'स्थगन पत्र केवल एक बार प्रसारित किया जा सकता है': सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन पत्र प्रसारित करने की नई प्रक्रिया अधिसूचित की

Update: 2024-02-14 08:07 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (14 फरवरी) को मामलों को स्थगित करने का अनुरोध करने वाले पत्रों के प्रसार की प्रक्रिया और तौर-तरीकों की रूपरेखा बताते हुए नया सर्कुलर जारी किया।

नई प्रक्रिया के तहत कुछ श्रेणियों के मामलों में स्थगन पत्र पर विचार नहीं किया जाएगा, जिनमें जमानत या अग्रिम जमानत से संबंधित मामले शामिल हैं, जहां आत्मसमर्पण से छूट मांगी गई। ऐसे मामले, जहां समय मांगने वाले पक्ष के पक्ष में अंतरिम आदेश प्रभावी हैं और सजा के निलंबन के अनुरोध वाले मामले हैं। नए और नियमित सुनवाई वाले मामलों में स्थगन पत्र प्रसारित करने पर भी रोक लगा दी गई। हालांकि, अन्य मामलों में ऐसे पत्र मुख्य सूची के प्रकाशन से एक दिन पहले तक प्रसारित किये जा सकते।

स्थगन के लिए अनुरोध ईमेल के माध्यम से निर्धारित प्रारूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिसमें स्थगन मांगने का कारण और पहले से मांगे गए स्थगन की संख्या निर्दिष्ट होनी चाहिए। महत्वपूर्ण बात यह है कि स्थगन पत्र प्रसारित करने से पहले दूसरे पक्ष की ओर से पेश होने वाले वकीलों या पक्षों से सहमति या अनापत्ति प्राप्त की जानी चाहिए।

नए दिशा-निर्देश स्थगन प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रतिबंध भी पेश करते हैं। पार्टियों या वकील को केवल एक बार स्थगन के लिए पत्र प्रसारित करने की अनुमति है। अदालत की लिस्टिंग के बिना लगातार दो स्थगन की अनुमति नहीं है। इन दिशानिर्देशों के तहत स्थगित किए गए मामलों को सुनवाई के लिए एक विशिष्ट तिथि निर्धारित करते हुए अधिकतम चार सप्ताह के भीतर अदालत के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा।

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि स्थगन अनुरोध स्वीकार कर लिया जाता है तो अनुसूची के अनुसार सूचीबद्ध नहीं किए गए मामलों को अदालत की वेबसाइट पर अधिसूचित किया जाएगा।

यह नवीनतम विकास पिछले साल दिसंबर के अंत में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आया, जिसमें स्थगन पर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के निर्माण तक किसी मामले को सूचीबद्ध होने से एक दिन पहले स्थगन पत्र या पर्चियां प्रसारित करने की प्रथा को बंद कर दिया गया।

वार्षिक शीतकालीन अवकाश से पहले सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले स्थगन पत्र या पर्चियां प्रसारित करने की मौजूदा प्रथा पर रोक लगा दी। इस तरह के प्रतिबंध को वर्ष के अंतिम कार्य दिवस तक जारी रखने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) दोनों ने इस बदलाव का विरोध किया और अदालत से इस प्रथा को बंद न करने का आग्रह किया।

सुप्रीम कोर्ट ने उनके अभ्यावेदन के जवाब में बार के सदस्यों सहित सभी हितधारकों के इनपुट के साथ स्थगन पर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने के लिए न्यायाधीशों की समिति का गठन किया। हालांकि पत्रों या पर्चियों के माध्यम से सुनवाई को स्थगित करने का अनुरोध करने की प्रथा को अगले आदेश तक बंद करने की घोषणा की गई थी।

22 दिसंबर को जारी सर्कुलर में लिखा है,

“स्थगन पर्चियों के प्रसार को जारी रखने के संबंध में SCBA और SCAORA के अनुरोध के आलोक में सक्षम प्राधिकारी ने बार और सभी हितधारकों के सुझावों को आमंत्रित करने के बाद मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करने के लिए माननीय न्यायाधीशों की समिति का गठन करने की कृपा की है। इस बीच स्थगन पर्चियों के प्रसार की प्रथा अगले आदेश तक बंद कर दी गई।

इस कदम पर कानूनी विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई, 281 वकीलों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया।

पत्र में वकीलों ने तर्क दिया कि अंतराल के दौरान मौजूदा प्रक्रिया को समाप्त करने से बार और बेंच दोनों के लिए 'गंभीर परिणाम' होंगे। इन संभावित परिणामों को देखते हुए उन्होंने न्यायाधीशों की समिति और सीजेआई चंद्रचूड़ से नई व्यवस्था लागू होने तक पर्चियों के प्रसार के माध्यम से स्थगन मांगने की पिछली प्रणाली को बहाल करने का आग्रह किया।

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