आरोप तय करने के लिए अभियुक्त की उपस्थिति और सेक्शन 313 सीआरपीसी के तहत परीक्षण, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्राप्त की जा सकती हैः कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि महामारी की स्थिति में, ट्रायल कोर्ट धारा 223, 240 या 252 के तहत आरोप तय करने के संबंध में अभियुक्तों की दलील को रिकॉर्ड करने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग कर सकती है और आपराधिक संहिता (सीआरपीसी) की धारा 313 के तहत एक अभियुक्त की जांच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कर सकती है। इस सुविधा का उपयोग उन सभी आरोपियों के मामले में किया जा सकता है, जो न्यायिक हिरासत में हैं और जो जमानत पर बाहर हैं।
चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्टों को आंशिक कामकाज के दौरान पेश आए विभिन्न कानूनी और तकनीकी मुश्किलों का निस्तारण करने के लिए एक सूओ-मोटो याचिका की सुनवाई पर यह निर्देश दिया।
खंडपीठ ने कहा :
"चार्ज फ्रेम करते समय और दलील की रिकॉर्डिंग करते समय, न्यायालय के समक्ष अभियुक्त की उपस्थिति वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए प्राप्त की जा सकती है। सेशन ट्रायल योग्य मामलों और वारंट ट्रायल योग्य मामलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अभियुक्तों की उपस्थिति प्राप्त करने के बाद आरोप को पढ़ा जा सकता है, आरोपी को समझाया जा सकता है और उसकी दलील को दर्ज किया जा सकता है।"
"अदालतों द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अभियुक्तों की दलीलों और बयान को रिकॉर्ड करते हुए अपनाया गया रास्ता, असाधारण स्थिति में अदालत परिसर में हितधारकों भीड़ को कम करने के लिए उठाया गया कदम होगा, और सर्वोत्तम हेल्थ प्रैक्टिस का पालन करते हुए अदालतों के कामकाज को सुरक्षित करने के लिए उठाया गया कदम होगा। इसलिए, न्यायालयों द्वारा अपनाए गए इस तरह के तरीकों को वैध माना जाएगा।"
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुओ-मोटो रिट याचिका में 6 अप्रैल को दिए आदेश के आधार पर अपना आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि "इस न्यायालय और उच्च न्यायालयों की ओर से, अदालत परिसर में हितधारकों की उपस्थिति कम करने और अदालतों के कामकाज को सुरक्षित करने के लिए किए गए और किए जाने वाले सभी उपाय को वैध माना जाएगा; (ii)सुप्रीम कोर्ट और सभी उच्च न्यायालयों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के उपयोग के माध्यम से न्यायिक प्रणाली के कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपायों को अपनाने के लिए अधिकृत किया जाता है।"
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हियरिंग रूल्स के नियम 11.2 पर भरोसा करते हुए उच्च न्यायालय ने विशेष रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए धारा 313 के तहत अभियुक्तों के बयान दर्ज करने की अनुमति दी।
न्यायिक हिरासत में अभियुक्त के लिए प्रक्रिया:
यदि अभियुक्त न्यायिक हिरासत में है, तो जेल में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा प्रदान की जा सकती है और ऐसे मामले में नियम 5.3 के आशय भीतर रिमोट प्वांइट कॉआर्डिनेटर जेल अधीक्षक या जेल के प्रभारी अधिकारी होंगे। यदि प्रचुर सावधानी के साथ, विद्वान न्यायाधीश यह चाहते हैं कि न्यायिक अभिरक्षा में रखे गए अभियुक्त के मामले में, अभियुक्त के हस्ताक्षर आवश्यक हैं, तो आरोप और याचिका की एक प्रति समन्वयक, जो संबंधित जेल का अधिकारी होगा को ई-मेल से भेजी जा सकती है। उसे उसी को डाउनलोड करने, प्रिंट लेने और उसकी उपस्थिति में अभियुक्त के हस्ताक्षर प्राप्त करने और इसे अदालत में भेजने के लिए निर्देशित किया जा सकता है।
जमानत पर बाहर आरोपी के लिए प्रक्रियाः
जमानत पर अभियुक्त के मामले में, समन्वयक को उसी प्रक्रिया का पालन करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है। दलील दर्ज करते समय, न्यायिक अधिकारी को अभियुक्त के बयान को रिकॉर्ड करने के लिए अच्छी तरह से सलाह दी जाएगी कि न्यायाधीश स्पष्ट रूप से उसके लिए श्रव्य और दृश्यमान था, जबकि आरोप पढ़ा गया था और उसे समझाया गया था और जबकि उसकी याचिका दर्ज की गई थी। अदालत द्वारा नियुक्त एक फिट और उचित व्यक्ति दूरस्थ बिंदु पर समन्वयक होगा, जहां अभियुक्त बैठा है।
पिछले हफ्ते, अदालत ने स्पष्ट किया था कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का इस्तेमाल महामारी से पहले भी आरोपियों को पेश करने के लिए किया जा सकता है, यहां तक कि महामारी के मामले में असाधारण मामलों में पहले रिमांड के लिए भी किया जा सकता है।
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