'ज़मानत बॉन्ड भरने या ज़मानतदार पेश करने में असमर्थता के कारण आरोपी का जेल में रहना एक नियमित घटना है': सुप्रीम कोर्ट ने डीएलएसए के हस्तक्षेप की मांग की

Update: 2022-11-29 02:29 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को उन लोगों के बारे में चिंता व्यक्त की, जिन्हें जमानत मिल गई है, लेकिन वे जमानत बांड (Bail Bond) भरने या अदालत के समक्ष ज़मानतदार (Surety) पेश करने में सक्षम नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे जेल से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।

जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस एस. रवींद्र भट की पीठ ने कहा,

"यह एक नियमित घटना है जहां अभियुक्तों को जमानत दी जाती है, लेकिन वे जमानत बॉन्ड या स्थानीय ज़मानतदार पेश करने में सक्षम नहीं होते हैं। यह उचित होगा कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कोई उपाय निकाले।"

याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट महालक्ष्मी पावनी ने अदालत को अवगत कराया कि बहुत कम उच्च न्यायालयों ने 9 मई 2022 के आदेश के अनुसार अपनी रिपोर्ट दायर की है जिसके द्वारा सभी उच्च न्यायालयों को जमानत के आदेशों के संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी जिनका पालन नहीं किया गया है।

राजस्थान उच्च न्यायालय की ओर से पेश वकील ने अदालत को अवगत कराया कि एक रिपोर्ट दायर की जा चुकी है।

कोर्ट ने मामले को 3 सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया और अन्य उच्च न्यायालयों को इस बीच स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आंध्र प्रदेश की एक ट्रायल कोर्ट के जज द्वारा उसके आदेश की गलत व्याख्या की गई, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी शीर्ष अदालत द्वारा अंतरिम जमानत दिए जाने के बाद भी हिरासत में रहा। 9 साल तक हिरासत में रहने के बाद आरोपी को जमानत दे दी गई थी, लेकिन आरोपी को दो साल और हिरासत में रहना पड़ा था।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले इस स्थिति पर टिप्पणी की थी कि यह मामला बहुत ही खेदजनक स्थिति को चित्रित करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि सुधारात्मक मैकेनिज्म को स्थापित करना होगा, विशेष रूप से जहां कार्यवाही विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से शुरू की गई थी।

केस टाइटल: गोपीशेट्टी हरिकृष्णा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य- एसएलपी (क्रिमिनल) नंबर 4685/2020


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