घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला के पास कुछ अधिकार हैं| इन अधिकारों की पूर्ति के लिए मजिस्ट्रेट कई तरह के आदेश पारित कर सकते हैं| इस लेख के पिछले भाग में घरेलू हिंसा क्या है, पीड़ित महिला कौन है, शिकायत किसके समक्ष दर्ज करायी जा सकती है, इत्यादि जानकारी दी गई है| लेख के भाग दो में कौन से आदेश किस परिस्तिथि में पारित किये जा सकते है, इसकी जानकारी दी गई है|
आदेश प्राप्त करने के लिए आवेदन की प्रक्रिया
घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 में पीड़ित महिला के हितों की रक्षा के लिए कई तरह आदेशों के पारित किये जाने का प्रावधान है| पीड़ित महिला या पीड़ित महिला की तरफ से कोई भी व्यक्ति मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकता है| आवेदन में ऐसी कोई भी राहत माँगी जा सकती है जिसका प्रावधान अधिनियम में दिया गया है|
आवेदन के बाद संरक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट को घरेलू घटना रिपोर्ट देंगे जिसके आधार पर मजिस्ट्रेट अपना निर्णय लेंगे| घरेलू घटना रिपोर्ट में हिंसा की घटना की विस्तृत जानकारी के अलावा पीड़ित महिला द्वारा माँगी गई राहत का भी ब्यौरा होता है| साथ ही माँगी गई आश्रय गृह की सुविधा, चिकित्सीय सुविधा, पुलिस की सहायता, अपराधिक मामला दर्ज करने में सहायता और निःशुल्क कानूनी सहायता का भी विवरण होता है| सामान्यतः ये रिपोर्ट संरक्षण अधिकारी द्वारा बनायीं जाती है लेकिन सेवा प्रदाता के पास भी ये रिपोर्ट बनाने का अधिकार है| सेवा प्रदाता द्वारा बनायीं गई रिपोर्ट की प्रतियां मजिस्ट्रेट एवं संरक्षण अधिकारी को दी जाती हैं|
त्वरित कार्यवाही और निपटारे का प्रावधान-
अधिनियम में घरेलू हिंसा के मामलों में त्वरित कार्यवाही और निपटारे का भी प्रावधान है| कोई भी आवेदन मिलने के बाद मजिस्ट्रेट को तीन दिन के भीतर मामले की पहली सुनवाई करनी होगी और साठ दिनों के भीतर मामले का निपटारा करना होगा| अधिनियम में सुनवाई बंद कमरे में या कैमरे के सामने भी किये जाने का प्रावधान है, परन्तु यह मजिस्ट्रेट का स्वविवेकाधिकार है|
पीड़ित महिला के अधिकार
घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला के पास निम्नलिखित अधिकार हैं-
- साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार- इस अधिकार के अंतर्गत महिला को न सिर्फ अपने ससुराल बल्कि अपने मायके में भी रहने का अधिकार है| साझी गृहस्थी से आशय यह है की ऐसा कोई भी घर जहाँ पर महिला घरेलू हिंसा करने वाले व्यक्ति (जिसे प्रतिवादी भी कहते हैं) के साथ रहती हो या पहले रही हो| अगर महिला किसी संयुक्त परिवार की सदस्य हो तो संयुक्त परिवार के घर पर रहने का अधिकार महिला के पास है| इस अधिकार की पूर्ति के लिए निवास आदेश पारित करवाया जा सकता है|
- निःशुल्क विधिक सेवा का अधिकार- इस अधिकार के पीड़ित महिला के पास राज्य विधिक सेवा आयोग से मुफ्त विधिक सेवा प्राप्त करने का अधिकार है| इसके अंतर्गत पीड़ित महिला को मुफ्त में सरकारी वकील द्वारा पैरवी की सुविधा दी जा सकती हैं| पीड़ित महिला राज्य विधिक सेवा आयोग द्वारा मुफ्त में कानूनी सलाह भी प्राप्त कर सकती है|
- अपराधिक मुकदमा दर्ज करने का अधिकार- पीड़ित महिला के पास घरेलू हिंसा करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता 1868 की धारा 498A में अपराधिक मुकदमा दर्ज कराने का भी अधिकार है| घरेलू हिंसा अधिनियम और धारा 498A के अंतर्गत एक साथ शिकायत दर्ज करने में भी कोई रोक नहीं है|
- आवेदन का अधिकार- अधिनियम के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के पास कई तरह के आदेश पारित करने का अधिकार है| पीड़ित महिला के पास अपने अधिकारों की पूर्ति हेतु मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकती है|
कौन से आदेश पारित हो सकते हैं?
