भीमा कोरगांव हिंसा : सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ FIR रद्द करने से इनकार किया
भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी आनंद तेलतुंबडे के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया। सोमवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि इस मामले में दिनोंदिन जांच बड़ी होती जा रही है और इस चरण पर अदालत इस मामले में दखल नहीं देगी।
हालांकि पीठ ने आरोपी को गिरफ्तारी से चार हफ्ते का सरंक्षण देते हुए कहा है कि इस दौरान आरोपी द्वारा ट्रायल कोर्ट से जमानत का अनुरोध किया जा सकता है। आरोपी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
21 दिसंबर 2018 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने आरोपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि इस साजिश की जड़ें बहुत गहरी हैं, जिसके नतीजे भी बेहद गंभीर हैं। यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति बी. पी. धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति एस. वी. कोतवाल की पीठ ने आरोपी आनंद तेलतुंबडे की याचिका को खारिज कर दिया था।
याचिका में तेलतुंबडे ने दावा किया था कि उन्हें इस मामले में फंसाया जा रहा है। अपनी याचिका में उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को गलत बताया था, जबकि पुलिस ने दावा किया है कि उसके पास याचिकाकर्ता के खिलाफ काफी सबूत हैं।
पीठ ने कहा कि तेलतुंबडे के खिलाफ अभियोग चलाने लायक सामग्री मौजूद है। पीठ ने यह भी कहा कि अपराध की प्रकृति गंभीर है। साजिश गहरी है और इसके बेहद गंभीर प्रभाव हैं। साजिश की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए यह जरूरी है कि जांच एजेंसी को आरोपी के खिलाफ सबूत खोजने के लिए पर्याप्त मौका दिया जाए।
हाई कोर्ट ने कहा कि शुरुआत में पुलिस की जांच इस साल (2018) एक जनवरी को हुई हिंसा तक सीमित थी, यह हिंसा पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में हुई यलगार परिषद के एक दिन बाद हुई थी। पीठ ने कहा कि बहरहाल अब जांच का दायरा कोरेगांव-भीमा घटना तक सीमित नहीं है, लेकिन घटना के पीछे की गतिविधियां और बाद की गतिविधियां भी जांच का विषय हैं। अदालत का मानना था कि तेलतुंबडे के प्रतिबंधित संगठन, सीपीआई (माओवादी) से संबंध की जांच की जानी चाहिए।