1984 सिख विरोधी दंगा : सज्जन कुमार की जमानत याचिका पर सुनवाई टली, जस्टिस खन्ना ने फिर सुनवाई से खुद को अलग किया
वर्ष 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे में आजीवन कारावास के सजायाफ्ता कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद सज्जन कुमार का इंतजार और बढ़ गया है। सुप्रीम कोर्ट में उसकी जमानत अर्जी पर सुनवाई फिर टल गई क्योंकि एक बार फिर पीठ में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। अब नई पीठ के गठन के लिए मामले को फिर से चीफ जस्टिस के पास भेज दिया गया है।
इससे पहले सज्जन कुमार की याचिका पर CBI ने उसकी जमानत का विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में जांच एजेंसी ने कहा है कि सज्जन कुमार शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति हैं और उसके जेल से बाहर आने पर मामलों के गवाह प्रभावित हो सकते हैं। CBI ने कहा है कि सज्जन कुमार की जमानत अर्जी में कोई योग्यता नहीं है और उसे खारिज किया जाना चाहिए।
इससे पहले भी 25 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई उस वक्त टल गई थी जब जस्टिस संजीव खन्ना ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
14 जनवरी को सज्जन कुमार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा था। सज्जन कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है जिसमें उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने सज्जन कुमार की जमानत देने की अर्जी पर भी सीबीआई को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में जवाब मांगा था।
31 दिसंबर 2018 को सज्जन कुमार ने दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत में सरेंडर कर दिया था। इसके बाद उसे मंडोली जेल भेजा दिया गया। वहीं इस दौरान सज्जन कुमार के वकीलों ने मांग की थी कि उसे तिहाड़ जेल भेजा जाए क्योंकि मामला दिल्ली कैंट थाने का है लेकिन नियमों के तहत सज्जन कुमार को अलग वैन में मंडोली जेल भेजा गया।
इससे पहले 21 दिसंबर को कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली थी।
न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने सज्जन कुमार की उस अर्जी को ठुकरा दिया था जिसमें उसने आत्मसमर्पण करने के लिए 30 दिन और देने की गुहार लगाई थी।
सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि जो आधार अर्जी में दिए गए हैं वो सही नहीं हैं।
दरअसल सज्जन कुमार ने 20 दिसंबर को ही अर्जी देते हुए गुहार लगाई थी कि उसे आत्मसमर्पण करने के लिए 30 दिनों की मोहलत और दी जाए। इसके लिए आधार देते हुए उसने कहा था कि उसका परिवार बड़ा है और उसे संपत्ति का सेटलमेंट करना है। ऐसे में उसको आत्मसमर्पण के लिए और वक्त चाहिए। अर्जी में संबंधियों व परिचितों से मिलने की बात कही गई थी। इसके बाद सज्जन कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी लेकिन वेकेशन में सुनवाई से इनकार कर दिया गया।
इससे पहले 17 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगे में सज्जन कुमार को दोषी ठहराते हुए उसे उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी और उससे 31 दिसम्बर 2018 तक आत्मसमर्पण करने को कहा था।
न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने निचली अदालत के फ़ैसले को पलटते हुए कहा, "पीड़ितों को यह आश्वासन देना जरूरी है कि चुनौतियों के बावजूद, जीत सच की होगी।"
गौरतलब है कि सज्जन कुमार के ख़िलाफ़ वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों में पालम के राजनगर में एक ही परिवार के केहर सिंह, गुरप्रीत सिंह, रघुवेंद्र सिंह, नरेंद्र पाल सिंह और कुलदीप सिंह को जान से मारने का दोषी पाया गया है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 31 अक्टूबर 1984 को यह दंगा फैला था।
आरोपी के ख़िलाफ़ मामला न्यायमूर्ति जी. टी. नानावटी आयोग के सुझाव के आधार पर वर्ष 2005 में दायर हुआ था।निचली अदालत ने वर्ष 2013 में 5 लोगों को मामले का दोषी माना था जिसमें बलवान खोखर, महेंद्र यादव, किशन खोखर, गिरधारी लाल और कैप्टन भागमल शामिल था जबकि सज्जन कुमार को बरी कर दिया था। लेकिन सीबीआई ने सज्जन कुमार के ख़िलाफ़ यह कहते हुए अपील की थी कि भीड़ को उकसाने वाला सज्जन कुमार ही था।
हाईकोर्ट ने सज्जन के अलावा 3 अन्य दोषियों- कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और कांग्रेस के पार्षद बलवान खोखर की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था। बाकी 2 दोषियों - पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर की सजा 3 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दी गई।