ब्रेकिंग : क्रूरता के चलते वैवाहिक घर छोड़ने वाली महिला उस जगह भी धारा 498A के तहत कार्यवाही कर सकती है, जहां उसने शरण ली है

Update: 2019-04-09 07:18 GMT

लगभग 7 वर्षों से लंबित एक संदर्भ का जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क्रूरता के कारण अपने वैवाहिक घर से बाहर निकाली गई एक महिला आईपीसी की धारा 498A के तहत अपने आश्रयस्थल या अपने माता-पिता के घर की जगह पर आपराधिक कार्यवाही शुरू कर सकती है, जहां वह मौजूदा समय में रह रही है।

दरअसल CJI की अगुवाई वाली 3 जजों की बेंच इस मुद्दे पर एक संदर्भ पर विचार कर रही थी कि क्या आईपीसी की धारा 498A के तहत दहेज उत्पीड़न की सजा पर क्रूरता का मामला उस जगह दर्ज किया जा सकता है, जो जांच और आरोपी को सजा का अधिकार क्षेत्र वाले जगह से अलग हो।

मसलन, वह जगह जहां पीड़ित पत्नी को इस तरह के उत्पीड़न के कारण मजबूर किया गया है, क्या उससे अलग किसी क्षेत्र में 488A का मामला दर्ज किया जा सकता है, अन्वेषण किया जा सकता है एवं मामले में सजा सुनाई जा सकती है१

वर्ष 2012 में तत्कालीन पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति सी. नागप्पन शामिल थे, ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ याचिका की सुनवाई करते हुए इस प्रश्न को 'दिलचस्प' पाया था, जिसमें कहा गया था कि आईपीसी की धारा 498A के तहत क्रूरता दंडनीय अपराध जारी नहीं है (मसलन यह एक continuing offence नहीं है) और इस प्रकार इसकी जांच या सजा उस क्षेत्राधिकार के बाहर नहीं दी जा सकती जिस क्षेत्र में शिकायतकर्ता का वैवाहिक घर है।

उक्त मामले में उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें अभियुक्त के खिलाफ 498A के अपराध का संज्ञान लिया गया था।

पीठ ने कहा था: "यह प्रश्न मुख्य रूप से विचार के लिए उठता है कि जब एक महिला को क्रूरता का गठन करने वाले कार्यों और आचरण के कारण अपने वैवाहिक घर को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, तो क्या वो उस अदालत के अधिकार क्षेत्र के भीतर कानूनी प्रक्रिया शुरू कर सकती है जहां वो माता-पिता के साथ शरण लेती है।"

इस मामले में परस्पर विरोधी फैसलों को ध्यान में रखते हुए पीठ ने इस मामले का उल्लेख करते हुए कहा था: "ये निर्णय एक दूसरे के साथ संघर्ष करते हुए दिखाई देते हैं। किसी भी दर पर जैसा कि घोषणाओं में कहा गया है, ये कानून धुंधला और तरल रहता है। इसके अलावा जो प्रश्न विचार के लिए सामने आता है, वह बहुत बार उठता है और यह प्रश्न सामान्य सार्वजनिक महत्व का प्रश्न है। बार द्वारा उदाहरण के तौर पर दिए जाने वाले निर्णयों में भी सामंजस्य स्थापित करने और स्पष्ट संघर्ष को हल करने की आवश्यकता है।"

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