अडानी-हिंडनबर्ग मामला: नियामक व्यवस्था की समीक्षा के लिए विशेषज्ञ समिति बनाने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव से केंद्र सहमत
केंद्र सरकार ने सोमवार को अडानी-हिंडनबर्ग मुद्दे के मद्देनजर भारतीय निवेशकों की सुरक्षा के लिए नियामक ढांचे में संशोधन की आवश्यकता है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए एक समिति बनाने की इच्छा व्यक्त की।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि सेबी और अन्य एजेंसियां न केवल शासन के लिहाज से, बल्कि अन्यथा भी स्थिति का ध्यान रखने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित हैं। हालांकि, सरकार को समिति गठित करने में कोई आपत्ति नहीं है... समिति के सदस्यों के नामों के लिए संभावित सुझाव हम एक सीलबंद लिफाफे में दे सकते सकते हैं, खुली अदालत में ऐसी चर्चा करना उचित नहीं हो सकता है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि एसजी बुधवार तक समिति के प्रस्तावित रीमिट पर एक नोट दें और शुक्रवार को मामले की सुनवाई करने पर सहमत हुए।
पीठ ने मामले को 17 फरवरी 2023 को सूचीबद्ध किया।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच की मांग संबंधी दो जनहित याचिकाओं पर विचार कर रही थी, जिन्हें विशाल तिवारी और मनोहर लाल शर्मा ने दायर किया है।
10 फरवरी को कोर्ट ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद सुनिश्चित की गई बाजार की अस्थिरता से भारतीय निवेशकों की रक्षा के बारे में चिंता व्यक्त की थी और नियामक ढांचे को मजबूत करने के उपायों पर केंद्र और सेबी के विचार मांगे थे।
सुनवाई के दरमियान सीजेआई ने कमेटी गठित करने का सुझाव दिया था।
तिवारी की ओर से दायर जनहित याचिका में हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट की सामग्री की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज के नेतृत्व में समिति के गठन की मांग की गई थी।
एडवोकेट एमएल शर्मा की ओर से दायर दूसरी याचिका में 'शॉर्ट-सेलिंग' को धोखाधड़ी का अपराध घोषित करने की मांग की गई है। उक्त याचिका में हिंडनबर्ग के संस्थापक नाथन एंडरसन के खिलाफ जांच की मांग की गई है। याचिका में उन पर "कृत्रिम क्रैशिंग की आड़ में शॉर्ट सेलिंग के जरिए निर्दोष निवेशकों का शोषण करने" का आरोप लगाया गया है।
उल्लेखनीय है कि 24 जनवरी को अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें अडानी समूह पर अपने स्टॉक की कीमतों को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर हेराफेरी और अनाचार करने का आरोप लगाया गया था।
अडानी ग्रुप ने 413 पन्नों का जवाब प्रकाशित करके आरोपों का खंडन किया था। अपने जवाब में ग्रुप ने रिपोर्ट को भारत के खिलाफ हमला तक करार दिया था। हिंडनबर्ग ने जवाब में कहा था, 'धोखाधड़ी को राष्ट्रवाद की आड़ में छुपाया नहीं जा सकता' और अपनी रिपोर्ट पर कायम रहा था।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद अडानी के शेयरों में भारी गिरावट आई। स्टॉक की कीमतों में गिरावट के कारण समूह को अपना एफपीओ वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा।
केस टाइटल: विशाल तिवारी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया W.P.(C) No 162/2023, मनोहर लाल शर्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया W.P.(Crl.) No 39/2023