निर्वाचन आयोग के पास हैं असीमित अधिकार, सुप्रीम कोर्ट भी नहीं कर सकता इसमें हस्तक्षेप
भारत में चुनाव आयोग को चुनाव कराने को लेकर असीमित संवैधानिक अधिकार प्राप्त है और इस बात का पता इस देश के लोगों को विशेषकर उस समय लगा जब टीएन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे।
संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत आयोग को चुनाव कराने के बारे में असीमित अधिकार दिये हैं। इनमें चुनाव के देख रेख का अधिकार, प्रबंधन का अधिकार और इसके निर्देशन का अधिकार दिया है। एक बार जब आयोग चुनाव की घोषणा कर देता है तो न्यायलय भी आयोग के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। संविधानके अनुच्छेद 329 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट भी चुनाव की घोषणा के बाद और चुनाव के समाप्त होने तक आयोग के निर्णयों पर उंगली नही उठा सकता है।
परिसीमन : चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन चुनाव आयोग का अधिकार है। इसकी वैधता पर न्यायाल का हस्तक्षेप वर्जित है। आयोग के और अधिकारों में राजनीतिक दलों का पंजीकरण, उन्हें चुनाव चिन्हों का आवंटन, चुनाव की तारीख तय करना आदि शामिल हैं।
चुनाव चिन्हों का आवंटन : आयोग को चुनाव चिन्ह आरक्षण एव आवंटन अध्यादेश, 1968 (Election Symbol Reservation and Allotment Ordinance 1968) के तहत चुनाव चिन्ह आवंटन का असीमित अधिकार मिला हुआ है।
चुनाव ख़र्च का ब्योरा : जन प्रतिनिधि कानून की धारा 77 के तहत चुनाव समाप्त हो जाने पर उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार में खर्च का ब्योरा जिला चुनाव अधिकारी को देना होता है।
चुनाव में काले धन के प्रयोग को रोकने के लिए आयोग ने कई निर्देश दिये हैं, जैसे कि चुनाव में नामांकन से एक दिन पहले प्रत्याशी किसी बैंक में अपना एक खाता खुलवायेगा और चुनाव प्रचार पर सारा व्यय उसी खाते से होगा और चुनाव व्यय को चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक चुनाव के दौरान सत्यापित करेंगे। चुनाव आयोग नेप्रत्याशियों के लिए एक हैंडबुक अपने वेबसाइट पर उपलब्ध कराया है और नांमाकन के समय भी यह उन्हें उपलब्ध कराई जाती है।
चुनाव आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए नांमाकन पत्र के साथ 26 नियम 4 अ के तहत एक संशोधित शपथपत्र का प्रारूप भी दिया है जिसमें कुछ और प्रावधान जोड़े गए हैं। इस बार प्रत्याशी को पिछले पांच वर्षों के आय का ब्योरा भी देना होगा। शपथ पत्र प्रारूप 26 में पहले से ही प्रत्याशी के आपराधिक रिकार्ड जैसेएफआईआर, कोर्ट में आपराधिक मामला या किसी आपराधिक मामले में मिली सज़ा आदि का विवरण देना अनिवार्य है।
प्रत्याशियों की आर्थिक स्थिति, उनकी चल-अचल संपत्ति का विवरण देना अनिवार्य है।
ये सारी बातें चुनाव के अपराधीकरण पर रोक लगाने, काले धन के चलन को रोकने और जीतने वाले प्रत्याशी के आय के स्रोतों पर निगाह रखने के आशय से किये गये हैं।
पर यह सब जानते हैं कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के चुनाव लड़ने की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई है। और चुनावों में काले धन के प्रयोग पर भी रोक नहीं लग पाया है। पैसे से वोट ख़रीदने पर भी कोई प्रभावी रोक नहीं लग पाया है। इस बार इसको रोकने के लिए आयोग ने एक App भी लॉंच किया है और दावा किया है कि इसApp से आचरण संहिता के किसी भी तरह के उल्लंघन की सूचना पर 100 मिनट के अंदर कार्रवाई होगी।
उत्तर प्रदेश में 2017 में जो विधानसभा का चुनाव हुआ उसके बाद ईवीएम मशीनों पर उँगलियां उठी। और इस बारे में राजनीतिक दलों ने शिकायत की और अदालतों में याचिकाएँ डाली गईं। ऐसे ही एक मामले में उत्तर प्रदेश के एक नेता ने इस मामले में अपनी याचिका की पैरवी का ज़िम्मा मुझे सौंपा था। पर आयोग ने दुहरायाहै कि ईवीएम के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकता। अब यह प्रावधान किया गया है कि ईवीएम को वीवीपैट से जोड़ा जाएगा और इससे निकालने वाली पर्ची का उस केंद्र पर डाले गए मतदान से मिलान किया जाएगा। पर ऐसा सभी मतदान केंद्रों और हर ईवीएम मशीनों के साथ नहीं होगा।
राजनीतिक पार्टियों में अंतर्कलह और पार्टियों में विभाजन के बाद चुनाव चिन्ह किस दल को आवंटित होता इसका फैसला भी आयोग ही करता है।
अभी कुछ समय पहले अखिलेश यादव व मुलायम सिंह यादव के बीच समाजवादी पार्टी में विभाजन की स्थिति उत्पन्न हुई तो चुनाव चिन्ह साईकिल किसको मिले इस पर काफी विवाद हुआ और दोनों पक्षों बीच समझौता होने पर साईकल चुनाव चिन्ह को प्रतिबंधित नहीं किया गया। चुनाव चिन्हों को लेकर विवाद काफ़ी आम हैऔर क्योंकि पार्टियों में विभाजन होता रहता है।
चुनाव चिन्ह के विवाद पर 11 नवम्बर 1971 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की एक पीठ ने सादिक़ अली बनाम चुनाव आयोग मामले में ऐतिहासिक निर्णय दिया था। सादिक़ अली उस समय कांग्रेस (ओ) के राष्ट्रीय महासचिव थे।
(लेखक सुप्रीम कोर्ट के वक़ील हैं और लेख मैं विचार व्यक्तिगत है )