2007 अजमेर विस्फोट: 7 लोगों को बरी किए जाने के खिलाफ दरगाह खादिम की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर को अजमेर स्थित दरगाह शरीफ के खादिम शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती द्वारा दायर याचिका पर राजस्थान राज्य को नोटिस जारी किया। चिश्ती ने 2007 के अजमेर दरगाह बम विस्फोट में NIA के स्पेशल कोर्ट द्वारा 7 लोगों को बरी किए जाने के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा अपील खारिज किए जाने को चुनौती दी थी।
यह नोटिस जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने जारी किया।
वर्तमान विशेष अनुमति याचिका राजस्थान हाईकोर्ट के 4 मई, 2022 के उस आदेश के विरुद्ध दायर की गई, जिसमें उसने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 के तहत अपराधों के आरोपी सात व्यक्तियों को बरी करने के खिलाफ अपील खारिज कर दी थी।
8 मार्च, 2017 को NIA मामलों के स्पेशल जज ने 7 व्यक्तियों को बरी कर दिया और 2 को दोषी ठहराया। लोकेश शर्मा, चंद्रशेखर लेवे, मुकेश वसानी, हर्षद उर्फ मुन्ना उर्फ राज, नवकुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, मफत उर्फ मेहुल, भरत मोहनलाल रतेश्वर को बरी कर दिया गया। हालांकि, देवेंद्र गुप्ता और भावेश पटेल को दोषी ठहराया गया। उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 295ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करना है), विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और UAPA की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी पाया गया।
इन बरी किए गए लोगों के खिलाफ 1 जून, 2017 को एक अपील दायर की गई, लेकिन इसकी सुनवाई 2022 में होनी थी। याचिकाकर्ता के अनुसार, राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 21(5) की गलत और सख्त व्याख्या के आधार पर इसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि याचिकाकर्ता द्वारा 1135 दिनों की देरी को 90 दिनों की अवधि से अधिक माफ नहीं किया जा सकता।
याचिका में राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 21(5) की व्याख्या को चुनौती दी गई। तर्क दिया गया कि 90 दिनों से अधिक समय तक अपील पर कठोर प्रतिबंध, पीड़ितों और शिकायतकर्ताओं के अपील करने और न्याय तक पहुंच के मौलिक अधिकार को मनमाने ढंग से प्रतिबंधित करके, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है।
याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि धारा 21(5) की अत्यधिक प्रतिबंधात्मक व्याख्या पीड़ितों के अधिकारों को कमज़ोर करती है। NIA द्वारा जांचे गए मामलों और अन्य एजेंसियों द्वारा संभाले गए मामलों के बीच मनमाना अंतर पैदा करती है। इसमें मंगू राम बनाम दिल्ली नगर निगम और मोहम्मद अबाद अली बनाम राजस्व अभियोजन खुफिया निदेशालय जैसे प्रमुख उदाहरणों का हवाला दिया गया। पुष्टि की गई कि अपील का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का हिस्सा है।
Case Details: SYED SARWAR CHISHTY v STATE OF RAJASTHAN| Diary No. 51829-2025