केवल इसलिए कि माता या पिता में से कोई एक जनजातीय नहीं है, बच्चे को अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र से वंचित नहीं किया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट की पोर्ट ब्लेयर सर्किट बेंच ने एक NEET उम्मीदवार की मदद की, जिसे आगामी प्रवेश परीक्षा के लिए अनुसूचित जनजाति (ST) प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया, जबकि अधिकारियों द्वारा उसे ST प्रमाण पत्र के लिए पात्र माना गया।
जस्टिस अनिरुद्ध रॉय ने कहा,
"इस विषय पर कानून यह निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति माना जा सकता है या नहीं, यह तय करने के लिए कई तथ्यों पर विचार करना आवश्यक है। केवल इस आधार पर कि माता या पिता में से कोई एक गैर-जनजातीय है, किसी को ST प्रमाण पत्र से वंचित नहीं किया जा सकता।"
उन्होंने यह भी कहा कि एक बार जब अनुसूचित जनजातियों को संविधान के तहत उनके अधिकारों की सुरक्षा के साथ मान्यता दी गई तो जब कोई व्यक्ति अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करता है तो उसका कानून के अनुसार विचार किया जाना उसका अधिकार है। यदि वह इस प्रक्रिया में सफल होता है तो ST प्रमाण पत्र प्राप्त करना उसका संवैधानिक अधिकार है।
याचिकाकर्ताओं ने यह दलील दी कि याचिका संख्या 2 एक NEET परीक्षा में ST उम्मीदवार के रूप में शामिल होने की इच्छुक है। उसे आवेदन के साथ अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना आवश्यक है।
उनका यह भी कहना था कि 5 सितंबर 2024 को ऑनलाइन माध्यम से प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने के बावजूद, उस पर कोई विचार नहीं किया गया और आवेदन लंबित रखा गया।
निर्धारित प्रारूप में अभ्यावेदन देने के बाद भी याचिकाकर्ता का आवेदन नकार दिया गया। तहसीलदार ने कहा कि याचिकाकर्ता की मां भले ही अनुसूचित जनजाति समुदाय की हों, लेकिन उन्होंने अग्रवर्गीय समुदाय के व्यक्ति से विवाह किया और याचिकाकर्ता का पालन-पोषण भी उसी अग्रवर्गीय वातावरण में हुआ, न कि किसी जनजातीय पहचान के साथ।
इसलिए आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया।
याचिकाकर्ता के सीनियर वकील ने कहा कि प्रमाण पत्र रद्द करने की प्रति याचिकाकर्ताओं को भेजी ही नहीं गई और यह एकतरफा निर्णय जो याचिकाकर्ता के पक्ष में की गई सिफारिश को रद्द करता है, कानून के विरुद्ध है।
प्रशासन की ओर से वकील ने तर्क दिया कि किसी व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति से संबंधित मानने के लिए कई कारकों पर विचार किया जाता है। वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता का पालन-पोषण एक सक्षम आर्थिक पृष्ठभूमि वाले अग्रवर्गीय समाज में हुआ और उसका कोई जनजातीय समाज से संपर्क नहीं रहा।
कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें और रिकॉर्ड की सामग्री पर विचार करते हुए कहा कि संविधान ने अनुसूचित जनजातियों को विशिष्ट पहचान और अधिकार दिए हैं, और वे अधिकार संरक्षित हैं।
न्यायालय ने यह भी कहा,
"कानून यह मानता है कि जब संबंधित प्राधिकरण द्वारा अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र जारी किया गया तो वह सभी आवश्यक तथ्यों और प्रक्रियाओं का पालन करते हुए ही किया गया। यह भी उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ताओं ने कोई धोखाधड़ी करके यह प्रमाण पत्र प्राप्त किया हो, ऐसा कोई आरोप भी नहीं है।"
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के पक्ष में की गई सिफारिश को बिना सुनवाई का अवसर दिए, चुपचाप और केवल कार्यपालिका की शक्ति का प्रयोग करते हुए, 21 दिसंबर 2024 को रद्द कर दिया गया।
यह एकतरफा कार्यवाही कानून की दृष्टि में अवैध और गलत है।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि केवल पिता के गैर-जनजातीय होने के आधार पर याचिकाकर्ता अपनी अनुसूचित जनजाति की सदस्यता नहीं खो सकती।
अतः याचिकाकर्ता को 24 घंटे के भीतर ST प्रमाण पत्र जारी किया जाए।
केस टाइटल- स्नाज़रीन बानो एवं अन्य बनाम अंडमान और निकोबार प्रशासन एवं अन्य