पीड़ित महिला के आवेदन पर मजिस्ट्रेट निम्नलिखित आदेश पारित कर सकते हैं-
- संरक्षण आदेश- जैसा की नाम से ही विदित है, ये आदेश पीड़ित महिला को घरेलू हिंसा और किसी दूसरे प्रकार की हिंसा से बचाने के लिए पारित किया जाता है| मजिस्ट्रेट ये आदेश तब पारित कर सकते है जब उन्हें ये लगता है की प्रथम द्रष्टया घरेलू हिंसा की घटना घटित हो चुकी है या होने वाली है| ये आदेश किसी व्यक्ति को निम्नलिखित चीज़ें करने से रोक सकता है-
- घरेलू हिंसा के किसी कार्य को करने से;
- घरेलू हिंसा के किसी कार्य को में सहायता करने या उकसाने से;
- पीड़ित महिला के कार्यस्थल में जाने से या किसी ऐसी जगह जाने से जहां पीड़ित महिला बार-बार जाती हो;
- पीड़ित महिला से इलेक्ट्रॉनिक, लिखित, मौखिक या अन्य किसी तरीके से संपर्क करने से;
- पीड़ित महिला की कोई भी संपत्ति जैसे बैंक अकाउंट, बैंक लॉकर, स्त्रीधन इत्यादि को बेचने से| यदि कोई संपत्ति संयुक्त रूप से पीड़ित महिला की है तो वो भी मजिस्ट्रेट की आज्ञा के बिना बेचीं नहीं जा सकती;
- पीड़ित महिला के रिश्तेदार औरआश्रितों के साथ हिंसा करने से| ऐसा कोई भी व्यक्ति जो घरेलू हिंसा के विरुद्ध पीडिता की सहायता करता हो, उसके साथ हिंसा करने से;
- कोई अन्य कार्य जो मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिबंधित किया गया हो|
- निवास आदेश- यह आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा तब पारित किया जाता है जब यह स्थापित हो चुका हो कि घरेलू हिंसा घटित हो चुकी है| इस आदेश के द्वारा मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को निम्नलिखित कार्य करने से रोक सकते हैं-
- पीड़ित महिला को साझी गृहस्थी से निकालने से;
- साझी गृहस्थी में स्वयं रहने से;
- साझी गृहस्थी के उस भाग में जाने से जहाँ पीडिता रहती हो उस भाग में प्रवेश से या प्रवेश में बाधा उत्पन्न करने से;
- साझी गृहस्थी में अपने अधिकार हस्तांतरित करने से या त्यागने से| अधिकार हस्तांतरित करने से रोक का मतलब है की संपत्ति को बेचना या किराए पर देने से, इत्यादि पर रोक|
इसके अलावा मजिस्ट्रेट ये भी आदेश पारित कर सकते है की प्रतिवादी पीडिता को उसी स्तर का निवास स्थान उपलब्ध कराये जिस स्तर की साझी गृहस्थी है| प्रतिवादी को ऐसे निवास स्थान का किराया देने का आदेश भी दिया जा सकता है|
निवास आदेश के पालन के लिए मजिस्ट्रेट निकटतम पुलिस थाने को पीडिता की मदद करने का आदेश दे सकते है|
- क्षतिपूर्ति एवं वित्तीय सहायता आदेश- पीड़ित महिला द्वारा कई बार मानसिक यातनाये और भावनात्मक उत्पीडन भी सहा जाता है| ऐसी यातनाएं झेलने के फलस्वरूप हुए नुकसान की भरपाई के लिए मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को क्षतिपूर्ति आदेश दे सकते हैं|
क्षतिपूर्ति के अलावा वित्तीय सहायता का भी आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किया जा सकता है| इस आदेश के द्वारा पीड़ित महिला और उसके बच्चों को प्रतिवादी द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है| वित्तीय सहायता घरेलू हिंसा की वजह से हुए निम्नलिखित नुकसानों और खर्चों एवज में दी जाती है| ध्यान रखने वाली बात यह है की नुकसान और खर्चे निम्नलिखित तक सीमित नहीं है-
- कमाई का नुकसान
- चिकित्सीय खर्चे
- पीड़ित महिला की संपत्ति के नष्ट होने से हुए नुकसान
- इत्यादि
वित्तीय सहायता के लिए दी जाने वाली राशि पर्याप्त और पीड़ित महिला के जीवनस्तर के अनुसार होनी चाहिए| वित्तीय सहायता एकमुश्त या मासिक किस्तों के रूप में दी जा सकती है| वित्तीय सहायता पीड़ित महिला और उसके बच्चों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए दी जाती है| सहायता राशि पर निर्णय मामले की प्रकृति, परिस्तिथियाँ तथा दोनों पक्षों की आर्थिक स्तिथि को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है|
- अभिरक्षा आदेश- घरेलू हिंसा के मामले की सुनवाई के दौरान मजिस्ट्रेट द्वारा पीड़ित महिला के बच्चों की अस्थायी अभिरक्षा (कस्टडी) पीड़ित महिला को दे सकते हैं| कस्टडी किसी ऐसे व्यक्ति को भी दी जा सकती है जो पीड़ित महिला की तरफ से बच्चों की कस्टडी के लिए आवेदन करे| मजिस्ट्रेट परिस्तिथि अनुसार प्रतिवादी को बच्चों से मिलने अनुमति दे सकते है अथवा प्रतिवादी को बच्चों से मिलने से रोक भी सकते हैं|
- अंतरिम आदेश एवं एकपक्षीय कार्यवाही- इस अधिनियम के अंतर्गत होने वाली कोई भी कार्यवाही के दौरान मजिस्ट्रेट को कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने का अधिकार है| अंतरिम आदेश न्यायोचित होने चाहिए| घरेलू हिंसा की शिकायत या किसी आदेश पारित करवाने के आवेदन से मजिस्ट्रेट को यह लगता है की प्रथम दृष्टया घरेलू हिंसा घटित हो चुकी है या होने वाली है, तो वह प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय आदेश दे सकते हैं| एकपक्षीय आदेश प्रतिवादी को सुने बिना या सुनने का मौका दिए बिना पारित किये जाते हैं|
घरेलू हिंसा भारत में के व्यापक समस्या है| वर्ष 2018 में राष्ट्रीय महिला आयोग में घरेलू हिंसा और उत्पीडन की 7500 से ज्यादा शिकायतें दर्ज हुई हैं| अभी भी काफी बड़े तबके को घरेलू हिंसा अधिनियम के बारे में जानकारी नहीं है| सामाजिक और पारिवारिक दवाब के कारण भी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करवाने से कतराती हैं| थोड़ी सी जानकारी से काफी महिलाओं की मदद हो सकती है|
लेखक मयंक साहू डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय के छात्र हैं|