कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राहत देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को भिवंडी कोर्ट का आदेश खारिज किया। उक्त आदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यकर्ता राजेश कुंटे द्वारा उनके खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि मामले में उनके भाषण की प्रतिलिपि को अतिरिक्त सबूत के तौर पर पेश करने की अनुमति दी गई थी।
एकल जज जस्टिस पृथ्वीराज के चव्हाण ने कांग्रेस नेता द्वारा दायर रिट याचिका को मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को चुनौती देने की अनुमति दी, जिसने RSS कार्यकर्ता को गांधी के भाषण की प्रतिलिपि पर भरोसा करने की अनुमति दी थी, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर महात्मा गांधी की हत्या के लिए दक्षिणपंथी संगठन को दोषी ठहराया था।
अपनी याचिका में गांधी ने तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट कोर्ट का आदेश अन्य एकल जज जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे द्वारा पारित 2021 के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है, जिन्होंने कुंटे द्वारा दायर इसी तरह की याचिका खारिज कर दी थी।
उस याचिका में कुंटे ने गांधी के कथित मानहानिकारक भाषण स्वीकार करने या अस्वीकार करने की मांग की थी। न्यायाधीश ने माना था कि किसी अभियुक्त को अपनी याचिका में संलग्नक स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
जस्टिस मोहिते-डेरे द्वारा पारित आदेश पर भरोसा करते हुए कांग्रेस नेता ने इस मामले में तर्क दिया कि चूंकि मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता को इस अतिरिक्त साक्ष्य (उनके भाषण की प्रतिलिपि) पर भरोसा करने की अनुमति दी, इसलिए यह उन्हें उक्त दस्तावेज को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए बाध्य करेगा।
भिवंडी मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष लंबित मामला कुंते द्वारा 2014 में दायर किया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि गांधी ने तत्कालीन चुनावों में अपनी रैली के दौरान महात्मा गांधी की हत्या के लिए RSS को दोषी ठहराते हुए अपमानजनक भाषण दिया था। मजिस्ट्रेट ने उक्त शिकायत का संज्ञान लिया था और रायबरेली से सांसद (एमपी) को अपने समक्ष उपस्थित होने के लिए बुलाया। सम्मन को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई और उस याचिका में गांधी ने अपने भाषण की प्रतिलिपि संलग्न की थी। हालांकि, उक्त याचिका खारिज कर दी गई थी।
इसी आधार पर कुंटे ने मजिस्ट्रेट के समक्ष तर्क दिया कि याचिका में भाषण की प्रति संलग्न करके गांधी ने "स्पष्ट रूप से" भाषण और उसकी विषय-वस्तु स्वीकार किया। हालांकि, कुंटे द्वारा प्रस्तुत इस तर्क को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने खारिज किया। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया और जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे ने उनकी याचिका खारिज कर दी।