पॉक्सो एक्ट : कोई संस्था अगर अपराध की रिपोर्ट न करे तो क्या होंगे उसके परिणाम, जानिए प्रावधान

Update: 2022-02-12 07:27 GMT

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स बयूरो (NCRB) जारी किए आंकड़ों के अनुसार भारत मे हर साल शिशुओं के यौन शोषण के संबंध मे वर्ष दर वर्ष बढ़ोत्तरी हो रही है। इन मामलों को गंभीर से निपटने हेतु सरकार द्वारा लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (रोकथाम), 2012 लागू किया गया, जिससे वर्ष 2019 में प्रावधानों में कठोरता लाते हुए संशोधित भी किया गया है, परन्तु क्या बालकों क्या हित अभी भी संरक्षित है?

यह एक सोचनीय विषय है। हालांकि, इन दिनों मराठी फ़िल्म नई वारनभात लोंचा, कोन नई कोंचा' विवादित चर्चा का विषय बनी है। आरोप है कि अभिनेता व निर्देशक महेश मांजरेकर द्वारा निर्देशित इस मराठी फिल्म में महिला अभिनेत्रियों के साथ 13-14 वर्षीय नाबालिगों की शूटिंग आपत्तिजनक है। साथ ही यह फिल्म विकृति, हिंसा और अश्लीलता के चित्रण को दर्शाती है, जो कि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (रोकथाम), 2012[POCSO ACT] की विभिन्न धाराओं का उल्लंघन भी करती है।

जारी किए गए प्रमाण पत्र को रद्द करने की मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की गई है। इसके साथ ही भारतीय स्त्री शक्ति(NGO) की अध्यक्ष द्वारा स्थानीय पुलिस थाने में FIR दर्ज करवाई गई जिस पर पुलिस द्वारा कोई प्रतिक्रिया नही की, जिसके चलते हुए मामला स्थानीय पॉक्सो न्यायालय में पॉक्सो एक्ट, 2012 की धारा 13 सहपठित धारा 21 व धारा 292 (भारतीय दंड सहिंता) के अधीन याचिका दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है- दंड प्रक्रिया सहिंता, 1973 की धारा-156(3) के तहत पुलिस को FIR फ़ाइल करने और पक्षपात रहित अन्वेषण किये जाने के आदेश दिये जाए।

विवाद की विषयवस्तु तथा मुख्य मुद्दे को जानने हेतु पॉक्सो अधिनियम, 2012 का संक्षिप्त अवलोकन करना आवश्यक है। यह एक जेंडर न्यूट्रल लॉ, जो 18 वर्ष से कम उम्र के बालक और बालिकाओं दोनों पर सामना रूप से लागू होता है। अधिनियम की धारा 3 से 18 तक में वर्णित कृत्य चाहे किसी भी तरीके या प्रभाव से किया गये गए हो, इस अधिनियम में अपराध के रूप में का उपबंधित है, जिसमें प्रवेशन लैंगिक हमला, लैंगिक हमला, लैंगिक उत्पीड़न, अश्लील प्रयोजनों के लिए बालक का उपयोग और दुष्प्रेरण इत्यादि शामिल है तथा इस संबंध में विशेष दंडों का प्रावधान भी किया गया है। इसी विषय में धारा 19 व 21 भी महत्वपूर्ण रूप से अवलोकनीय है।

सामान्य: अर्थो धारा 19 पॉक्सो अधिनियम, 2012 अनुसार- जब किसी व्यक्ति को अधिनियम के अंतर्गत वर्णित किसी अपराध जानकारी है की ऐसा कार्य किया गया है या यह आशंका की इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किए जाने की संभावना, वह ऐसी जानकारी विशेष किशोर पुलिस युनिट या स्थानीय पुलिस को उपलब्ध कराएगा। धारा-19 के अधीन ऐसी रिपोर्ट करने में असफल होने धारा-21 में दंड का प्रावधान है, जो कि इस प्रकार है-

(1) कोई भी व्यक्ति, जो धारा 19 या धारा 20 की उप-धारा (1) के तहत किसी अपराध के होने की रिपोर्ट करने में विफल रहता है या जो धारा 19 की उप-धारा (2) के तहत ऐसे अपराध को दर्ज करने में विफल रहता है, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा। दोनों में से किसी एक का विवरण जो छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

(2) कोई भी व्यक्ति, जो किसी कंपनी या संस्था (चाहे वह किसी भी नाम से जाना जाता हो) का प्रभारी हो, जो अपने नियंत्रणाधीन अधीनस्थ के संबंध में धारा 19 की उप-धारा (1) के तहत अपराध की रिपोर्ट करने में विफल रहता है, कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

(3) उप-धारा (1) के प्रावधान इस अधिनियम के तहत एक बच्चे पर लागू नहीं होंगे।

जैसे कि उदाहरणत:- क 5 वर्षीय बालक है,जो कि किसी स्कूल में विद्यार्थी है। क के अध्यापक द्वारा उस पर लैंगिक हमला किया जाता है, जिसकी जानकारी नाबालिग द्वारा स्कूल प्रिंसिपल को दी जाती है, परन्तु प्रिंसिपल द्वारा कोई कार्यवाही नही की है। स्कूल प्रिंसिपल इस अधिनियम की धारा19/21 अंतर्गत दायीं माना जाएगा, क्योंकि, उसका यह दायित्व है कि वह मामले को प्रथम अवसर पर धारा 19 की प्रक्रियानुसार रिपोर्ट करे।

