वकीलों ने ट्रायल कोर्ट में हंगामा किया, जज से दुर्व्यवहार किया और आरोपियों को कोर्ट रूम से बाहर निकाल दिया, हाईकोर्ट ने जारी किया अवमानना ​​नियम

Update: 2025-03-27 09:31 GMT
वकीलों ने ट्रायल कोर्ट में हंगामा किया, जज से दुर्व्यवहार किया और आरोपियों को कोर्ट रूम से बाहर निकाल दिया, हाईकोर्ट ने जारी किया अवमानना ​​नियम

कलकत्ता हाईकोर्ट ने बशीरहाट कोर्ट के छह वकीलों के खिलाफ अवमानना ​​नियम जारी किया, जिन्होंने 2012 में कथित तौर पर कोर्ट रूम के अंदर हंगामा किया था, ट्रायल जज से दुर्व्यवहार किया था वादियों को धमकाया और हंगामे की आड़ में आरोपियों को कोर्ट रूम के अंदर से बाहर निकाला था।

जस्टिस देबांगसु बसाक और जस्टिस शब्बार रशीदी की खंडपीठ ने कहा,

"जिन छह लोगों के खिलाफ वर्तमान कार्यवाही में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए, उन्होंने आंदोलन की आड़ में आपराधिक मामले में कुछ आरोपियों को कोर्ट रूम के अंदर से बाहर निकाला कोर्ट रूम के अंदर न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया, जब अदालत सत्र में थी तब न्यायिक अधिकारी के खिलाफ नारेबाजी की अदालत को उस विशेष तिथि पर न्यायिक कार्य करने की अनुमति नहीं दी। कोर्ट रूम के अंदर ऐसे वादियों को कोर्ट रूम छोड़ने के लिए मजबूर किया और न्यायिक अधिकारी को किसी भी न्यायिक कार्यवाही में कोई भी आदेश पारित करने से रोका...छह व्यक्तियों के खिलाफ अवमानना ​​का नियम जारी करने के लिए सामग्री मौजूद है।"

इसमें कहा गया,

"ऐसी परिस्थितियों में इस माननीय न्यायालय के न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 के तहत बनाए गए नियमों के परिशिष्ट I के फॉर्म 2 के अनुसार छह व्यक्तियों के खिलाफ नियम जारी किया जाए- क) देबब्रत गोल्डर ख) श्बिस्वजीत रे ग) इस्माइल मिया घ) विकास घोष ङ) अब्दुल मामून और च) कालीचरण मंडल।"

मामले में अवमानना ​​नियम 2012 से लंबित है, क्योंकि नियम के संबंध में निर्णय 24 अगस्त, 2012 को समन्वय पीठ द्वारा सुरक्षित रखा गया। निर्णय नहीं सुनाया गया। यह नियम तत्कालीन एडिशनल जिला एवं सेशन जज फास्ट ट्रैक कोर्ट-III, बशीरहाट, उत्तर 24 परगना द्वारा किए गए संदर्भ से उत्पन्न हुआ, जिन्होंने न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 के तहत संदर्भ का अनुरोध करने वाले आदेश की एक प्रति भेजी थी।

रजिस्ट्रार जनरल ने इस पत्र को क्षेत्रीय जज के समक्ष रखा तथा प्रभारी जज ने टिप्पणी की कि अवमानना ​​कार्यवाही आरंभ करने के लिए संबंधित न्यायिक अधिकारी की प्रार्थना को विचारार्थ मुख्य जज के संज्ञान में लाया जाए।

चीफ जस्टिस ने 2 जुलाई, 2012 को एक टिप्पणी द्वारा मामले को विचारार्थ समन्वय पीठ के समक्ष रखा।

समन्वय पीठ के प्रथम आदेश द्वारा इसने 6 व्यक्तियों को कारण बताओ नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। मामले पर समन्वय पीठ द्वारा समय-समय पर विचार किया गया तथा मामले में 6 व्यक्तियों द्वारा हलफनामा दायर किया गया। मामले को समन्वय पीठ द्वारा 24 अगस्त 2012 को निर्णय के लिए सुरक्षित रखा गया।

इसके बाद मामले को न्यायालय के वर्तमान निर्णय के मद्देनजर विभाग द्वारा सूची में रखा गया तथा 17 मार्च, 2025 को सुनवाई के लिए लिया गया।

जबकि कथित अवमाननाकर्ताओं की ओर से उपस्थित सीनियर एडवोकेट ने अपने मुवक्किलों के विरुद्ध जारी किए गए नियम की अनुपस्थिति के साथ-साथ समय-सीमा के मुद्दे उठाए बहस के दौरान उन्होंने ऐसी दलीलें वापस ले लीं।

फिर भी न्यायालय ने पाया कि समय-सीमा का कोई प्रश्न ही नहीं है क्योंकि संदर्भ निर्धारित समय के भीतर किया गया।

न्यायालय ने कहा,

"घटना 6 जून, 2012 की है तथा न्यायिक पक्ष में हाईकोर्ट द्वारा पारित पहला न्यायिक आदेश 3 जुलाई, 2012 को दिनांकित है। हमारा विचार है कि वर्तमान कार्यवाही न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम 1971 के अंतर्गत निर्धारित समय-सीमा द्वारा वर्जित नहीं है, क्योंकि संबंधित न्यायिक अधिकारी द्वारा संदर्भ समय-सीमा के भीतर किया गया। हाईकोर्ट ने समय-सीमा के भीतर संदर्भ का संज्ञान लिया तथा संदर्भ अभी भी लंबित है।”

तदनुसार इसने नियम जारी किया और इसे 28 मार्च को वापस करने योग्य बना दिया।

केस नंबर: सीआरएलसीपी 8 ऑफ 2012

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