कानून आईवीएफ की इच्छुक विवाहित या अविवाहित महिला के बीच अंतर नहीं करता; शुक्राणु/अंडाणु दंपति का ही हो, यह आवश्यक नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2024-04-29 10:09 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि इन-विट्रियो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के मामलों में यह अनिवार्य नहीं कि शुक्राणु या अंडाणु आईवीएफ की इच्छुक दंपति का ही हो।

जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य की सिंगल जज बेंच ने सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 [Assisted Reproductive Technology (Regulation) Act, 2021] के तहत मौजूद नियमों का अवलोकन किया और एक पति की याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसने किशोर उम्र की अपनी बेटी को खोने के बाद आईवीएफ के माध्यम से संतनोत्पत्ति की मांग की थी।

याचिकाकर्ता पति की उम्र 59 वर्ष है। अधिनियम के अनुसार वह उसकी उम्र आईवीएफ तकनीकी के प्रयोग के लिए निर्धारित अधिकतम उम्र की सीमा पार कर चुकी है। हालांकि पत्नी की उम्र 46 वर्ष है और वह इसके लिए पात्र है। पति की उम्र अधिक होने के कारण उन्हें कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ रहा था।

कोर्ट ने फैसले में कहा, "एक ऐसी महिला, जो व्यक्तिगत रूप से ऐसी तकनीक का सहारा लेने के लिए क्लिनिक जाती है और दूसरी ऐसी महिला, जो दांपत्य का हिस्सा है और ऐसे उद्देश्यों के लिए क्लिनिक जाती है, धारा 21(जी) ऐसी दोनों महिलाओं के बीच कोई अंतर नहीं करती है। चूंकि अधिनियम विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं करता है, इसलिए वर्तमान मामले में भी ऐसा अंतर नहीं किया जा सकता है।"

कोर्ट ने आगे कहा,

"सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, याचिकाकर्ता संख्या एक यानि पति को व्यक्तिगत रूप से सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं का सहारा लेने से रोक दिया गया है। हालांकि, याचिकाकर्ता संख्या दो, (पत्नी) धारा 21(जी)(आई) की अनुमेय आयु सीमा के अंतर्गत आती है। याचिकाकर्ता वे थर्ड पार्टी डोनर के शुक्राणु का उपयोग करना चाहते हैं, इस प्रकार, मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता संख्या एक की शारीरिक भागीदारी शामिल नहीं है, जिसे अधिनियम के तहत सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाएं प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया गया है। इस प्रकार, धारा 21(जी)(ii) के तहत रोक बिल्कुल भी लागू नहीं होती है।"

यह स्पष्ट किया गया था कि अधिनियम के तहत, एक कमीशनिंग जोड़ा, जो आईवीएफ सुविधाएं ले सकता है, को एक ऐसे विवाहित जोड़े के रूप में परिभाषित किया गया है, जो प्राकृतिक तरीकों से गर्भधारण करने में असमर्थ थे। कोर्ट ने कहा कि अधिनियम के तहत, पति आईवीएफ प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकता है, लेकिन दंपति अभी भी गर्भधारण कर सकते हैं क्योंकि वे दाता युग्मक (Donor Gametes) स्वीकार करने के इच्छुक हैं।

कोर्ट ने कहा, "मानव शरीर के बाहर शुक्राणु या अंडाणु (sperm or oocyte)को संभालकर गर्भावस्था प्राप्त की जा सकती है। ऐसे कोई प्रतिबंध नहीं है कि दोनों दपंति का ही हो।"

कोर्ट ने यह माना कि हालांकि पति इस प्रक्रिया के लिए अपने युग्मक दान करने की उम्र पार कर चुका है, पत्नी अभी भी अधिनियम के तहत पात्र थी, और आईवीएफ उपचार लेने के लिए उस पर कोई रोक नहीं थी। तदनुसार, इसने दंपति की आईवीएफ उपचार प्राप्त करने की याचिका को अनुमति दे दी।

साइटेशन: 2024 लाइवलॉ (कैल) 101

केस नंबर: सुदर्शन मंडल और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

केस टाइटलः WPA 9232/2024

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