अपील का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं, विधायिका अपराध के आधार पर अपीलीय फॉर्म निर्धारित कर सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2025-09-15 04:57 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि अपील का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है, मौलिक नहीं। इसलिए विधायिका अपराध के विषय के आधार पर अपीलीय मंच निर्धारित कर सकती है।

अदालत ने कहा,

"इस तर्क के संबंध में कि अभियुक्त अपीलीय मंच खो देता है, यह न्यायालय इसे निराधार पाता है। अपील का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है; यह विशुद्ध रूप से विधायिका द्वारा निर्मित वैधानिक अधिकार है। विधायिका विषय की प्रकृति के आधार पर कुछ मामलों में जानबूझकर उच्चतर अपीलीय मंच का प्रावधान कर सकती है।"

अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण (वित्तीय प्रतिष्ठानों में) अधिनियम, 1999 (MPID) के तहत गठित निर्दिष्ट कोर्ट द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत मुकदमा चलाना, केवल इसलिए अनुच्छेद 14 या 21 का उल्लंघन नहीं माना जाता है, क्योंकि अपीलीय उपाय सीधे हाईकोर्ट में निहित है।

अदालत ने स्पष्ट किया

जस्टिस अमित बोरकर मिलिंद सतीश सावंत द्वारा दायर ज़मानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।

सावंत पर IPC की धारा 406, 409, 420 (सहित धारा 34 और 120-बी) और मध्य प्रदेश पुलिस विभाग अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत अपराधों का आरोप है। आवेदक ने तर्क दिया कि मध्य प्रदेश पुलिस विभाग अधिनियम के तहत नामित न्यायालय को IPC के अपराधों की सुनवाई करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विपरीत मध्य प्रदेश पुलिस विभाग अधिनियम में ऐसी अदालतों को IPC के अपराधों से निपटने का अधिकार देने वाला कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि नामित न्यायालय को IPC के अपराधों की सुनवाई करने की अनुमति देने से उन्हें सेशन कोर्ट में अपील करने के अधिकार से वंचित होना पड़ेगा, जिससे अनुच्छेद 14 और 21 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन होगा।

अभियोजन पक्ष ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि अपराधों में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी शामिल है, जिसमें 127 से अधिक निवेशकों को असाधारण रिटर्न के बहाने ₹7 करोड़ से अधिक की ठगी का शिकार बनाया गया।

अदालत ने आवेदक की दलीलों को खारिज किया और कहा कि MPID ​​न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को सीमित रूप से नहीं समझा जाना चाहिए। MPID Act की धारा 6 और 13 को साथ पढ़ते हुए अदालत ने कहा कि यदि सेशन कोर्ट को MPID Act के तहत नामित किया जाता है, तब भी उसे उसी धोखाधड़ी वाले लेनदेन से जुड़े IPC अपराधों की सुनवाई करने का अधिकार बना रहता है। PC Act के समान शब्दावली का अभाव उसकी शक्तियों को कम नहीं करता है, क्योंकि MPID Act का विधायी उद्देश्य जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए विशेष तंत्र प्रदान करना भी है।

अदालत ने कहा,

"... एक बार जब सेशन कोर्ट को MPID कोर्ट के रूप में नामित कर दिया जाता है तो उसी धोखाधड़ी वाले लेनदेन से जुड़े IPC अपराधों की सुनवाई करने की उसकी क्षमता को केवल इसलिए कम नहीं किया जा सकता, क्योंकि MPID Act में PC Act के समान शब्दावली का प्रयोग नहीं किया गया। शब्दशः प्रावधान का अभाव कोई अपवाद नहीं है और सेशन कोर्ट की सामान्य शक्तियां बरकरार रहती हैं।"

अदालत ने आगे कहा कि अपीलीय मंच के न होने का तर्क गलत था। अपील का अधिकार क़ानून द्वारा निर्मित है, संवैधानिक गारंटी नहीं। विधायिका कुछ मामलों में हाईकोर्ट में सीधे अपील का प्रावधान कर सकती है। यह अनुच्छेद 14 या 21 का उल्लंघन नहीं करता, बल्कि त्वरित न्याय सुनिश्चित करता है। जमाकर्ताओं के अधिकारों को अभियुक्तों के अधिकारों के साथ संतुलित करता है।

तदनुसार, अदालत ने IPC अपराधों की सुनवाई के लिए निर्दिष्ट कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को चुनौती को खारिज किया और ज़मानत याचिका यह कहते हुए खारिज की कि धोखाधड़ी का स्तर आवेदक का पूर्ववृत्त और आरोपों की गंभीरता, निरंतर हिरासत के लिए एक मजबूत मामला बनाती है।

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