और आरोपी (प्रतिवादी नंबर 1) पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 419, 420, 467, 468, 471 और 120बी तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66(डी) के तहत आरोप लगाए गए। झारखंड हाईकोर्ट ने 13.05.2022 को उसे ज़मानत दी। राज्य सरकार ने ज़मानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, प्रतिवादी नंबर 1 ने ज़मानत की शर्तों का उल्लंघन किया और फरार हो गया।
नवंबर, 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने अपराधों के आरोपी विदेशी नागरिकों द्वारा ज़मानत की अवधि तोड़कर भाग जाने और लापता हो जाने की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की। यह देखा गया कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए यदि पहले से कोई प्रक्रिया नहीं है, तो उसे निर्धारित करने की आवश्यकता है।
इसके बाद केंद्र ने न्यायालय को गृह मंत्रालय के दिनांक 04.12.2019 के आदेश/पत्र के अनुसरण में तैयार किए गए कुछ दिशानिर्देशों से अवगत कराया। ये दिशानिर्देश आपराधिक मामलों के संबंध में "विदेश में जाँच और अनुरोध पत्र (LR)/पारस्परिक कानूनी सहायता (MLA) अनुरोध जारी करने और समन/नोटिस/न्यायिक दस्तावेज़ों की तामील" से संबंधित थे।
इस पर विचार करते हुए न्यायालय का विचार था कि अगला कदम केंद्र द्वारा झारखंड सरकार के साथ सहयोग करना था ताकि प्रतिवादी नंबर 1 को वापस लाया जा सके ताकि वह मुकदमे का सामना कर सके। दिसंबर में न्यायालय ने प्रतिवादी नंबर 1 को दी गई ज़मानत रद्द की। साथ ही केंद्र तथा राज्य दोनों से आवश्यक कदम उठाने का आह्वान किया। अदालतों के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के व्यापक मुद्दे से निपटने के लिए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, मामले को पुनः सूचीबद्ध किया गया।
26 अगस्त को न्यायालय को सूचित किया गया कि विदेश मंत्रालय ने "पारस्परिकता के आश्वासन" के आधार पर संबंधित नाइजीरियाई अधिकारियों को प्रेषित करने के लिए, अबुजा, नाइजीरिया स्थित भारतीय उच्चायोग को एक पत्र भेजा है। हालांकि, चूंकि भारत और नाइजीरिया के बीच कोई द्विपक्षीय संधि नहीं है, इसलिए यह संभावना नहीं है कि नाइजीरियाई अधिकारी अपने ही नागरिक का प्रत्यर्पण करेंगे।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने मामले का निपटारा कर दिया। साथ ही केंद्र को "एक उपयुक्त नीति बनाने या आवश्यक और उचित समझी जाने वाली आगे की कार्रवाई शुरू करने का अधिकार दिया ताकि विदेशी नागरिक भारत में अपराध करने के बाद न्याय की राह से न भटकें।"
Case Title: THE STATE OF JHARKHAND VERSUS ALEX DAVID @ M.U. HENRY & ANR., SLP(Crl) No(s). 8629/2022