दुर्घटना मुआवजाः सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कर्मचारी की आय का निर्धारण, भत्तों की कटौती के बिना, उसकी एन्टाइटल्मन्ट से हो
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2010 मंगलौर एयर क्रैश से संबंधित एक व्यक्तिगत मामले में 7,64,29,437 का मुआवजा दिया। त्रिवेणी कोडकनी बनाम एयर इंडिया लिमिटेड व अन्य के फैसले में राष्ट्रीय बीमा कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी में निर्धारित मुआवजे की गणना से संबंधित सिद्धांतों की चर्चा की गई और लागू किया गया।
मामले के तथ्य
जीटीएल ओवरसीज के मध्य पूर्वी क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक के रूप में कार्यरत एक प्रवासी की 22 मई, 2010 को एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। एयर इंडिया एक्सप्रेस की वह उड़ान दुबई से मंगलौर जा रही थी और मंगलौर हवाई अड्डे पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी।
10 मार्च, 2011 को, उनकी पत्नी ने एयर इंडिया पर मुआवजे के लिए दावा ठोका, सिजने उन्हें क्षतिपूर्ति के रूप में 20 मार्च, 2012 को 4,00,70,000 रुपए की राशि का भुगतान किया। मृतक के माता-पिता को भी 40 लाख रुपए का भुगतान किया गया।
18 अप्रैल, 2012 को, मृतक के माता-पिता और भाई ने मुआवजे का दावा करने के लिए एयर इंडिया के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया, और ट्रायल कोर्ट ने 27 सितंबर, 2018 को अपने फैसले में मृतक की मां के दावे के रूप 70 लाख की राशि स्वीकार की, पिता और भाई के दावों को खारिज कर दिया।
वर्तमान अपील 18 मई, 2012 को एनसीडीआरसी के समक्ष मृतक के पत्नी, पुत्र और पुत्री द्वारा मुआवजे के दावा के रूप में दायर की गई थी, जिसमें दुर्घटना की तारीख से 18% प्रति वर्ष की दर से ब्याज सहित 13.42 करोड़ रुपए मुआवजे की मांग की गई थी।
एनसीडीआरसी ने शिकायत की अनुमति दी थी और 7,35,14,187 रुपये का अंतिम मुआवजा दिया था और कहा था कि माता-पिता को 40 लाख की रुपये की राशि का भुगतान के अलावा, शिकायतकर्ताओं को 4 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा चुका हैख् जिन्हें अंतिम मुआवजे में से काटा जाना था।
2,95,14,187 रुपए मूल राशि का बकाया निर्धारित किया गया और 22 मई 2010 से उस तारीख तक, जिस दिन मृतक के माता-पिता को 40 लाख का भुगतान किया गया था, 9% प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्याज दिया गया।
शिकायतकर्ताओं को 6,95,14,187 रुपए की राशि के ब्याज का हकदार ठहराया गया, यह मृतक के माता-पिता को भुगतान किया जाने की तारीख से लेकर शिकायतकर्ताओं को 4 करोड़ का भुगतान किया जाने की तारीख तक प्रभावी रहा। उन्हें शेष राशि पर ब्याज का हकदार भी माना गया।
अंतिम मुआवजे की गणना में, एनसीडीआरसी ने 10 दिसंबर 2018 के अपने फैसले में, कुल आय (कंपनी के लिए वार्षिक लागत) से एईडी 30,000 के टेलीफोन भत्ते की कटौती की और कनवर्सन रेट को अपनाया, जो एनसीडीआरसी के समक्ष दर्ज शिकायत में अपनाया गया था।
इस कार्यवाही में क्रॉस अपील दायर की गई थी, जिसमें शिकायतकर्ताओं द्वारा पहली अपील दायर की गई थी।
प्रस्तुतियां
शिकायतकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता यशवंत शेनॉय ने चार प्रस्तुतियां दीं:
(i) एनसीडीआरसी ने नियोक्ता द्वारा पेश रिकॉर्ड में दी गई मृतक की कुल सीटीसी से एईडी 30,000 की कटौती करने में गलती की।
(ii) राष्ट्रीय बीमा कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी में संविधान पीठ के फैसले को ध्यान में रखते हुए भविष्य की संभावनाओं के लिए पच्चीस प्रतिशत के बजाय तीस प्रतिशत की अतिरिक्त वृद्धि की जानी चाहिए थी।
