वरिष्ठ वकील के तौर पर नामित करने के मामले में दाखिल याचिका पर CJI ने खुद को अलग किया

Update: 2019-02-25 16:27 GMT

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सोमवार को उस याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया जिसमें 30 साल या उससे अधिक के कार्यकाल वाले सभी वकीलों को "वरिष्ठ वकील" के तौर पर नामित करने का आग्रह किया गया है।

शुरुआत में मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता संगठन से कहा, "आपको पुनर्विचार दाखिल करनी होगी।"

"आप मुझे नहीं सुनते हैं! यही समस्या है! आपके आधिपत्य में उच्च न्यायालय के 25 सेवानिवृत्त जज वरिष्ठ वकीलों के रूप में नामित किए गए हैं," याचिकाकर्ता संगठन नेशनल कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल ट्रांसपेरंसी एंड रिफॉर्म्स की ओर से पेश वकील मैथ्यूज नेदुम्परा ने पीठ से कहा।

फिर मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग करते हुए इसे किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए।

अक्टूबर, 2017 में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश ने फैसला दिया था, जिसके तहत सर्वोच्च न्यायालय और देश के सभी उच्च न्यायालयों द्वारा वरिष्ठ वकील के पदनाम के अभ्यास को नियंत्रित करने के मानदंडों को निर्धारित किया गया था। इसके तहत कहा गया था कि वरिष्ठ वकील के पदनाम से संबंधित सभी मामलों को भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक स्थायी समिति द्वारा निपटाया जाना चाहिए और इसमें भारत के उच्चतम न्यायालय (या उच्च न्यायालय) के 2 वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होंगे। साथ ही भारत के अटॉर्नी जनरल (उच्च न्यायालय के मामले में राज्य के महाधिवक्ता) भी समिति में रहेंगे।

इसके बाद पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासनिक तौर पर मामले को लेकर गाइडलाइन तय की थी।

जहां तक पात्रता का संबंध है, तो वो ही वकील वरिष्ठ वकील के रूप में पदनाम के लिए पात्र होगा जिसके पास 10 साल या उससे ज्यादा का अनुभव है। इसमें किसी जिला न्यायाधीश या किसी न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य को भी शामिल किया गया है। उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश भी इसके पात्र होंगे। 

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