बॉम्बे हाईकोर्ट ने समलैंगिक जोड़े की याचिका पर नोटिस जारी किया, टैक्स छूट में 'पति/पत्नी' की परिभाषा में शामिल करने की माँग
बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारत के अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया है, जो एक 'समलैंगिक जोड़े' द्वारा दाखिल की गई याचिका पर जारी हुआ है। इस याचिका में आयकर अधिनियम (IT Act) की धारा 56(2)(x) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। यह प्रावधान विषमलैंगिक (heterosexual) दंपतियों के बीच दिए गए उपहारों पर कर छूट देता है।
जस्टिस बर्गेस कोलाबावाला और जस्टिस फिरदौश पूनावाला की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से इस याचिका पर रुख स्पष्ट करने को कहा है। यह याचिका पैयो अशीहो और उनके साथी विवेक दीवान ने दायर की है। दोनों ने मांग की है कि धारा 56(2)(x) की प्रोविजो (proviso) में 'समलैंगिक जोड़ों' को भी शामिल किया जाए, क्योंकि वर्तमान में यह केवल विषमलैंगिक दंपतियों पर ही लागू होती है।
अदालत ने अपने आदेश (14 अगस्त को पारित) में दर्ज किया:
“यह रिट याचिका इस घोषणा के लिए दायर की गई है कि धारा 56(2)(x) के पाँचवें प्रोविजो में प्रयुक्त शब्द 'spouse' असंवैधानिक है, क्योंकि यह याचिकाकर्ताओं को इस शब्द की परिभाषा और दायरे से बाहर करता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे एक लंबे समय से स्थायी समलैंगिक संबंध में हैं और इस प्रावधान का लाभ उन्हें भी मिलना चाहिए।”
वैकल्पिक रूप से, याचिकाकर्ताओं ने यह भी प्रार्थना की है कि धारा 56(2)(x) में प्रयुक्त 'spouse' शब्द को इस तरह पढ़ा जाए कि उसमें समलैंगिक जोड़े भी शामिल हों। उनका कहना है कि वे भी विषमलैंगिक दंपतियों की तरह ही स्थिति में हैं, जिन्हें विवाह में माना जाता है।
खंडपीठ ने कहा, “चूँकि संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, हम भारत के अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी करते हैं, जिसकी सुनवाई 18 सितंबर 2025 को होगी। हम रजिस्ट्री को भी निर्देश देते हैं कि प्रतिवादी नंबर-2 को नोटिस जारी करें, जो 18 सितंबर 2025 को प्रत्यावर्तनीय (returnable) होगा।”
गौरतलब है कि आयकर अधिनियम की धारा 56(2)(x) के तहत किसी भी धनराशि, संपत्ति या अन्य परिसंपत्ति का मूल्य यदि 50,000 रुपये से अधिक हो तो उसे आय माना जाता है और उस पर कर लगाया जाता है। लेकिन, इसके पाँचवें प्रोविजो में यह कर लागू नहीं होता, यदि उपहार 'रिश्तेदारों' से मिला हो, जिसमें 'पति-पत्नी (spouse)' भी शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि प्रोविजो का यही हिस्सा 'भेदभावपूर्ण' है, क्योंकि इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि यह छूट समलैंगिक जोड़ों पर भी लागू होगी या नहीं, चूँकि कानून उन्हें 'spouse' के रूप में मान्यता नहीं देता। इस मामले की सुनवाई 18 सितंबर को होने की संभावना है।