(iii) AED को INR में परिवर्तित करने की दर इस न्यायालय के फैसले की तिथि के दिन प्रचलित दर पर ली जानी चाहिए थी, न कि 12.50 AED जो एनसीडीआरसी के समक्ष दर्ज शिकायत के समय प्रचलित दर थी।
(iv) मृतक के वेतन की ही गणना की गई न कि आय की। मृतक वेतन के अलावा इम्प्लॉयीज़ स्टॉक ऑप्शन (ईएसओपी) सहित अन्य लाभों का हकदार था, जिन पर ध्यान नहीं दिया गया।
एयर इंडिया की ओर से वकील जतिंदर कुमार सेठी ने निम्नलिखित प्रस्तुतियां दीं:
(i) एनसीडीआरसी ने मृतक के व्यक्तिगत खर्च की ओर पांचवें हिस्से की की कटौती करने की गलती की। उचित कटौती एक तिहाई होनी चाहिए थी, क्योंकि एनसीडीआरसी के समक्ष शिकायतकर्ता पत्नी और दो नाबालिग बच्चों थे।
(ii) एयर इंडिया ने शिकायतकर्ताओं और मां को ब्याज सहित 10.46 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया, एयर इंडिया की अनिश्चित वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह पर्याप्त मुआवजा था।
(iii) AED 40, 957 के रूप में टेलीफोन भत्ते और परिवहन भत्ते के रूप में जो कटौती की गई, उसे मुआवजे की गणना करते समय मृतक के वार्षिक वेतन से भी काटा जाना चाहिए था।
फैसला
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने निम्नलिखित बातें कहीं:
गणना के प्रयोजन के लिए टेलीफोन/यात्रा भत्ता बाहर नहीं होगा
खंडपीठ ने कहा कि किसी कर्मचारी की मृत्यु से उत्पन्न मुआवजे के दावे में, कर्मचारी की पात्रता के आधार पर आय का आकलन किया जाना चाहिए। इसलिए, नियोक्ता द्वारा किया गया वेतन में द्विभाजन कुल सीटीसी से कटौती करने का कोई आधार प्रदान नहीं करता है।
"नियोक्ता द्वारा वेतन में विभिन्न मदों में किया गया विभाजन कई कारणों से किया जा सकता है। हालांकि, कर्मचारी की मृत्यु से उत्पन्न मुआवजे के दावे में, आय का आकलन कर्मचारी की पात्रता के आधार पर किया जाना चाहिए। हम इसलिए AED 4,82,395 की वार्षिक आय के आधार पर गणना के के लिए आगे बढ़ें।"
कोर्ट ने कहा, समेकित राशि नियोक्ता द्वारा मृतक को प्रतिवर्ष दी जाने वाली राशि है।
"इसलिए, हम उन कारणों को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, जिन कारणों से कुल सीटीसी से एईडी 30,000 की कटौती करने की गई। इसी कारण से, हम एयर इंडिया की दलीलों को स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि परिवहन भत्ता को बाहर रखा जाना चाहिए।"
साक्ष्य की अनुपस्थिति में, अतिरिक्त लाभ, परफॉर्मेंस इन्सेंटिव्स को वेतन की गणना में शामिल नहीं किया जा सकता है
ईएसओपी जैसे अतिरिक्त वित्तीय लाभों की पात्रता के संबंध में शेनॉय की प्रस्तुतियों को कोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री में यह नहीं बताया गया है कि कि मृतक ईएसओपी के हकदार थे। साथ ही, अन्य प्रोत्साहन और वित्तीय लाभ प्रदर्शन से जुड़े थे।
इसलिए, वह वार्षिक आधार पर कुछ लाभों के पात्र थे, हालांकि वे अधिकार नहीं थे। इस आधार पर, खंडपीठ यह स्वीकार करने की इच्छुक नहीं है कि प्रोत्साहन लाभ को गणना के उद्देश्य से आय में जोड़ा जाना चाहिए।
व्यक्तिगत खर्चों की कटौती परिवार के निर्भर सदस्यों की संख्या के आधार पर एक चौथाई होनी चाहिए
खंडपीठ ने प्रणय सेठी के मामले में संविधान पीठ के फैसले का उल्लेख किया, जो मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजा निर्धारित करने के संदर्भ में प्रस्तुत किया गया था। फैसले में आगे सरला वर्मा बनाम दिल्ली परिवहन निगम के फैसले पर भरोसा किया गया।
कोर्ट ने अंत में अपने फैसले में कहा,
"उपरोक्त मदों के आधार पर कुल देय राशि 7,64,29,437 रुपये है। एनसीडीआरसी द्वारा प्रदान की गई नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर पर ब्याज का भुगतान उसी आधार पर किया जाएगा।"
जजमेंट डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें