ताजमहल पर UP सरकार को SC की फटकार, चार सप्ताह में मांगा विजन दस्तावेज

Update: 2019-02-13 09:13 GMT

एेतिहासिक ताजमहल के सरंक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए 4 सप्ताह में विजन दस्तावेज दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

न्यायमूर्ति एस. ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि बिना विजन दस्तावेज देखे पीठ सुनवाई कैसे कर सकती है ? पहले राज्य सरकार विजन दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करे, इसके बाद ही पीठ इस पर सुनवाई करेगी। पीठ ने ये भी कहा कि उन्हें ताजमहल की चिंता है और सरकार की गतिविधि पर पीठ को कोई अापत्ति नहीं है।

वहीं पीठ ने ये भी कहा है कि 2 महीने में पीठ को सूचित किया जाए कि आगरा को 'हेरिटेज सिटी' घोषित किया जा सकता है या नहीं। इससे पहले 28 अगस्त 2018 को भी सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ पैनल को ताज पर 1 महीने के भीतर फाइनल विजन डाक्यूमेंट के साथ आने का निर्देश दिया था। हालांकि बाद में पीठ ने ये वक्त और बढ़ा दिया था।

जस्टिस मदन बी. लोकुर, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने ताज क्षेत्र में वन कवर को बढ़ाने जैसे सभी सुझावों को शामिल करने वाले एक विजन दस्तावेज तैयार करने के लिए विशेषज्ञ पैनल से कहा था। इससे पहले यूपी सरकार ने कोर्ट को बताया था कि टीटीजेड क्षेत्र में 1167 उद्योग हैं, और ये विशेषज्ञ पैनल सदस्य द्वारा विवादित किया गया।

केंद्र ने पीठ को सूचित किया था कि ताज को विरासत शहर बनाने का प्रस्ताव राज्य से आना है और यूपी को तदनुसार सूचित किया गया है। पीठ ने विशेषज्ञ सदस्य से कहा, "हमने समस्या की पहचान की है और समाधान अभी तक लागू नहीं हुआ है।"

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने ताजमहल के संरक्षण के संबंध में विभिन्न दिशानिर्देशों का पालन ना करने पर यूपी सरकार, एएसआई और केंद्र सरकार को जोरदार फटकार लगाई थी और कहा था कि प्रतिष्ठित हाथीदांत-सफेद संगमरमर के मकबरे का रखरखाव एक मजाक बन गया है। पीठ ने यह भी कहा था कि यदि यूनेस्को ताज से विश्व धरोहर टैग वापस ले लेता है तो यह बड़ी शर्मिंदंगी की बात होगी।

अदालत का रूख खास तौर पर इसलिए भी कड़ा था क्योंकि अभी भी ताज ट्रैपेज़ियम जोन (टीटीजेड) में कई आदेशों के बावजूद 1,167 प्रदूषणकारी उद्योग चल रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करने की जिम्मेदारी कोई विभाग नहीं ले रहा है।

यूपी सरकार ने 24 जुलाई 2018 को एक विजन दस्तावेज प्रस्तुत किया था और सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि मुगलकालीन स्मारक के पूरे परिसर को नो-प्लास्टिक क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए और इस क्षेत्र में सभी प्रदूषणकारी उद्योग बंद किए जाने चाहिए। यूपी सरकार ने 17 वीं शताब्दी के स्मारक के संरक्षण पर एक विजन दस्तावेज की पहली मसौदा रिपोर्ट दायर की थी। मसौदा विजन दस्तावेज में यह भी कहा गया कि यमुना नदी के किनारे सड़कों की योजना बनाई जानी चाहिए ताकि यातायात सीमित किया जा सके और वहां पर लोगों के पैदल चलने को प्रोत्साहित किया जा सके।

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