अभियुक्त का वकील के माध्यम से प्रतिनिधित्व का अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्साः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक वकील के माध्यम से प्रतिनिधित्व का अधिकार नियत प्रक्रिया खंड का हिस्सा है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकार में संदर्भित है।
ट्रायल कोर्ट ने सूबेदार और बुद्धू को हत्या के एक मामले दोषी ठहराया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ उनकी अपील लंबित होने के दौरान ही बुद्धू की मृत्यु हो गई, जिससे उनकी अपील और कार्यवाही रुकी रही।
अंतिम सुनवाई के लिए जब अपील पेश हुई तो हाईकोर्ट ने देखा कि यद्यपि कारण सूची में अपीलार्थी-अभियुक्तों के वकीलों के नाम हैं, लेकिन उनमें से कोई भी पेश नहीं हुआ है। यह नोट करने के बाद, बेंच मामले को गुण के आधार पर विचार करने के लिए आगे बढ़ी और अपील को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, अभियुक्त के वकील ने कहा कि अपीलकर्ता-अभियुक्त की ओर से किसी प्रतिनिधित्व के पेश न होने के कारण अपील का निस्तारण किया गया था।
इस संदर्भ में, जस्टिस उदय उमेश ललित, विनीत सरन और एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा,"यह बखूबी स्वीकार किया जाता है कि एक वकील के जरिए प्रतिनिधित्व का अधिकार नियत प्रक्रिया खंड का हिस्सा है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटकृत अधिकार के रूप में संदर्भित है।
यदि अधिवक्ता किसी कारण से अभियुक्त का प्रतिनिधित्व करने के लिए उपलब्ध नहीं हैं, यह कोर्ट पर है कि वह सहायता के लिए एमिकस क्यूरी को नियुक्त करे, लेकिन किसी भी स्थिति में कारण को प्रतिनिधित्व उपलब्ध होना चाहिए।"
उक्त अवलोकनों के साथ हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक अपील को बहाल करने का फैसला किया।
समान निर्णय / आदेश
शेख मुख्तार बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में, कोर्ट ने देखा कि जब कोई अभियुक्त न्यायालय के समक्ष पेश नहीं होता है, तो उसे या तो एमिकस क्यूरी नियुक्त करना होगा या कानूनी सेवा समिति को इस मामले को संदर्भित करना होगा ताकि वह एक वकील नियुक्त कर सके।
जुलाई में, सकुन्थला बनाम राज्य में, तीन जजों की बेंच ने केएस पांडुरंगा बनाम कर्नाटक राज्य (2013) 3 एससीसी 721 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, और कहा कि सजा के आदेश के खिलाफ अपील डिफाल्ट में खारिज नहीं की जा सकती, बल्कि उसे सुना जाना चाहिए और गुण के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए, भले ही अपीलकर्ता, खुद या उसका वकील पेश न हुए हों।
पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने शंकर बनाम महाराष्ट्र राज्य में कहा था कि दोषियों के खिलाफ अभियुक्त द्वारा दायर अपील को अपीलकर्ता या उसके वकील की सुनवाई के बाद ही योग्यता के आधार पर निपटाया जा सकता है।
केस: सूबेदार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [CRIMINAL APPEAL NO.886 OF 2020]
कोरम: जस्टिस उदय उमेश ललित, विनीत सरन और एस रवींद्र भट
वकील: एओआर कुर्रतुलैन, एओआर संजय कुमार त्यागी
आदेश पढ़ने/ डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें