नियोक्ता का दायित्व है कि वह अनुशासनात्मक कार्यवाही में कर्मचारी के प्रति कोई पूर्वाग्रह न पैदा करे: कलकत्ता हाइकोर्ट

Update: 2024-05-06 06:53 GMT

कलकत्ता हाइकोर्ट की जस्टिस पार्थ सारथी चटर्जी और जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने सौरव कृष्ण बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में एक रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए कहा कि नियोक्ता का दायित्व है कि वह अनुशासनात्मक कार्यवाही में यह सुनिश्चित करे कि कर्मचारी के प्रति कोई पूर्वाग्रह न पैदा हो। इस दायित्व में निष्पक्ष रूप से कार्य करने का कर्तव्य शामिल है।

मामले की पृष्ठभूमि

27.08.2022 को सौरव कृष्ण बसु (याचिकाकर्ता) के खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया। 06.09.2022 को याचिकाकर्ता ने आरोपों से इनकार करते हुए अभ्यावेदन दिया और ओपन प्लेटफॉर्म की मांग की। 27.09.2022 को याचिकाकर्ता ने एक और अभ्यावेदन दिया और उसे बचाव का लिखित बयान प्रस्तुत करने की अनुमति देने की प्रार्थना की।

याचिकाकर्ता को यह नहीं बताया गया कि उसका जांच अधिकारी किसे नियुक्त किया गया। इसलिए उसने 27.06.2023 को पुलिस उपाधीक्षक (सुरक्षा) खुफिया शाखा को एक और अभ्यावेदन दिया। वहीं 20.07.2023 के आदेश से याचिकाकर्ता को पता चला कि नियुक्त जांच अधिकारी ने टिप्पणी की थी कि याचिकाकर्ता के बचाव के केवल प्रारंभिक लिखित बयान पर ही विचार किया जाएगा। हालांकि याचिकाकर्ता के बचाव के लिखित बयान को स्वीकार न करने के संबंध में कोई कारण नहीं बताया गया।

याचिकाकर्ता ने जांच अधिकारी के आदेश के विरुद्ध संबंधित न्यायाधिकरण के समक्ष मूल आवेदन दायर किया। हालांकि, न्यायाधिकरण ने जांच अधिकारी को याचिकाकर्ता को लिखित बचाव कथन प्रस्तुत करने की अनुमति देने का निर्देश देने से इस आधार पर इनकार किया कि याचिकाकर्ता ने बंगाल पुलिस विनियमन, 1943 के विनियमन 861 (सी) के अनुसार उचित समय के भीतर लिखित बचाव कथन दाखिल नहीं किया। इस प्रकार याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।

न्यायालय के निष्कर्ष

न्यायालय ने देखा कि प्रशासनिक कार्रवाई के लिए निष्पक्षता और तर्कसंगतता सर्वोपरि है। अनुशासनात्मक कार्यवाही में नियोक्ता यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि उसके कर्मचारी को कोई पूर्वाग्रह न हो। यह सिद्धांत निष्पक्ष रूप से कार्य करने के कर्तव्य को दर्शाता है।

न्यायालय ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति देने की प्रार्थना न्यायाधिकरण द्वारा अस्वीकार नहीं की जानी चाहिए थी।

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका को अनुमति दी गई।

केस टाइटल- सौरव कृष्ण बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

Tags:    

Similar News