कंप्यूटरों की निगरानी : सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा
केंद्र सरकार द्वारा दस एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर के सर्विलांस के अधिकार दिए जाने के फैसले को लेकर दाखिल जनहित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 6 हफ्ते में जवाब मांगा है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने फिलहाल केंद्र सरकार के अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि अदालत पहले केंद्र सरकार के जवाब को देखेगी।
ये याचिकाएं इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन, श्रेया सिंघल, वकील अमित साहनी और मनोहर लाल शर्मा ने दाखिल की है और इसमें सरकार के फैसले को मनमाना करार देते हुए इसे रद्द करने की गुहार लगाई गई है।
याचिका में कहा गया है कि गृहमंत्रालय का 20 दिसंबर का आदेश गैरकानूनी, मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला और संविधान के खिलाफ है। इसलिए इस आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।
याचिका में यह भी कहा गया है कि गृहमंत्रालय इस तरह के सर्विलांस का आदेश जारी नहीं कर सकता है। इस तरह के किसी भी फैसले को निजता के अधिकार की कसौटी पर तौला जाना चाहिए। यह भी कहा गया है कि, केंद्र ने ये आदेश जारी कर आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर विपक्ष, सरकार के खिलाफ बोलने वाले व सोचने वालों को चुप कराने की कोशिश की है।
याचिका में आगे कहा गया है कि ये अघोषित इमरजेंसी है और सरकार का यह कदम आजाद भारत में नागरिकों को गुलाम बनाने जैसा है। सरकार को किसी भी ऐसे मामले में किसी नागरिक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से रोका जाए क्योंकि ये Cr.PC और फेयर ट्रायल के नियमों के खिलाफ है।
दरअसल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर दस भारतीय एजेंसियों को कंप्यूटर में रखे डाटा,ऑनलाइन गतिविधियों और दूसरे क्रियाकलापों पर निगरानी के अधिकार दिए हैं। इसके तहत सूचनाओं की निगरानी हो सकती है और इन्हें डीकोड भी किया जा सकता है। पहले, बड़े आपराधिक मामलों में ही कंप्यूटर या ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखने, जांच करने और इन्हें जब्त करने की इजाजत थी।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 10 जांच एजेंसियों को यह अधिकार दिया है कि वो किसी भी कंप्यूटर को इंटरसेप्ट कर सकती हैं। जिन जांच एजेंसियों को यह अधिकार दिया है उनमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), खुफिया ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राजस्व खुफिया निदेशालय, कैबिनेट सचिव (रॉ), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटिलिजेंस (सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के सेवा क्षेत्रों के लिए) और दिल्ली पुलिस आयुक्त के नाम शामिल हैं।
किसी के कंप्यूटर में स्टोर डाटा की निगरानी करने और डिक्रिप्ट करने का दस केंद्रीय एजेंसियों को अधिकार दिए जाने के गृह मंत्रालय के फैसले पर चारों ओर से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। वहीं गृह मंत्रालय का कहना है कि ये आदेश सूचना एवं तकनीकी एक्ट में मौजूद विसंगतियों को दूर करके देश की सुरक्षा के लिए खतरा बने आतंकियों के डेटा को एक्सेस करने के लिए दिया गया है।