'संपत्तियों की बिक्री के लिए नियुक्त रिसीवर को साझेदारी फर्म चलाने के लिए नियोक्ता नहीं माना जा सकता': बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2025-10-14 04:01 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि किसी विघटित साझेदारी फर्म की संपत्ति बेचने के लिए नियुक्त कोर्ट रिसीवर को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25-O के तहत व्यवसाय चलाने या बंद करने के लिए आवेदन करने के उद्देश्य से "नियोक्ता" नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने कहा कि एक बार जब रिसीवर को संपत्ति बेचने के लिए नियुक्त कर दिया जाता है तो फर्म का व्यवसाय बंद हो जाता है। फ़ैक्टरी को फिर से खोलने या श्रमिकों को वेतन देने के निर्देश कानूनी रूप से अस्थिर होते हैं।

जस्टिस संदीप वी. मार्ने बॉम्बे हाईकोर्ट के कोर्ट रिसीवर द्वारा औद्योगिक न्यायालय के 27 फ़रवरी 2007 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। औद्योगिक न्यायालय ने जनवरी, 2002 से श्रमिकों को ब्याज सहित वेतन का भुगतान करने और फ़ैक्टरी परिसर को फिर से खोलने का निर्देश दिया। विचाराधीन फर्म एक साझेदार विवाद में उलझी हुई, जिसके कारण दिसंबर, 2000 में कंपनी के विघटन और रिसीवर की नियुक्ति के लिए मुकदमा दायर किया गया। इसके बाद हाईकोर्ट ने फर्म की संपत्तियों की बिक्री का निर्देश दिया और सितंबर, 2001 में फैक्ट्री को बंद कर दिया गया।

रिसीवर ने तर्क दिया कि उसकी नियुक्ति केवल फर्म की संपत्तियों को बेचने के लिए थी, व्यवसाय चलाने के लिए नहीं और साझेदारी अधिनियम की धारा 43 के तहत व्यवसाय विघटित हो चुका है, जिससे धारा 25-ओ के तहत अलग से बंद करने की अनुमति लेना अनावश्यक हो गया।

हाईकोर्ट ने इन दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि रिसीवर की नियुक्ति के बाद साझेदारी फर्म का व्यवसाय समाप्त हो गया। कोर्ट ने कहा कि धारा 25-ओ की योजना के तहत नियोक्ता को बंद करने की अनुमति के लिए आवेदन करना आवश्यक है। चूंकि रिसीवर की नियुक्ति केवल संपत्तियों की बिक्री के लिए की गई और उसने व्यवसाय चलाने के लिए किसी एजेंट की नियुक्ति नहीं की थी। इसलिए उसे नियोक्ता नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने टिप्पणी की:

“औद्योगिक विकास अधिनियम की धारा 25-ओ की योजना के अनुसार, किसी 'नियोक्ता' को बंद करने की अनुमति के लिए उपयुक्त सरकार को आवेदन करना आवश्यक है। फर्म के व्यवसाय के संबंध में कोर्ट रिसीवर की नियुक्ति के बाद यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि रिसीवर फर्म का नियोक्ता बन गया।”

कोर्ट ने कहा कि सितंबर, 2001 के बाद किसी भी चालू व्यावसायिक गतिविधि के अभाव में रिसीवर से बंद करने की अनुमति के लिए आवेदन करने या वेतन भुगतान करने की अपेक्षा करना "बेतुका" होगा। कोर्ट ने कहा कि औद्योगिक न्यायालय ने जनवरी, 2002 से श्रमिकों को वेतन भुगतान का निर्देश देकर घोर भूल की।

कोर्ट ने यह भी कहा कि औद्योगिक न्यायालय द्वारा कारखाना पुनः खोलने का निर्देश शिकायत के दायरे से बाहर है, क्योंकि ऐसी राहत की प्रार्थना भी नहीं की गई। यह टिप्पणी की गई कि औद्योगिक न्यायालय ऐसी कोई चीज़ प्रदान नहीं कर सकता है, जिसकी श्रमिकों ने कभी प्रार्थना ही नहीं की।

हालांकि, यह स्वीकार करते हुए कि स्थायी श्रमिकों के दावे लंबे समय से लंबित है, कोर्ट ने रिसीवर को श्रमिकों को बंद करने का मुआवजा देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यदि कर्मचारियों को ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया गया तो उन्हें ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाए।

तदनुसार, न्यायालय ने औद्योगिक न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया।

Case Title: The Court Receiver, High Court Bombay v. Mumbai Labour Union & Ors. [Writ Petition No. 2310 of 2007]

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