सुप्रीम कोर्ट ने 'छठी इंद्री' पर काम करते हुए शादी करवाई, शादी के झूठे वादे पर रेप की सज़ा रद्द की
सुप्रीम कोर्ट ने शादी के झूठे वादे पर एक महिला का यौन शोषण करने के आरोपी व्यक्ति की रेप की सज़ा और दंड रद्द किया, क्योंकि अपील के दौरान दोनों पक्षों ने एक-दूसरे से शादी कर ली थी। कोर्ट ने टिप्पणी की कि उसने अपनी "छठी इंद्री" पर काम किया कि उन्हें एक साथ लाकर विवाद को सुलझाया जा सकता है।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अपीलकर्ता के खिलाफ FIR, सज़ा और दंड को रद्द करके "पूरा न्याय" किया।
कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब अपीलकर्ता ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा उसकी सज़ा निलंबित करने से इनकार करने को चुनौती दी थी।
जस्टिस नागरत्ना ने फैसला लिखते हुए कहा कि जब यह मामला पहली बार सुप्रीम कोर्ट के सामने आया, "मामले के तथ्यों पर विचार करने के बाद हमें एक छठी इंद्री महसूस हुई कि अगर अपीलकर्ता और प्रतिवादी पीड़िता एक-दूसरे से शादी करने का फैसला करते हैं तो उन्हें फिर से एक साथ लाया जा सकता है।"
इसी सहज ज्ञान पर काम करते हुए बेंच ने वकील को सलाह दी कि पक्षकारों से निर्देश लिए जाएं। इसके बाद अपीलकर्ता और पीड़िता दोनों को कोर्ट के सामने पेश किया गया, जहां जजों ने उनके माता-पिता की मौजूदगी में चैंबर में उनसे बातचीत की। कोर्ट ने रिकॉर्ड किया कि दोनों पक्षकारों ने एक-दूसरे से शादी करने की इच्छा जताई, जिसके बाद अपीलकर्ता को अंतरिम जमानत दे दी गई। शादी 22 जुलाई, 2025 को हुई और तब से यह जोड़ा साथ रह रहा है।
फैसले में कहा गया,
"यह उन दुर्लभ मामलों में से एक है, जहां इस कोर्ट के हस्तक्षेप से अपीलकर्ता को... आखिरकार उसकी सज़ा और दंड रद्द होने से फायदा हुआ," और यह भी कहा कि दोनों पक्षों के माता-पिता "इस घटनाक्रम से खुश हैं।"
मामले की पृष्ठभूमि
पीड़िता और अपीलकर्ता 2015 में एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मिले और उनके बीच रिश्ता बन गया, जो बाद में शारीरिक संबंध में बदल गया। महिला ने आरोप लगाया कि उसने शादी के झूठे वादे के आधार पर रिश्ते के लिए सहमति दी थी। जब तय समय में शादी नहीं हुई तो उसने नवंबर 2021 में IPC की धारा 376 और 376(2)(n) के तहत FIR दर्ज कराई। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को बार-बार रेप और धोखाधड़ी के लिए दोषी ठहराया, उसे रेप के आरोप में दस साल की कड़ी कैद और धोखाधड़ी के लिए दो साल की सज़ा सुनाई। सज़ा के खिलाफ उसकी अपील मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में पेंडिंग थी, जिसने सज़ा को सस्पेंड करने की उसकी अर्ज़ी खारिज कर दी, जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
आपसी सहमति वाले रिश्ते को गलत तरीके से आपराधिक बनाया गया
अपने आखिरी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला ऐसा लग रहा था, जहां गलतफहमी के कारण आपसी सहमति वाले रिश्ते को "आपराधिक रंग" दिया गया। बेंच ने कहा कि दोनों पक्षकारों ने शादी करने का इरादा किया और आपराधिक शिकायत शायद तब हुई जब अपीलकर्ता ने शादी टालने की बात कही, जिससे असुरक्षा पैदा हुई।
कोर्ट ने कहा,
"हमें लगता है कि गलतफहमी के कारण दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति वाले रिश्ते को आपराधिक रंग दिया गया और शादी के झूठे वादे के अपराध में बदल दिया गया।"
बाद में हुई शादी और पीड़िता के इस बयान को ध्यान में रखते हुए कि वह आपराधिक कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ाना चाहती, बेंच ने FIR, ट्रायल कोर्ट का फैसला और सज़ा रद्द कर दी, जिससे हाईकोर्ट में पेंडिंग अपील बेकार हो गई।
कोर्ट ने मध्य प्रदेश के अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया कि वे अपीलकर्ता को सरकारी नौकरी से सस्पेंशन रद्द करें और दो महीने के अंदर बकाया सैलरी का भुगतान यह देखते हुए करें कि वह पहले ही अंतरिम आदेशों के बाद ड्यूटी पर लौट आया, जिसमें उसकी सज़ा पर रोक लगा दी गई।
इस तरह अपील का निपटारा कर दिया गया।
Case : Sandeep Singh Thakur v. State of Madhya Pradesh