उपरोक्त प्रावधान को प्रवर्तन में लाने का मात्र उद्देश्य नॉन रिपोर्टिंग ऑफ केसेज कल्चर पर रोक लगाना है और ऐसे व्यक्तियों को भी दायित्वाधिन बनाना है जो बालक के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न की जानकारी रखते हुए भी कि मूक दर्शक बने है।

इसलिये विधायिका के इस आशय की व्याख्या करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने A.S. कृष्णन बनाम केरल राज्य,2004 SC 3229, तय किया कि धारा 19/21 में प्रयुक्त शब्द "जानकारी" से तात्पर्य उस व्यक्ति की मन:स्तिथि [STATE OF MIND] से है। इसलिए कहा जा सकता है कि, जानकारी व्यक्तिगत "ज्ञान" का द्योतक है। यदि व्यक्ति को अपराध के विषय मे जानकारी है, तो उसको ज्ञान के समतुल्य ही माना जाएगा है तथा वह अधिनियम की धारा 19/21 अंतगर्त दायीं होगा। ऐसे मामलों में विशेष जानकारी साबित करना अभियोजन पक्ष का कार्य है।

उसी प्रकार से कमल प्रसाद बनाम छतीसगढ़ राज्य व अन्य,2016 Cricket LJ 3759 के मामले निर्धारित करते हुए कहा गया कि, यदि किसी व्यक्ति को अपराध के संबंध में जानकारी है परंतु ज्ञान में आने के पचाश्चत समय पर रिपोर्ट नही कर पाया क्यों कि उसने स्वयं भी मामूली जांच की, मात्र इसकारण से ही उसे धारा 19/21 में अभियोजित नही किया जा सकता। समय तथा विलंब का परीक्षण "युक्तियुक्तता" के आधार पर निर्धारित किया जाएगा और जांच हर मामले के तथ्यों व परिस्थितियों के आधार पर की जाएंगी।

• आवश्यक मुद्दा तो यह भी है कि क्या ऐसे व्यक्ति का विचारण मुख्य अभियुक्त के साथ किया जाएगा या यह पृथक रूप से किया जाएगा?

इसका उत्तर धारा-223(d)CRPC,1973 है। इस उपबंध को पढ़ने से स्पष्ट है कि, वे व्यक्ति जिन पर एक ही संव्यवहार के अनुक्रम में किये गए भिन्न अपराधों का अभियोग है, का एक साथ आरोप लगाया जा सकेगा और एक साथ विचारण किया जा सकेगा।

कमल प्रसाद बनाम छत्तीसगढ़ राज्य व अन्य,2016 Cricket LJ 3759 इसी बात को इंगित करते हुए कहा कि, धारा 19/21 में व्यक्ति को दायित्वाधिन बनाये जाने से पूर्व अभियोजन स्थापित करे कि अधिनियम की धाराओं में वर्णित अपराध (धारा 3 से 18 तक) मुख्य अभियुक्त की द्वारा कारित किया गया है और तब स्थापित करे कि अपराध की जानकारी के बावजूद वह रिपोर्ट करने में असफल रहा। इसकी अनुपस्थिति में धारा21(2) के अधीन अभियोजन की पहल करना अनुचित है।

• क्या धारा 21(2) पॉक्सो अधिनियम,2012 जमानतीय व असंज्ञेय अपराध है?

जी हां, सामान्य: धारा मात्र दंड की बात करती। यह जमानतीय है या नही, के विषय मे कोई प्रावधान दर्शित नही करती है। ऐसी दशाओ में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता,1973 में वर्णित अनुसूची भाग-।। अन्य विधियों के विरुद्ध अपराधों का वर्गीकरण,का अवलोकन किया जाना चाहिए। जिसके अनुसार-यदि अपराध 3 वर्ष से कम के लिए कारावास या केवल जुर्माने से दंडनीय है तो वह जमानतीय व असंज्ञेय अपराध माना जाएगा। इसीलिए धारा21 में किया अपराध जमानतीय व असंज्ञेय है और धारा 31 पॉक्सो अधिनियम,2012 के अनुसार- CRPC में उपबंधित जमानत के सारे नियम जो कि अध्ययय 33 [धारा 436 -450] में दिए गए है, सामान्य तौर पर लागू होंगे।

• निष्कर्ष

बालकों में लैंगिक शोषण को जघन्य अपराध माना गया है, और उन पर प्रभावी रूप से करवाई करना आवश्यक है। शायद यही कारण है कि धारा 19/21 के अधीन कठोर दायित्व अधिरोपित किया गया है।

बच्चे देश का भविष्य है,हर साल कई सारे नाबालिग अपने घरों ,स्कूलों व होस्टलों इत्यादि से लैंगिक शोषण का शिकार बनते है। भारतीय विधिक परिवेश में बालकों को कई विधियों में अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से संरक्षण प्राप्त होने के उपरांत भी पॉक्सो अधिनियम,2012 को औपचारिक तौर से अधिनियमित की गया।

इसका मुख्य उद्देश्य 18 वर्ष से कम उम्र के शिक्षुओं को यौन दुर्व्यवहार व लैंगिक हमला से सुरक्षा प्रदान करना है और चाइल्ड पोर्नोग्राफिक मटेरिल पर रोक लगाना है। साथ ही बालक में अच्छे शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास को सुनिश्चित करने का अवसर देना भी शामिल है।

(लक्षिता राजपुरोहित अधिवक्ता हैं और जोधपुर में प्रैक्टिस करती हैं) 

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