आधार कार्ड का नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं, इसे गैर-नागरिकों को भी दिया जा सकता है: UIDAI ने हाईकोर्ट में बताया

Update: 2024-07-06 04:05 GMT

भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने कलकत्ता हाईकोर्ट को बताया कि आधार कार्ड दिए जाने का नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है। यहां तक ​​कि गैर-निवासियों को भी, जो वैध रूप से देश में प्रवेश कर चुके हैं, आवेदन करने पर आधार कार्ड दिए जा सकते हैं।

चीफ जस्टिस टीएस शिवगनम और जस्टिस हिरणमय भट्टाचार्य की खंडपीठ के समक्ष ये दलीलें दी गईं, जो पश्चिम बंगाल में कई आधार कार्डों को अचानक निष्क्रिय और पुनः सक्रिय किए जाने को चुनौती देने वाली 'एनआरसी के खिलाफ संयुक्त मंच' की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।

याचिकाकर्ताओं ने आधार नियमों के विनियम 28ए और 29 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी, जो अधिनियम के तहत प्राधिकरण को यह तय करने की निरंकुश शक्ति देता है कि कौन विदेशी है और उसका आधार कार्ड निष्क्रिय किया जा सकता है।

आधार बहुत बड़ी चीज है। कोई व्यक्ति बिना आधार के पैदा नहीं हो सकता- क्योंकि यह जन्म प्रमाण पत्र के लिए आवश्यक है, और कोई व्यक्ति बिना आधार के मर नहीं सकता।

याचिकाकर्ता की वकील झूमा सेन ने तर्क दिया,

"हमारे जीवन आधार के मैट्रिक्स के भीतर जुड़े हुए हैं।"

वकील ने आगे बताया कि एक बांग्लादेशी नागरिक और उसके परिवार के आधार कार्ड को निष्क्रिय करने के ऐसे ही मामले में हाईकोर्ट की समन्वय पीठ ने हस्तक्षेप किया था।

UIDAI के सीनियर वकील लक्ष्मी गुप्ता ने याचिकाकर्ताओं के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देते हुए अपनी दलीलें शुरू कीं, उन्हें 'अपंजीकृत संगठन' बताते हुए कहा कि उनके कहने पर ऐसी दलील स्वीकार्य नहीं होगी।

इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि आधार कार्ड का नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है। इसे उन लोगों को दिया जा सकता है जो गैर-नागरिक हैं, जिससे वे सरकारी सब्सिडी का लाभ उठा सकें।

यह तर्क दिया गया कि यह दलील स्वीकार्य नहीं होगी, क्योंकि यह उन लोगों के पक्ष में है जो गैर-नागरिक हैं और इसके बजाय बांग्लादेशी नागरिक हैं।

संघ की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अशोक कुमार चक्रवर्ती ने कहा कि यह दलील स्वीकार्य नहीं होगी, क्योंकि इसमें धारा 54 को चुनौती नहीं दी गई। आधार अधिनियम जिसके अंतर्गत नियमन आया और याचिकाकर्ता देश की संप्रभुता को चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि इस तरह के प्रख्यापन को 'संप्रभुता का कार्य' समझा जा सकता है।

तदनुसार, न्यायालय ने मामले की आंशिक सुनवाई की और इसे बाद की तारीख में आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

केस टाइटल: फोरम अगेंस्ट एनआरसी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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