सबरीमला मंदिर : जस्टिस मल्होत्रा के छुट्टी पर होने की वजह से सुप्रीम कोर्ट में 22 जनवरी को सुनवाई होना मुश्किल
केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 22 जनवरी को शायद सुनवाई नहीं हो सकेगी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मंगलवार को कहा की इस फैसले (इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य) से जुड़ी पांच जजों की संविधान पीठ में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा मेडिकल कारणों से छुट्टी पर हैं। इस वजह से 22 जनवरी को इस मामले पर शायद सुनवाई नहीं हो पाएगी।
दरअसल पुनर्विचार याचिका दाखिल करने वाले मैथ्यू नंदूपरा ने मंगलवार को चीफ जस्टिस से आग्रह किया था कि 22 जनवरी को होने वाली सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग होनी चाहिए।
इससे पहले, सात दिसंबर 2018 को केरल सरकार की दो याचिकाओं पर जल्द सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था।
शुक्रवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने केरल सरकार की ओर से पेश हुए वकील विजय हंसारिया से पूछा कि इसमें जल्दबाजी की क्या जरूरत है ?
वैसे सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी को खुली अदालत में पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई का फैसला किया है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में केरल सरकार ने सबरीमला मंदिर को लेकर केरल हाईकोर्ट में दाखिल 23 याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की गुहार लगाई है।
याचिका में कहा गया है कि ये सभी 23 याचिकाएं, अप्रत्यक्ष तौर पर सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने में बाधा पहुंचाने के लिए दाखिल की गई हैं।
इसके अलावा केरल सरकार ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें तीन सदस्यों की समिति बनाने के निर्देश दिए गए हैं जो सबरीमला मंदिर में सुरक्षा व अन्य इंतजामों की निगरानी करेगी।
गौरतलब है कि 19 नवंबर 2018 को इस मामले में त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से 28 सितंबर के आदेश को, जिसमे सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश का आदेश दिया गया था, लागू करने के लिए कुछ और वक्त देने की गुहार लगाई है।
याचिका में इस मामले में बिगड़ी कानून व्यवस्था का हवाला दिया गया है। कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक असर हुआ है और मंदिर को लेकर कानून व्यवस्था बिगड़ी है। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत महिलाओं के प्रवेश के लिए शौचालयों का प्रबंध व अन्य व्यवस्था करने में भी वक्त लगेगा क्योंकि पंबा व निलक्कल में CEC ने निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है। ये इलाका संरक्षित वन क्षेत्र में आता है।
ऐसे में जब तक बोर्ड, कमेटी के सारे नियमों का पालन नहीं करता है तब तक वहां किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं हो सकता और ना ही महिलाओं के लिए उचित सुविधाओं का इंतजाम हो सकता है। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को ये भी बताया है कि अभी तक 1000 महिलाओं ने मंदिर में दर्शन के लिए पंजीकरण कराया है। बोर्ड ने गुहार लगाई है कि महिलाओं के लिए रेस्ट रूम, शौचालयों व सुरक्षा के मद्देनजर इंतजाम करने और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए थोड़ा और वक्त दिया जाए।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट, सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के अपने फैसले को लेकर दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया था। 13 नवंबर को यह फैसला किया गया कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन, जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की पीठ खुली अदालत में 22 जनवरी को सुनवाई करेगी। पीठ ने ये भी साफ किया कि इस दौरान 28 सितंबर के फैसले पर कोई रोक नहीं लगेगी।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में 28 सितंबर के पांच जजों के संविधान पीठ के फैसले को लेकर 49 पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गई हैं। फैसले में 4:1 के बहुमत से कहा गया कि सभी उम्र की महिलाएं केरल के सबरीमला मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं। पीठ ने 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक की परंपरा को इस फैसले के जरिये अंसवैधानिक करार दिया है।इसी को लेकर पीठ ने चेंबर में विचार किया और फिर आदेश जारी किया। आपको बता दें कि इस फैसले की संविधान पीठ में शामिल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा अब रिटायर हो चुके हैं और उनकी जगह चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने ली है।