बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- NSE उपनियमों के तहत मध्यस्थता अवॉर्ड पारित करने की तीन महीने की समय सीमा निर्देशात्मक, अनिवार्य नहीं
बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस सोमशेखर सुंदरेश्वरन की बेंच ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 के तहत दायर एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए एनएसई उपनियमों के नियम 13 की व्याख्या की। कोर्ट ने माना कि नियम 13(ब) के तहत मध्यस्थता अवॉर्ड को संदर्भ शुरू होने की तारीख से तीन महीने के भीतर पारित करने की समय सीमा निर्देशात्मक है, न कि अनिवार्य।
मामले का विवरण
यह याचिका 25 सितंबर, 2013 को पारित एक मध्यस्थता अवॉर्ड (दूसरा अवॉर्ड) को चुनौती देने के लिए दायर की गई थी, जो एनएसई के उपनियमों के तहत गठित मध्यस्थता ट्रिब्यूनल द्वारा पारित एक अपीलीय अवॉर्ड था। यह अवॉर्ड 27 अप्रैल, 2013 को पारित पहले अवॉर्ड को बरकरार रखता था।
याचिकाकर्ता 2004 से प्रतिवादी नंबर 1, मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज लिमिटेड और उप-दलाल प्रतिवादी नंबर 2, नटवरलाल पारेख सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से बिना किसी विवाद के व्यापार कर रहा था, जब तक कि जनवरी 2008 में विवाद उत्पन्न नहीं हुआ।
याचिकाकर्ता के दावे
पहला अवॉर्ड: याचिकाकर्ता ने दावा किया कि पहला अवॉर्ड, जो 27 अप्रैल, 2013 को पारित किया गया था, नियम 13(ब) के तहत निर्धारित तीन महीने की समय सीमा से बाहर था। उनका कहना था कि गणना 3 दिसंबर, 2012 को निर्धारित पहली सुनवाई की तारीख से शुरू होनी चाहिए।
अवॉर्ड की तारीख पर सवाल: याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि पहला अवॉर्ड पीछे की तारीख में लिखा गया था, क्योंकि अवॉर्ड की तारीख केवल पीठासीन मध्यस्थ द्वारा हस्तलिखित थी, जबकि अन्य दो मध्यस्थों ने हस्ताक्षर की तारीख नहीं डाली थी।
पूर्वाग्रह का आरोप: याचिकाकर्ता ने एक मध्यस्थ पर दलालों के प्रति सहानुभूति रखने का आरोप लगाया।
दूसरा अवॉर्ड: याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अपीलीय अवॉर्ड में मामले की योग्यता की ठीक से जांच नहीं की गई, क्योंकि पूर्व हाईकोर्ट जजों से युक्त ट्रिब्यूनल पूंजी बाजार के विवादों की बारीकियों को समझने में सक्षम नहीं था।
कोर्ट के अवलोकन
नियम 13 की व्याख्या: कोर्ट ने कहा कि नियम 13(ब) के अनुसार, मध्यस्थता को सामान्य रूप से संदर्भ शुरू होने की तारीख से तीन महीने के भीतर पूरा करना होता है। नियम 13(ड) के तहत संदर्भ शुरू होने की तारीख वह तारीख है, जब पहली सुनवाई होती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पहली निर्धारित सुनवाई में सुनवाई नहीं होती, तो वह केवल एक बैठक मानी जाएगी, न कि सुनवाई। इस मामले में, पहली सुनवाई 28 जनवरी, 2013 को हुई थी, और समय सीमा उसी तारीख से शुरू हुई।
निर्देशात्मक समय सीमा: कोर्ट ने माना कि "सामान्य रूप से" शब्द और समय विस्तार की अनुमति के कारण तीन महीने की समय सीमा निर्देशात्मक है, न कि अनिवार्य। उपनियमों में छह महीने तक के विस्तार का प्रावधान है, जो संभावित रूप से अनिवार्य हो सकता है।
पीछे की तारीख का आरोप: कोर्ट ने माना कि सभी मध्यस्थों द्वारा हस्तलिखित तारीख न डालना गंभीर हेरफेर का सबूत नहीं है।
योग्यता और पूर्वाग्रह: कोर्ट ने अवॉर्डों को उचित और तर्कसंगत पाया, जिसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी।
फैसला
कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता के आचरण को देखते हुए 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया।