'मुंबई पुलिस और कांग्रेस इको-सिस्टम कर रहा है मिलकर काम'' बांद्रा प्रवासी घटना का सांप्रदायिकरण करने के आरोप में दर्ज नई FIR को अर्नब गोस्वामी ने रद्द करने की मांग की

Update: 2020-05-05 14:38 GMT

एक बार फिर रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी ने शीर्ष अदालत का रुख किया है। उन्होंने उनके खिलाफ दर्ज एक नई एफआईआर को रद्द करने की मांग की है। अर्नब पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने  प्राइम टाइम शो में बांद्रा प्रवासी घटना का सांप्रदायिकरण किया है। 

महत्वपूर्ण बात ये है कि एक दिन पहले ही  महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा था कि पत्रकार पुलिस को ''धमका'' रहा है और जांच में बांधा ड़ाल रहा है, इसलिए उसको ऐसा करने से रोका जाए।

जिस एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई है, उसे  रजा एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी के सचिव इरफान अबुबकर शेख ने दर्ज करवाया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि गोस्वामी ने 14 अप्रैल को मुंबई के बांद्रा में इकट्ठे हुए प्रवासी कामगारों को ''एक्टर्स'' शब्द से नामित किया था, जिन्हें वहां राष्ट्र-विरोधी तत्वों ने एकत्रित किया था। 

शेख ने मुम्बई के पयधोनी पुलिस स्टेशन में यह प्राथमिकी दर्ज करवाई है, जो  भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 (दंगा भड़काने के इरादे से उकसाना), धारा 153ए (समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), धारा 295ए (नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं का अपमान) के साथ-साथ धारा 500, 505 (2), 511 और 120 बी के तहत दर्ज की गई थी।

इस FIR को खारिज करने के लिए दी गई  दलील  डबल जियोपार्डी के सिद्धांत पर टिकी हुई है। जिसके अनुसार एक समान कार्य या एक्ट पर पुलिस कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकती है , जैसा कि पहले ही वर्तमान रिट याचिका में स्थापित किया गया है।

गोस्वामी ने अपनी याचिका में कहा है कि-

''उन परेशानियों को स्पष्ट तौर पर महूसस किया जा सकता है जिनका सामना मुम्बई पुलिस  इस मामले में याचिकाकर्ता को फ्रेम करने की कोशिश में कर रही है। पुलिस याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए अभी  कुछ और आधार भी बना रही है। मुंबई पुलिस ने प्रतिवादी नंबर तीन की तरफ से दायर एक शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की है।  जो पूरी तरह झूठी, प्रतिशोधी, तुच्छ, दुर्भावनापूर्ण और दुर्भावना से उपजी हुई है।'' 

इसके अलावा, गोस्वामी ने प्राथमिकी में लगाए उन आरोपों को भी खारिज किया है जो उनके चैनल द्वारा की गई जांच के संदर्भ में लगाए गए थे। ''रिपब्लिक टीवी ने एक सभा के संबंध में महाराष्ट्र राज्य में पैदा हुए एक नकली प्रवासी संकट का खुलासा किया था'' ,जिसने ''कांग्रेस पार्टी इको सिस्टम'' को उजागर कर दिया है।

गोस्वामी ने कहा कि-

'' रिपब्लिक टीवी यह सुनिश्चित करने के लिए सच्चाई या सही तथ्यों की रिपोर्ट कर रहा था कि लोगों के बीच कोई अनुचित घबराहट नहीं थी। परंतु कांग्रेस पार्टी इको सिस्टम लोगों को भड़का रहा था और नकली प्रवासी संकट के बारे में झूठे समाचार फैला रहा था।''

गोस्वामी ने कहा कि यह स्पष्ट है कि उसके खिलाफ ''कुछ राजनीतिक और निहित स्वार्थों के इशारे पर कई शिकायतें दर्ज की जाएंगी'' ताकि अनुच्छेद 19 (1) (ए) और 21 के तहत गारंटीकृत उसके संवैधानिक अधिकारों को दबाया जा सकें। इस संबंध में दलील देते हुए बताया गया कि  इसी कारण उनके खिलाफ देश भर में कई प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।

याचिकाकर्ता ने कहा कि- 

''.... भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों और उनके समर्थक द्वारा विभिन्न राज्यों में एक साथ कई शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। वहीं याचिकाकर्ता को तुरंत  गिरफ्तार करने की मांग करते हुए एक आॅन लाइन आंदोलन भी चलाया गया है, जिसमें  घृणित  हैशटैग  #ArrestAntiIndiaArnab   का प्रयोग किया गया है।'' 

इसलिए गोस्वामी ने दलील दी है कि नागपुर में उनके खिलाफ दर्ज किए गए केस के बाद अगर कोई जांच शुरू की गई है तो उसे रद्द कर दिया जाए और  और महाराष्ट्र राज्य के ''सेवकों और एजेंटों'' के इशारे पर किसी भी नई प्राथमिकी के पंजीकरण को निषिद्ध कर दिया जाए।

24 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट ने  अर्नब गोस्वामी को महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और जम्मू-कश्मीर राज्यों में उनके खिलाफ दायर एफआईआर के आधार पर गिरफ्तारी से तीन सप्ताह की सुरक्षा प्रदान की थी। यह एफआईआर सांप्रदायिक बयान देने  और  सोनिया गांधी की मानहानि करने के आरोप में दर्ज करवाई गई थी।

प्रतिवादी ने उनके परिवार के साथ-साथ रिपब्लिक टीवी के सहयोगियों के लिए भी सुरक्षा मांगी है।

यह याचिका अधिवक्ता प्रज्ञा बघेल ने दायर की है।

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